'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' संस्कृत-साहित्य के महान कवि कालिदास की सबसे सर्वश्रेष्ठ एवं अमर नाटय रचना है। इस रचना को आप जिस नज़र से भी देखे, यह आपको विश्व के अन्य प्रसिद्ध नाटकों से पृथक प्रतीत होगी। इसकी कथा का विषय, पात्रों के चरित्र का चित्रात्मक वर्णन, सुन्दर संवाद, इसकी काव्य-सौंदर्य से परिपूर्ण उपमाएँ तथा जगह-जगह पर सम्मिलित समयानुकूल सूक्तियाँ; और इन सबसे बढ़कर अलग-अलग प्रकरणों की ध्वन्यात्मकता इतनी आश्चर्यजनक है कि स्वयं संस्कृत-साहित्य के दूसरे नाटक 'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' से मुकाबला नहीं कर सकते; फिर दूसरी भाषाओं के नाटकों का तो कहना ही क्या!
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कालिदास की शकुन्तला कुलीनता, सौंदर्यबोध तथा दया की मूर्ति है। इसके अलावा कालिदास ने पूरे नाटक की कहानी का निष्पादन, भावनाओं का वर्णन इत्यादि जिस तरह से किया है, वह अद्भुत और वास्तविक है।
अभिज्ञान शाकुंतलम् की कहानी | The Story of Abhigyan Shakuntalam in Hindi
शकुन्तला का जन्म स्वर्गलोक की अप्सरा मेनका के पेट से उन मुनि विश्वामित्र से हुआ था जिनकी तपस्या से स्वर्ग के राजा इन्द्र तक भयग्रस्त हो गये थे और इसलिए उन्होंने विश्वामित्र को मोहित एवं उनकी साधना को भंग करने के उद्देश्य से परम सुंदर अप्सरा मेनका को मृत्युलोक में भेजा था। शकुन्तला के जन्म के उपरांत ही मेनका उसको वन में छोड़कर स्वर्ग लोक में चली गई थी। जंगल व वन के पशु-पक्षियों ने बालिका का भरण-पोषण किया और कण्व ऋषि की नजर पड़ने पर वे शकुन्तला को अपनी कुटीया में ले आए। पक्षियों द्वारा पालन-पोषण किये जाने की वजह से कण्व ऋषि ने उस कन्या का नाम 'शकुन्तला' रख दिया था।
कण्व ऋषि शकुन्तला को अपनी पुत्री जैसा स्नेह देते थे। वे हमेशा शकुन्तला को जिस वस्तु या सामग्री से खुशी एवं संतुष्टि मिलती उन सबको आश्रम में जुटाते रहे थे।
अभिज्ञान शाकुंतलम में इसी शकुन्तला की जिंदगी का संक्षेप में वर्णन है। इसमें अनेक हृदय को छूने वाले प्रसंगों का वर्णन किया गया है। पहला प्रसंग उस समय का है, जब दुष्यन्त और शकुन्तला पहली बार मिलते है। दूसरा प्रसंग उस समय का है, जब कण्व ऋषि शकुन्तला को अपने आश्रम से पति के घर लिए रवाना करते हैं। उस समय तो खुद कण्व ऋषि कहते हैं कि मेरे जैसे मुनि को अपने द्वारा सिर्फ पालन-पोषण की गई कन्या में यह ममता है तो जिनकी अपनी बेटियाँ पति के घर के लिए विदा होती हैं उस वक्त उनकी क्या मनोस्थिति होती होगी।
तीसरा प्रसंग है, जब नाटक के नायक दुष्यंत की सजा में शकुन्तला हाज़िर हो दुष्यंत को पहचानने से मना कर देती है। चैथा प्रसंग उस वक्त का है, जब मछली मारने वाले एक आदमी को प्राप्त दुष्यंत के नाम वाली अंगूठी शकुन्तला को दिखाई जाती है तथा पांचवाँ प्रसंग ब्रह्माजी के पुत्र मरीचि महर्षि के आश्रम में हस्तिनापुर के सम्राट दुष्यंत और शकुन्तला के मिलन का है।
अभिज्ञान शाकुन्तलम् की ख्याति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब आज से लगभग 233 वर्ष पहले सन् 1789 में अंग्रेज भाषाविद सर विलियम जोंस ने इसका अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया तब उस अंग्रजी अनुवाद का जर्मन लेखक जाॅर्ज फोरेस्टर ने सन् 1891 में जर्मन भाषा में अनुवाद कर प्रकाशित करवा दिया। उस जर्मन अनुवाद को ही पढ़कर जर्मनी के महानतम कवि योहान वुल्फगांग फान गेटे ने अपने हृदय के भावों को जिस तरह व्यक्त किया था उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा -
आज कालिदास और अंग्रेजी के कवि विलियम शेक्सपियर की तुलना की जाती है। लेकिन मेरा मानना है कि यह तुलना व्यर्थ है। दोनों कवियों के समय में बहुत ज्यादा अंतर है। कालिदास जहां पुराने समय के कवि है वही विलियम शेक्सपियर उनके कही बाद के।
मैं विलियम शेक्सपियर को नये होने की वजह से छोड़ने योग्य नहीं मान रहा हूं; बल्कि मैं तो यह कह रहा हूं कि भले ही अंग्रेजी साहित्य जगत में शेक्सपियर का सर्वश्रेष्ठ स्थान हो लेकिन कालिदास की कृतियों से उसकी तुलना करना न्याय संगत नहीं होगा। ऐसी तुलना कालिदास के एक अंश को भी छू नहीं पाती।