प्रत्येक राष्ट्र अस्तित्व में आने के बाद सबसे पहले अपने संविधान का निर्माण कर अपनी संप्रभुता की घोषणा करता है। संविधान राज्य के प्रति नागरिकों के विश्वास की अभिव्यक्ति है जिसके माध्यम से वे राज्य से अपनी इच्छाओं एवं आशाओं को पूरी करना चाहते हैं। यहां आपको भारत के संविधान का न सबसे नया संस्करण (1 अप्रैल, 2019) पीडीएफ ई-बुक के रूप में दिया जा रहा है। डाउनलोड कर पढ़े -
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किसी देश का वही संविधान उस देश के विकास में अहम भूमिका निभा सकता है, जिसे उस देश की जनता ने खुद बनाया हो।
संविधान की आवश्यकता और अनिवार्यता
अगर देश की गैर-मौजूदगी में एक जन-समाज में जंगल-राज स्थापित होने का पूरा खतरा बना रहता है तो दूसरी ओर उस देश में संविधान न होने पर शासन-कर्ताओं की मनमानी, निरंकुशता और अत्याचार का भय उत्पन्न हो जाता है। इतिहास भी हमें यही सिखाता और बताता है कि किसी भी राज्य का शासन चलाने के लिए कुछ न कुछ नियम और कानून किसी न किसी रूप में हमेशा मौजूद रहे हैं।
प्रत्येक राज्य में फिर वह चाहे लोकतांत्रिक हो या फासीवादी अथवा निरंकुशतावादी, कुछ ऐसे नियम-कानूनों का होना अनिवार्य माना गया है जो राज्य की राजनीतिक इकाइयों या संस्थाओं और शासकों की भूमिका का स्पष्ट चित्र खींचते हुए समाज को अराजकता से दूर रख सकें। यहां तक कि बहुत अधिक निरंकुश और स्वेच्छाचारी राज्यों में भी कुछ नियमों का पालन अनिवार्य रूप से किया जाता है।
सरकारें चाहे निरंकुश हों या लोकतान्त्रिक, उसके संचालन के लिए कुछ सिद्धांत और नियम अवश्य होते हैं। सभी लोग इस तथ्य से भली-भांति परिचित हैं कि प्रत्येक संविधान में सरकार के विभिन्न अंगों और उनके आपसी संबंधों का वर्णन होता है। इसके परिणामस्वरूप सरकार के सभी अंग एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हुए बड़ी कुशलता के साथ काम करते हैं और उनमें संघर्ष, विरोध या टकराव का डर कम से कम हो जाता है।
संविधान में नागरिकों के अधिकारों का भी वर्णन किया जाता है। यह वर्णन ही इनकी सुरक्षा व्यवस्था है क्योंकि वे अधिकार सरकार और राज्य की पहुंच से बाहर या दूर हो जाते हैं। संक्षेप में, संविधान के द्वारा एक राज्य का ढांचा संस्थागत रूप में खड़ा हो जाता है, जिससे हर व्यक्ति, संस्था एवं समूह की भूमिका सुनिश्चित हो जाती है।
संविधान का अर्थ एवं परिभाषा
आम तौर पर यह समझा जाता है कि संविधान एक ऐसा लिखित आलेख होता है जिसकी रचना एक निश्चित समय में होकर उसे स्वीकार कर लिया गया हो। लेकिन यह संविधान का सही और ठीक अर्थ नहीं है। इसका कारण यह है कि संविधान का उसका लिखित रूप में होना आवश्यक नहीं होता।
एक राज्य में परंपरा से चले आ रहे नियम-कानूनों की ऐसी व्यवस्था हो सकती है, जिसको विधिवत रूप से कभी भी लिखा नहीं गया फिर भी जो शासकों और नागरिकों के दिलों-दिमाग में इतनी गहराई से अपनी पैंठ बना चुका हों कि इसके द्वारा सरकार पर प्रभावी नियंत्रण कायम करने के साथ-साथ पूरी राजनीतिक व्यवस्था में हर एक की भूमिका भी निर्धारित होती है।
ऐसे राजनीतिक समाज या देश में परंपरा चले आ रहे ये नियम-कानून ही अभिसमय (Conventions) का रूप लेकर संविधान कहलाते हैं। ब्रिटेन में मोटे तौर संविधान का यही रूप प्रचलित है यद्यपि उसके अनेक महत्वपूर्ण आधारभूत कानून या आलेख लिखित रूप में भी हमें प्राप्त हैं। किन्तु बहुतायत अलिखित नियमों या अभिसमयों की ही है।
