अष्टावक्र गीता भारतीय आध्यात्मिक जगत का ही नहीं अपितु विश्व आध्यात्मिक जगत का मान्य एवं श्रेष्ठ ग्रंथ है। इसमें राजा जनक एवं महर्षि अष्टावक्र के बीच हुए ब्रह्म विद्या विषयक संवाद का सार संग्रहीत है। आध्यात्मिक जगत में संवाद तो बहुत हुए हैं, किन्तु यह संवाद सबसे अनूठा, अनुपम और बेमिसाल है। इसने अध्यात्म के शिखर को छुआ है। इस पुस्तक को पढ़ते-पढ़ते ही पाठक ध्यानस्थ हो जाता है। वह अद्भुत, अपूर्व और अपार आनन्द की अनुभूति करता हुआ आत्मज्ञान के महासागर में निमग्न हो जाता है और जब वह व्यक्ति उस महासागर से निकलता है तो पूर्ण आत्म-बोध प्राप्त किया हुआ दिव्य मानव होता है। एक अलौकिक शांति, अनुपम कांति, अद्भुत आभा उसके मुखमण्डल पर दृष्टिगोचर होने लगती है। आप यहां से - Shrimad Bhagwat Geeta Hindi तथा नीचे से Ashtavakra Gita PDF डाउनलोड कर पढ़ें।
Ashtavakra Gita in Hindi PDF | अष्टावक्र गीता
PDF Name |
अष्टावक्र गीता | Ashtavakra Gita Hindi PDF |
No. of Pages |
405 |
PDF Size |
18.6 MB |
आत्म-बोध का ज्ञान होने में कोई वक्त नहीं लगता। ऐसा ही अष्टावक्र की उपस्थिति में जनक के साथ घटा। बुद्ध ने छः वर्ष तक साधना की, परन्तु कुछ नहीं मिला। अंत में वह सब छोड़ नदी के किनारे लेट गए। जब वह शून्य की स्थिति में पहुंचे तो उसी क्षण उन्हें बुद्धत्व (बोध-तत्व) प्राप्त हो गया। तात्पर्य यह है कि आत्मज्ञान प्राप्त होने में इतना ही समय लगता है जितना प्रकाश के आते ही अंधकार के भागने में।
भारत ने अध्यात्म के जिस शिखर को छुआ है, उस तक विश्व के अन्य धर्म नहीं पहुंच पाये हैं। यह शिखर है- अद्वैत का। इसके अनुसार संपूर्ण सृष्टि परमात्मा की ही अभिव्यक्ति है। समस्त जीव-जगत, स्थूल जगत सहित कण-कण एवं रज-रज में वही परमात्मा व्याप्त है। चारों ओर एक ही ब्रह्म तत्व फैला हुआ है। संसार में द्वैत (दो तत्व) है ही नहीं, केवल अद्वैत (दो नहीं अर्थात एक ही) ही है।
सभी भारतीय शास्त्र, विचारक, दार्शनिक, संत-महात्मा एवं गुरु इसी सत्य को प्रतिपादित करते हैं और मनुष्य को यह समझाने का प्रयास करते हैं कि तू भी ब्रह्म ही है, इस सत्य को प्राप्त करने, उस स्थिति में पहुंचने और उसकी अनुभूति करने की विविध विधियां बताते है। 'गीता' में भगवान श्रीकृष्ण ने ज्ञान, कर्म, भक्ति के सोपान बताये हैं। इनमें से किसी के द्वारा भी उस सत्य तक पहुंचा जा सकता है। उपनिषद भी ध्यान, योग आदि विविध साधन बताते हैं, परन्तु अष्टावक्र ऐसी कोई विधि, कोई कर्म या कोई साधना नहीं बताते हैं। उनके अनुसार इस सत्य की अनुभूति के लिए कुछ करना ही नहीं है, केवल 'मैं वही हूं' इस बात का बोध ही पर्याप्त है। ये बोध आते ही उस परम स्थिति को व्यक्ति उपलब्ध हो जाता है। उसे आत्मज्ञान प्राप्त हो जाता है।
अष्टावक्र गीता में क्या है? | What is in Ashtavakra Gita?
