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संत कबीर के प्रेरक-प्रसंग


संत कबीर दास हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध व्यक्तित्व है। उनकी रचनाओं पर भक्ति आंदोलन का विशेष प्रभाव पड़ा हैं। वे एक ईश्वर को मानने वाले महाकवि थे, जिन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता में अपना विशेष योगदान दिया था।
उन्हीं के जीवन से जुड़ा हुआ एक प्रसंग यहां हम आपके साथ शेयर कर रहे है।

prasang of kabir in hindi
बनारस शहर में संत कबीर दास जी की प्रसिद्धी दूर-दूर तक थी और शहर के राजा बीर सिंह भी कबीर के विचारों के एक बड़े पैरोकारों में से एक थे। जब कभी भी कबीर उनके दरबार में आते थे तो आदर स्वरूप राजा उन्हें अपने सिंहासन पर बैठा स्वयं उनके चराणों में बैठ जाते।



एक दिन अचानक कबीर दास के मन में ख्याल आया कि क्यों न राजा की परीक्षा ली जाए कि क्या राजा बीर सिंह के मन में मेरे लिए सही में इतना आदर है या वे सिर्फ दिखावा कर रहे है?

फिर क्या था, उसके अगले ही दिन वे हाथों में दो रंगीन पानी की बोतले ले (जो दूर से देखने पर शराब लगता था) अपने दो अनुयायों, जिसमें एक तो वही का मोची था तथा दूसरी एक महिला, जो कि प्रारम्भ में एक वैश्या थी के साथ राम नाम जपते हुए निकल पड़े।

उनके इस कार्य से उनके विरोधियों को उनके ऊपर ऊँगली उठाने का अवसर मिल गया। पूरे बनारस शहर में उनका विरोध हाने लगा जिससे धीरे-धीरे यह बात राजा के कानों तक पहुँच गई।

कुछ समय पश्चात संत कबीर दास राजा के पास पहुँचे; कबीर दास के इस व्यवहार से वे बड़ा दुःखी थे। तथा जब इस बार वे दरबार में आए तो राजा अपनी गद्दी से नहीं उठे।

यह देख, कबीर दास जल्द ही समझ गए कि राजा बिर सिंह भी आम लोगों की तरह ही हैं; उन्होंने तुरंत रंगीन पानी से भरी दोनों बोतलों को नीचे पटक दिया।

उनको ऐसा करते देख राजा बिर सिंह सोचने लगे कि, 'कोई भी शराबी इस तरह शराब की बोतले नहीं तोड़ सकता, ज़रूर उन बोतलों में शराब के बदले कुछ और था?' राजा तुरंत अपनी गद्दी से उठे और कबीर दास जी के साथ आए मोची को किनारे कर उससे पुछा, 'ये सब क्या है?'

मोची ने बोला, 'महाराज, क्या आपको पता नहीं, जगन्नाथ मंदिर में आग लगी हुई है और संत कबीर दास इन बोतलों में भरे पानी से वो आग बुझा रहे हैं.... ' राजा ने आग लगने की घटना का दिन और समय स्मरण कर लिया और कुछ दिन बाद इस घटना कि सच्चाई जाननें के लिए एक दूत को जगन्नाथ मंदिर भेजा।

जगन्नाथ मंदिर के आस-पास के लोगों से पूछने के बाद इस घटना कि पुष्टि हो गई कि उसी दिन और समय पर मंदिर में आग लगी थी, जिसे बुझा दिया गया था। जब बिर सिंह को इस घटना की सच्चाई का पता चला तो उन्हें अपने व्यवहार पर ग्लानी हुई और संत कबीर दास जी में उनका विश्वास और भी दृढ़ हो गया।

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