रेल द्वारा पहली बार आपने यात्रा की है। इस यात्रा की तैयारी, यात्रा का वर्णन तथा अपने अनुभव को आधार मानकर इस यात्रा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
भूमिका
मनुषय की जिज्ञासा कभी भी उसे एक ही स्थान पर और एक ही उद्देश्य तक सीमित नहीं रहती है। एक सफलता के बाद दूसरी सफलता और एक नया उद्देश्य, महत्वपूर्ण उद्देश्य उसके सामने आ जाता है। यदि वह एक ही स्थान पर सीमित रह जाता है तो जीवन में परिवर्तन का अभाव होने से नीरसता उत्पन्न हो जाती है। परिवर्तन के कारण उसे एक नई ताज़गी मिलती है, जिससे वह अपने कार्य के प्रति अधिक उत्साह से समर्पित होता है। जानने की बलवती इच्छा ने ही मनुष्य को विश्व के एक कोने से दूसरे कोने तक, आकाश से लेकर पाताल तक और ध्रुवीय प्रदेशों तक की यात्राएँ करवाई हैं और उसके ज्ञान में वृद्धी की है।
रेल यात्रा का उद्देश्य और तैयारी
मेरे विद्यालय में ग्रीष्मावकाश हो गया था। मैं और मेरा छोटा भाई अब व्याकुल थे, कि इस बार छुट्टियों में हम कहाँ जाएँ। पिता जी से पूछने पर जो खबर मुझे मिली, उसे सुनकर तो मैं उछल पड़ा और मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। पिता जी ने बताया कि शिमला में मेरे ताऊ जी के बड़े लड़के की शादी है, अतः कम से कम दस दिन पहले ही वहाँ पहुँचना है और शादि के बाद भी हम लगभग दो सप्ताह वहाँ रूकेंगें। मेरा भाई भी बहुत प्रसन्न हुआ। मैंने अपने मित्रों से रेल द्वारा शिमला की यात्रा का वर्णन सुना था। अतः मैं बहुत ही उत्सुक था।
यात्रा की तैयारी के लिए हमारी भाग-दौड़ शुरू हुई। यद्यपि जून का महीना था, तथापि पिता जी हमसे कह रहे थे कि कम से कम दो-दो आधी बाजुओं के स्वेटर और दो-दो पुलओवर हम अपने पास अवश्य रखें। सामान तैयार किया गया। पिता जी और माता जी के साथ हम दोनों भाई इस यात्रा के लिए चल पड़े। चंडीगढ़ से हम कालका तक बस में गए। आगे के लिए हमने रेलगाड़ी पकड़नी थी। अतः कालका बस अड्डे पर बस से उतर हम रेलवे स्टेशन की ओर चले गए।
यात्रा का वर्णन
रेलवे स्टेशन पर इस समय काफी भीड़ थी। हमारी तरह ही अनेक स्कूल के विद्यार्थी अपने-अपने माता-पिता के साथ ग्रीष्मावकाश में शिमला जा रहे थे। स्टेशन पर इधर-उधर भागते दौड़ते, चलते-फिरते लोग, युवा, वृद्ध, नर, नारी, लड़के और लड़कियाँ, सब अपने सामान के पास बैठे हुए थे। सबके मुख पर उत्साह और हर्ष था। प्लेटफार्म पर लगी हुई दुकानें और स्टॉल, किताबों, पत्रिकाओं और अखबारों की दुकानें, पान, बीड़ी सिगरेट की दुकानें, पूरी-कचौड़ी, हलवा, चाय तथ ठंडे पेय की बोतलें व आइसक्रीम वाले इनकी बिक्री करने के लिए ऊँचे-ऊँचे स्वर में बोल रहे थे। चाय-चाय, फ्रिज की ठंडी बोतलें, बढ़िया आइसक्रीम। पूरी-कचौड़ी वाले आदि आदि। हम दोनों भाई कभी इधर देखते कभी उधर। यह दृश्य देखकर हम चकित ही रह गए। मेरे भाई ने रास्ते में पढ़ने के लिए कुछ पत्रिकाएँ और कॉमिक्स रख लीं।
थोड़ी देर बाद ही छुक-छुक, छुक-छुक करती हुई एक छोटी-सी रेलगाड़ी पटरियों पर दौड़ती हुई आ गई। यह रेलगाड़ी तो विशेष रूप से छोटे आकार की थी। इसके डिब्बे भी छोटे-छोटे थे तथा यह बहुत ऊँची रेलगाड़ी न थी। इसकी चौड़ाई भी कम थी। जब मैंने पिता जी से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि पहाड़ी मार्ग के कारण रेलगाड़ी ऐसी है। हम अपना सामान लेकर उसमें बैठ गए। पंद्रह मिनट बाद वह चल पड़ी। अब आरंभ हुई हमारी यात्रा।
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दूर-दूर तक फैले हुए खेत और पहाड़ों में बसे गाँव हमें नज़र आ रहे थे। रेलवे लाइन के साथ-साथ खड़े खंबे मानों हमें छोड़कर पीछे की ओर भाग रहे थे। रेलगाड़ी में बैठे हुए सभी चीजें इस प्रकार प्रतीत होती थीं, मानों वो पीछे की ओर भाग रही हों। अब पहाड़ी मार्ग आरंभ हो गया था। रेलगाड़ी बहुत कम समय के लिए तीव्र गति से भागी और अब उसकी गति धीमी हो गई थी। इन पहाड़ों के बीच बनी रेलवे लाइन को देख कर हम चकित रह गए। खिड़की से हाथ बाहर निकाल कर मानों हम पहाड़ों को छू सकते हैं। घाटियों के बीच से गुज़रती हुई गाड़ी। वृक्षों की पंक्तियाँ, घने-घने जंगल, जंगलों में बोलते हुए जंगली जानवर और पक्षियों की आवाजे़ं सब बहुत ही सुखद लगता था।
इसके बाद सुरंगों का क्रम शुरू हुआ। एक के बाद एक सुरंग। कोई छोटी कोई बड़ी। कभी अँधेरा और कभी प्रकाश। छोटे-छोटे स्टेशनों पर थोड़ी-थोड़ी देर तक रूकती और चलती रेलगाड़ी। उतरते और चढ़ते लोग। कहीं-कहीं पर तो रास्ता इतना घुमावदार था कि रेलगाड़ी के पिछले डिब्बे नीचे की पट्टी पर रेंगतें हुए नज़र आ जाते थे। प्राकृतिक दृश्यों का ऐसा मनोहारी रूप मैंने पहले कभी नहीं देखा था। हम बहुत ही आनंदित थे। टिकट निरीक्षक ने सभी के टिकट भी देखे। इस पहाड़ी पर रेंगती रेलगाड़ी शिमला पहुँच गई। रेलगाड़ी के रूकते हुए सभी लोग अपना-अपना सामान लेकर उतर पड़े।
उपसंहार
यह मेरी इस यात्रा का रोमांचकारी वर्णन है। इस रेलगाड़ी की यात्रा ने मुझे प्राकृतिक दृश्यों का जो सौंदर्यमय रूप दिखाया, वह मैं कभी भी भूल नहीं पाता। यहाँ से हम अब सामान उठाकर अपने उन जी के घर के लिए चल दिए। यह मेरी अविस्मरणीय और प्रथम रेल यात्रा थी।
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