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Rahim Ke Dohe Class 9 PDF | रहीम के दोहे अर्थ सहित

रहीम के दोहे आज भी भारतीय जनता के गले का हार बने हुये हैं। इनके दोहों में ज्ञान, भक्ति-वैराग्य, दुःख-सुख, जीव-जगत, योग-माया, समय-असमय और प्रेम आदि का दर्शन एक साथ होता है। आप कबीरदास के दोहे यहां पढ़े- Kabir Ke Dohe in Hindi PDF । रहीम की काव्यभाषा मुख्यतया हिन्दी थी। इनके प्रिय छनद दोहा, चैपाई, सोरठा और बरवै थे। सौन्दर्य और कला के पारखी रहीम अपनी दानशीलता के लिए भी प्रसिद्ध हैं। रहीम अपनी रचनाओं के माध्यम से एक खुशहाल और भरपूर जिंदगी का नक्शा तैयार करते हैं। नीचे लोकजागरण के कवि रहीम के दोहे Hindi Rahim Ke Dohe Class 9 PDF के रूप में दिये जा रहे हैं, डाउनलोड करें-


रहीम हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल और रीतिकाल के संधि के कवि हैं। इनका लौकिक ज्ञान अद्वितीय था। ये भाषा के क्षेत्र में अष्टदिग्ग़ज माने जाते थे। ये महान ज्योतिषी थे। इन्होंने जीवन में जो देखा और जिया वही अपनी रचनाओं में पिरोया।

Rahim Ke Dohe Class 9 Hindi PDF | रहीम के दोहे

Rahim Ke Dohe Hindi Class 9 PDF
PDF Name रहीम के दोहे | Rahim Ke Dohe Hindi Class 9 PDF
PDF Size 593 KB
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रहीम एक कालजयी कवि हैं। रहीम भक्तिकाल और रीतिकाल के संधि समन्वय भी है। रहीम की रचनाधर्मिता की आधारभूमि के मुख्य तत्व प्रेम, ऐश्वर्य, सम्पत्ति, संगति, भाग्य और पुरुषार्थ तथा भाषा आदि हैं। रहीम ने अपने काव्य की रचना लोक कसौटी पर की है।

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रहीम का कृतित्व पक्ष बहुत प्रबल है। उन्होंने अब तक छोटे-बड़े, कुल मिलाकर आठ काव्य-कृतियों की सर्जना अपने लोकानुभव के आधार पर की है। इन कृतियों में दोहावली को प्रमुख रूप से याद किया जाता है। रहीम के दोहावली यानी Rahim Ke Dohe या सतसई की भाषा अवधी है।

रहीम की इन पूरी रचनाओं में जहाँ भक्ति, ज्ञान, राति, नीति तथा श्रृंगार की प्रमुख विशेषताएं परिलक्षित होती हैं, वहीं लोक जागरण की प्रतिध्वनि भी सुनाई पड़ती है। रहीम के दोहे आज भी हिन्दी भाषी भू-भाग में लोकप्रिय हैं। रहीम के संदर्भ में यह भी कहा जाता है कि वह अत्यन्त दानशील महाकवि थे। उन्होंने अपने दरवाजे से किसी अनाथ, गरीब को कभी भी निराश नहीं लौटाया। यदि रहीम के पास देने को कुछ नहीं रहता था तो वह अपने मित्र तुलसीदास और रीवा नरेश आदि राजाओं के पास याचक को भेज दिया करते थे।

रहीम की काव्य भाषा का शब्द भण्डार काफी समृद्ध है। उन्होंने तत्सम, तद्भव, देशज तथा विदेशी शब्दों का प्रयोग अपने काव्य में किया है। रहीम अपने काव्य में शब्दों की रचना उपसर्ग, प्रत्यय तथा समास के माध्यम से करते हैं।