दूसरी ओर भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, जापान, जर्मनी आदि देशों के संविधान हमें लिखित रूप में या एक आलेख के रूप में प्राप्त हैं। इस प्रकार
"संविधान नियमों का वह समूह है जो शासन-शक्ति लागू करने के उद्देश्यों को प्राप्त करता है और जो शासन के उन विविध अंगों की रचना करता है जिसके माध्यम से सरकार अपनी शक्ति का प्रयोग करती है।"
संविधान का कार्य
प्रत्येक संविधान में उस राज्य के उद्देश्य व आदर्श निहित रहते हैं जिसके आधार पर संविधान कार्य करता है। संविधान के कार्य निम्नलिखित हैंः
- शासन के उद्देश्य को स्पष्ट करना : संविधान शासन के मुख्य उद्देश्य स्पष्ट करता है। यह न केवल शासन का बल्कि जनता के भी उद्देष्य को स्पष्ट करता है। राज्य में सभी को पता रहता है कि सरकार को किस लक्ष्य की पूर्ति के लिए कार्य करना है और देश को किस दिशा में ले जाना है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में इसके लक्ष्य को स्पष्ट रूप से बताया गया है तथा इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए संविधान में प्रावधान भी किए गए हैं।
- प्रशासकीय ढांचे को निश्चित करना : संविधान सरकार के ढाँचे को निश्चित करता है। संविधान में सरकार के विभिन्न अंगों और संस्थाओं के संगठन, उनकी शक्तियों व कार्यों, उनके आपसी संबंधों आदि का स्पष्ट उल्लेख होता है, जिसके अनुसार ये कार्य करते हैं। इससे प्रत्येक अंग का कार्य सुचारू रूप से चलता रहता है।
- नागरिकों के अधिकार और स्वतंत्रताएँ सुरक्षित करना : संविधान में नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रताओं का उल्लेख रहता है। संविधान नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। कोई भी शासक या कर्मचारी इनके विरूद्ध कार्य नहीं कर सकता अर्थात नागरिकों की स्वतंत्रताओं को छीन नहीं सकता। संविधान में नागरिकों के कर्तव्यों का भी उल्लेख कर दिया जाता है। इससे राज्य सत्ता तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता में सामंजस्य बना रहता है।
- भविष्य की दृष्टि से आदर्श प्रशासनिक ढांचे का निर्माण करना : संविधान भविष्य में होने वाली संभावित आवश्यकताओं तथा स्थितियों को देखते हुए प्रशासकीय ढांचे का निर्माण करता है। संविधान ऐसे ढांचे की व्यवस्था करता है जो परिवर्तनशील आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक वास्तविकताओं का सामना आसानी से कर सके। इसके लिए संविधान में संशोधन की व्यवस्था अपनाई गई है।
- राज्य को वैचारिक आधार और संस्थाओं को वैद्यता प्रदान करना : संविधान अनी प्रस्तावना के द्वारा उस वैचारिक आधार को वैद्यता प्रदान करता है जिस पर समस्त शासकीय ढांचा खड़ा होता है और विभिन्न संस्थाएं अपना कार्य करती हैं। जिस राजनीतिक विचारधारा के अनुसार समस्त शासन को कार्य करना होता है उसका उल्लेख संविधान की प्रस्तावना में होता है और उसी के अनुसार संविधान में सरकार के विभिन्न अंगों के संगठन और उनकी शक्तियों तथा विभिन्न राजनीतिक संस्थाओं की कार्य पद्धति आदि का उल्लेख किया जाता है। इससे जनता को ज्ञान रहता है और अप्रत्यक्ष रूप में जनसहमति उन्हें प्राप्त हो जाती है।