Title : सामवेद
Pages : 191
File Size : 38.2 MB
Author : Vyasa
Category : Religion
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केवल पढ़ने हेतु: प्रजातंत्र में भी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं मंत्री आदि होते हैं। बिना गणनायक के गण नहीं चल सकता।
प्रजातंत्र का यह अर्थ नहीं है कि परिवार, समाज एवं देश का कोई मुखिया हो ही नहीं। जिस परिवार तथा समाज में सभी लोग अपने आपको मुखिया एवं स्वामी मानते हैं, वे परिवार तथा समाज शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। परिवार तथा समाज के लोगों को एक गणनायक, मुखिया एवं मालिक मानना होगा और उसमें श्रद्धा रखनी होगी तथा उसके निर्देशानुसार चलना होगा।
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हां, परिवार एवं समाज के मालिक एवं मुखिया को उदार, सहनशील, स्नेहिल, समतालु और निष्पक्ष होना चाहिए। मुखिया को पुलिस-इंस्पेक्टर एवं थानेदार के समान नहीं बनना चाहिए। जिस परिवार तथा समाज का स्वामी हरक्षण गरम रहता है, असहनशीलता रखता, कटु बोलता, एक सदस्य के पीछे दूसरे को गुप्तचर लगाता, भेद डालता, अपने दोषों को दूसरों पर मढ़ता और किसी का पक्ष एवं किसी का तिरस्कार करता, वह परिवार तथा समाज को नहीं चला सकता। वह थोड़े दिनों में परिवार तथा समाज से स्वयं तिरस्कृत हो जाता है।
जो मालिक निस्वार्थी, उदार एवं सहनशील होगा, वही परिवार एवं समाज को कुशलतापूर्वक चला सकता है। मुखिया मुख के समान होना चाहिए। मुख खाता है, परन्तु केवल अपने लिए नहीं। उसका खाया-पिया हुआ पूरे शरीर का पोषण करता है। शरीर में छोटे अंग हों या बड़े, सबका पोषण पूरे परिवार तथा समाज का एक साथ तथा एक समान पोषण करें। इसके साथ उसे आवश्यकता और योग्यता का भी ध्यान रखना पड़ेगा।
बच्चों को स्नेह
घर के सभी बच्चों को स्नेह मिलना चाहिए। यह नहीं कि एक बच्चे को ऊंचे कपड़े ला दिये और दूसरे के बच्चे फटी हालत में घूमते रहें। परिवार के सभी बच्चों के शरीर और कपड़ों की सफाई होनी चाहिए तथा उनको समान पोषण एवं स्नेह मिलना चाहिए। बच्चे के पांच वर्ष की उम्र तक उनका दुलार, पांच वर्ष की उम्र से सोलह वर्ष की उम्र तक उन पर निगरानी एवं संस्कारों को सुधारने की कड़ी दृष्टि तथा उसके बाद उनसे भाईचारे का व्यवहार रखकर उनके मंगल की उन्हें राय देना - यह ज्वलंत नीति है। जवान लड़कों को डांटकर सुधारने की भूल न करनी चाहिए। उन्हें एकांत में स्नेहपूर्वक, सम्मान देते हुए हानि-लाभ सुझाकर सुधारने की प्रेरणा दी जा सकती है।
जवान लड़के को केवल डांटते एवं कोसते रहोगे, तो वह तुम्हारा विरोधी और अयोग्य बन जायेगा और यदि उसे सम्मान देते हुए स्नेहपूर्वक सलाह दोगे और कार्य करने की जिम्मेदारियां दोगे, तो वह तुम्हारा अनुगामी एवं कार्यकुशल बन जायेगा। सम्मान सबको प्रिय है। पुत्र और शिष्य भी अपना अपमान नहीं चाहते। बच्चे पैदा कर लेना तथा शिष्य बना लेना कोई बड़ी बहादुरी नहीं है। बहादुरी है स्नेंह तथा सम्मान पूर्वक उनके क्षेत्र में उन्हें प्रगति करने के लिए प्ररित करना। बच्चों तथा शिष्यों को उनकी दिशा में उन्हें शिक्षित करना चाहिए तथा सभ्य व्यवहार बरतने की सीख देनी चाहिए।
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स्त्रियों का आदर
स्त्रियां घर की लक्ष्मी हैं। उनका अनादर करने से लक्ष्मी रूठ जाती हैं- यह केवल कहावत नहीं, तथ्य है। जिस परिवार में स्त्रियों का मूल्य नहीं समझा जाता, वह विकसित नहीं हो सकता। बच्चों की जन्मदात्री, संस्कारदात्री, पोषणकत्र्री एवं प्रथम शिक्षित माता ही है। नारी ही माता होती है। यदि नारी का ही अनादर होगा, तो परिवार एवं मानव-समाज का जड़ से विध्वंस होगा।