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Durga Kavach PDF in Hindi | श्री दुर्गा कवच

Hindi PDF of Shri Durga Kavach
Title : Sri Durga Kavach PDF
Pages : 60
Size : 3.1 MB
File : PDF
Category : Hindu Dharma / Kavach
Language : Hindi / Sanskrit
To read : Download PDF

अच्छी बातें (सच्चे भगवान से दुश्मनी) : तुम्हारे दरवाजे पर कोई सुबह-सुबह एक टोकरी कचड़ा डाल जावे तो तुम्हें कितना बुरा लगेगा! और यह काम कोई नित्य किया करे, तो तुम उसे बिना पीटे नहीं रहोगे।

अब जरा विचार करो कि मुख ही भगवान का दरवाजा है। लोग मुख से ही तो हे राम, हे गुरु, हे भगवान! कहा करते हैं। अतएव मुख ही भगवान का दरवाजा हुआ। गोस्वामी जी कहते भी हैं - "जीह देहरी द्वार"। अब बताओ! तम्बाकू, बीड़ी आदि नशीली चीजों का सेवन करने वाले सुबह-सुबह भगवान के द्वार-मुख पर गन्दी चीज रख देते हैं और एक दिन नहीं, रोज-रोज रखते हैं और प्रतिदिन अनेक बार। फिर हृदय का सच्चा भगवान कैसे खुश होगा? यह तो भगवान से दुश्मनी करना हुआ।

तम्बाकू जहां पैदा होता है और जिस तरह वह टट्टी-पेशाब से लगा-लिपटा होता है, जिस तरह वह काटकर फैलाया जाता है, कुजड़े के गन्दे पानी और पेशाब से तर होता है, कौन भला-मानुष उसको मुख में रखना चाहेगा! रात भर की पेशाब इकळी रहती है। उठते ही पेशाब कर आते हैं। पेशाब करने के बाद हाथ धोने की तो बात ही नहीं है। पेशाब का जो कुछ महाप्रसाद हाथ में लगा है, उसके सहित तम्बाकू-चूना लगे रगड़ने और रगड़कर फांक गये। इसी प्रकार उसी गन्दे हाथ से बीड़ी-सिगरेट वाले पीने लगे।

रात भर में जो गंदगी मुख में इकट्ठी थी, उसे भी बीड़ी-तम्बाकू के साथ पुनः पेट में लौटा ले गये। कुल्ला करके मुख साफ करने वाले तो बहुत कम लोग होते हैं। सुबह-सुबह बीड़ी-तम्बाकू लेने वाले ज्यादा लोग है। आदमी कितना गंदा बन गया है!

डॉक्टर बताते हैं कि तम्बाकू नाम की चीज में निकोटिन नाम वाला एक प्रकार का जहर होता है और आश्चर्य होता है कितने ही डॉक्टर स्वयं इस तम्बाकू के मर्ज से पीड़ित होते हैं, चाहे वे तम्बाकू खाते हों या बीड़ी, सिगरेट, सिगार आदि पीते हों।

  • संपूर्ण श्री दुर्गा चालीसा (PDF)

आज-कल तो सिगरेट के डिब्बे पर लिखा भी रहता है कि यह health के लिए harmful है। परन्तु आदमी कैसा अन्धा है! वह जानबूझकर जहर पीता है। इससे कैंसर का रोग भी हो जाता है।

पढ़ा-लिखा क्या, अनपढ़ आदमी भी यह मानने को तैयार नहीं है कि हम बुद्विहीन हैं। फिर पढ़े-लिखे लोगों का तो क्या कहना! उनको तो हजार गुणा अहंकार है कि हम बुद्धिवादी हैं। यदि कोई किसी को दस रुपये देकर उससे अपना सिर फोड़वा ले, तो उसे कैसे बुद्धिवादी कहा जाय! शराब, बीड़ी, सिगरेट, गांजा, भांग, चंडू, चर्स, तम्बाकू आदि पी-खाकर लोग अपने पैसे की, स्वास्थ्य की, आत्मशांति की, स्वभाव की, घर की, व्यवस्था की, परिवार की - सबकी बरबादी करते हैं, फिर वे कैसे बुद्विवादी हैं! अफसोस है कि बुद्धिवादी होने का जिसको प्रचण्ड बुखार है, वह तथाकथित पढ़ा-लिखा समाज इन व्यसनों में काफी लीन है। जो पैसे खर्च करके अपनी सब प्रकार की हानि करे उसे बुद्धिवादी कहें तो बुद्धिहीन किसे कहें!

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