कविवर रहीम की प्रतिभा बहुमुखी थी और उनका व्यक्तित्व विराट। ये एक साथ कुशल राजनीतिज्ञ, बहुभाषाविद् विद्वान, प्रतिभाशाली कवि, अनन्य कला-प्रेमी, उदार दानी तथा समन्वयवादी धर्म-संस्कृति के प्रबल समर्थक थे। उनके जीवन में सुख-दुख का उतार-चढ़ावा भी कुछ कम नहीं रहा। अकबर के राज्यकाल में एक ओर जहां उन्होंने अनेक ऊँचे-ऊँचे पदों पर विभूषित होकर प्रचुर धन, यश, सम्मान और सुखानुभूति प्राप्त की, वहीं दूसरी ओर, जहाँगीर के राज्य-काल में उन्हें धन, यश, सम्मान और सन्तान से हीन बनकर दुःख के आँसू बहाते अपनी विषादमय जीवन-संध्या भी गुजारनी पड़ी। फलतः सुख-दुखमय जीवन के मधुर एवं तीखे अनुभवों से सम्पृक्त जीवन जीनेवाले कविवर रहीम की काव्य-लता यथार्थ अनुभव की पृष्ठभूमि में ही उगी तथा पुष्पित-पल्लवित हुई। इसके अतिरिक्त रहीम-काव्य के निर्माण में तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, नैतिक, दार्शनिक तथा साहित्यिक परिस्थितियों का भी कुछ कम हाथ नहीं है। अतः रहीम-साहित्य की कोई भी आलोचना उनके जीवन-वृत्त तथा बाह्यान्तरिक परिस्थितियों का विश्लेषणात्मक अध्ययन किये बिना पूरी नहीं हो सकती।

हिन्दी साहित्य की श्री-समृद्धि में मुसलमान-कवियों का विशष योगदान रहा है। इन कवियों में हिन्दी-साहित्य में रहीम नाम से प्रख्यात अब्दुर्रहीम खानखाना का प्रमुख स्थान है। मानसिक स्तर पर सहीम जिसके मर्मज्ञ कवि, बहुभाषा-विद् और बहुज्ञ थे, भौतिक स्तर पर उनका जीवन उतना ही व्यस्त तथा महत्वपूर्ण उत्तरदायित्वों से ओत-प्रोत था। इन्होंने अकबर की सेना का सेनापतित्व लेकर अनेक युद्ध किये, जिनमें इनके जीवन के अनेक वर्ष अत्यधिक व्यस्तता में व्यतीत हुए। इतनी व्यस्तता के होते हुए भी काव्य-रचना करना यही सिद्ध करता है कि रहीम का कवि इनके जीवन पर पूर्णतया हावी था। अतः ये काव्य-रचनाओं द्वारा अपनी बहुमुखी कवि-प्रतिभा का प्रदर्शन तो कर पाये है, किन्तु कोई भी रचना पूर्ण उपलब्ध नहीं है, केवल एक सुखद अनुमान के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। रहीम का जीवन जितना व्यस्त था, उसमें किसी भी कृति को पूर्ण होना असंभव ही था।

समाज विज्ञान की यह अवधारणा है कि जैसी व्यवस्था और परिवेश होता है, मानव-मन को विकास के वैसे ही अवसर मिलते हैं। जहां तक हिन्दी साहित्य का संबंध है, 16वीं सदी में ब्रजभाषा के रूप में हिन्दी साहित्य नित नई ऊँचाइयाँ छू रहा था। उस समय भक्तिकाल की सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ आ रही थी और अपरिचित होगा। हिन्दी के इसी जागरणकाल में रहीम जैसी असाधारण काव्य प्रतिभा का भी जन्म हुआ, जिनके नीतिपरक दोहे अपनी उपमा आप हैं और उनकी अपार लोकप्रियता का आधार भी।

मुगल सम्राट अकबर के नौ रत्नों में से एक अब्दुर्रहीम खानखाना हिन्दी और फारसी के विद्वान ही नहीं, कुशल प्रशासक, योद्धा और नीति निर्माता भी थे। उनका समग्र जीवन और कृतित्व प्रत्येक जागरूक नागरिक के लिए प्रेरणास्रोत से कम नहीं है।

ऊपर दिये गए Rahim Ke Dohe Class 9 PDF में बताया गया है कि महान काव्यकार व गहन विचारक रहीम का जीवन वृत्त, जिसने मानव धर्म व जनकल्याण को अंगीकार किया, जीवन भर योद्धा के रूप में संघर्षरत रहते हुये अपनी लेखनी द्वारा प्रत्येक वर्ग, समुदाय व समाज का मार्गदर्शन किया। जन्म व धर्म से मुसलमान होते हुए भी उनकी भारतीयता व हिन्दू धर्म एवं उसके प्रतीकों में गहरी आस्था थी।

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