अष्टावक्र महागीता में मुक्त होने का ही उपदेश समाहित है और यही इसका सार भी है। इसीलिए यह ग्रंथ अध्यात्म जगत का का सिरमौर ग्रंथ कहलाता है जो अन्य ग्रंथों से भिन्न है और सांख्य (दर्शन) की ही बात कहता है। अध्यात्म में ज्ञान, कर्म व भक्ति आदि तीन निष्ठाएं बतलाई गई हैं।
इसी तरह मनुष्य भी अंतर्मुखी व बहिर्मुखी के क्रम से दो श्रेणियों के हैं। जो बहिर्मुखी हैं, उन्हें भक्ति व कर्म के माध्यम से आत्मोत्थान करने को कहा गया है। यही मार्ग उनके लिए उत्तम है। लेकिन जो अंतर्मुखी हैं, उनके लिए ज्ञान या बोध का मार्ग बतलाया गया है। क्योंकि अंतर्मुखी को ज्ञान प्राप्ति सहज संभव है जबकि बहिर्मुखी के लिए असम्भव।
इस महागीता में अष्टावक्र ने जहां राजा जनक को आत्मबोध कराया वहीं उनकी भ्रांतियों का निवारण भी किया है। चूंकि जनक स्वयं शास्त्रज्ञाता, विद्वान थे और आत्मा के बारे में उन्होंने बहुत कुछ पढ़ा भी था और सुन भी रखा था। लेकिन आत्मा का साक्षात्कार कराने वाला कोई सद्गुरु उन्हें अब तक नहीं मिल पाया था। जब मिला तो मुमुक्ष जनक को आत्मज्ञान तत्काल हो गया।
श्रीमद्भगवद्गीता में योग योगेश्वर श्रीकृष्ण ने ज्ञान, भक्ति व कर्म का जहां समन्वय किया है, वहीं अष्टावक्र महागीता में ज्ञान अर्थात बोध या आत्मबोध को ही प्रमुख बतलाया गया है। इसमें सूक्ष्म अर्थात आत्मा को जानने का उपदेश दिया गया है। श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन ज्ञान को सीधे रूप में प्राप्त नहीं करता। वह तर्क पर तर्क देता है। वह क्षत्रिय था। अतः श्रीकृष्ण ने कर्म के द्वारा उसे सत्य से परिचित कराने की अनेक चेष्टाएं की। उसे बहुत समझाया।
लेकिन अर्जुन के कुछ समय में नहीं आया। वह वास्तविकता स्वीकार करने को तैयार ही नहीं हुआ। जब श्रीकृष्ण उसकी बुद्धि के आगे हार गए तब उन्होंने अपना विराट स्वरूप अर्जुन को दिखलाया। विराट स्वरूप को देखकर अर्जुन में समर्पण का भाव जाग उठा और उसे सत्य अर्थात आत्मा का बोध हो गया। आत्मबोध में समर्पण भाव ही मुख्य है।
अष्टावक्र महागीता में उपदेश दिया गया है कि जीव स्वयं को पहचाने। जिस तत्व के बल से सारी सृष्टि टिकी है और स्वयं उसका पंचभौतिक शरीर भी जिसके बल पर टिका हुआ है, उस तत्व को वह जाने। राजा जनक मुमुक्षु थे। वे मुक्ति या मोक्ष पाने के इच्छुक थे। इसीलिए उन्होंने अष्टावक्र से तीन प्रश्न पूछे- ज्ञान कैसे हो? मुक्ति या मोक्ष कैसे हो? वीतरागता (वैराग्य) कैसे हो?
मित्रों, Sampuran Ashtavakra Gita PDF बहुत सरल ग्रंथ है। इसमें कोई दाव-पेंच नहीं है; इसके निरूपण में भी कोई दाव-पेंच नहीं है। इसमें किसी प्रकार की मायिक अथवा प्राकृत ग्रंथ नहीं है। अष्टधा प्रकृति के जोड़-तोड़-मोड़ से सर्वथा विमुक्त है।