विजयनगर साम्राज्य में राजा कृष्णदेव राय के राज्यकाल के दौरान दिल्ली सल्तनत पर मुहम्मद सुल्तानों का शासन था। सुल्तान अत्यन्त शक्तिशाली और पूरे उत्तर-भारत का शासन करते थे। अ बवे भारत के अन्य भागों पर भी कब्जा करना चाहते थे खासतौर पर उन भागों पर जहाँ हिन्दू राजा राज्य कर रहे थे। इसके लिए वे कोई भी तरीका अपना सकते थे।
एक बार दिल्ली के सुल्तान ने राजा कृष्णदेव राय को परेशान करने के इरादे से उन्हें एक दूत द्वारा शादी में आने का निमन्त्रण भिजवाया।
जब महाराज ने शादी का निमन्त्रण पढ़ा तो वे ही नहीं, पूरा दरबार भौंचक्का रह गया। उस निमन्त्रण पत्र में लिखा था -
हम अपने राज्य के नये खुदे कुएँ की शादी कर रहे हैं। इस शादी में हम आपके शहर के सभी कुँओं को आमन्त्रित करते हैं कि वे इस शुभावसर पर हमारी खुशी में शरीक होकर हमारा सम्मान बढ़ायें। इस शुभावसर पर उनकी उपस्थिति प्रार्थनीय है।
स्थान: दिल्ली
दिनांक: 24.07.18
निमन्त्रण भेजने वाले
दिल्ली के सुल्तान
बात यहीं खत्म नहीं होती थी। उस निमन्त्रण-पत्र के साथ एक चेतावनी पत्र और था, जिसमें लिखा था कि राजा कृष्णदेव राय के लिए सभी कुँओं को शादी में भेजना अनिवार्य है। न भेजने पर उन्हें और उनके राज्य को दिल्ली के सुल्तान के कोप का भोजन बनना पड़ेगा।
ये दोनों पत्र पढ़ कर महाराज को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें। निमन्त्रण बहुत ही बेतुका था। सभी जानते थे कि कुँए एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं जा सकते। परेशान होकर महाराज ने दरबारियों और अष्टदिग्गजों की मदद माँगी, पर कोई भी कुछ न बता सका कि इस समस्या को किस प्रकार सुलझाएँ, जिसमें दिल्ली और विजयनगर के बीच लड़ाई छिड़ने से बच जाये।
कहीं से कोई रास्ता न सूझने पर राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम को बुलाया और उसे पूरी बात बतायी। सारी बात सुनकर तेनालीराम ने महाराज से कहा, "महाराज! इस निमन्त्रण-पत्र के द्वारा दिलली का सुल्तान हिन्दुओं को जलील करना चाहता है। आप तो जानते ही हैं कि हिन्दूधर्म में नये खुदे कुँओं की प्राण-प्रतिष्ठा करने की प्रथा है। सुल्तान ने जान-बूझकर प्राण-प्रतिष्ठा के आयोजन को विवाह का नाम देकर आपको यह निमन्त्रण पत्र भेजा है।" कुछ रूक कर तेनालीराम बोला, परन्तु चिन्ता की कोई बात नहीं है। न तो निमन्त्रण-पत्र, न ही वह चेतावनी-पत्र हमारा कुछ बिगाड़ सकता है। आप बेफिक्र रहें।
कल तक मैं इस समस्या का कोई न कोई समाधान निकाल लूँगा।
अगले दिन राजदरबार में दिल्ली के सुल्तान के दोनों पत्रों की चर्चा गरम थी। सभी लोग परेशान थे और इस समस्या का हल अपनी-अपनी समझ से निकालने की कोशिश कर रहे थे। राजा कृष्णदेव राय के आते ही सब चुप हो गये। जब महाराज राजगद्दी पर बैठ गये, तो तेनालीराम खड़ा हुआ और बोला, 'महाराज! मैंने दिल्ली के सुल्तान के पास भेजने के लिए यह जवाब तैयार किया है।'
आप सब भी सुनें|
सेवा में,
श्रीमान दिल्ली के सुल्तान
आपके द्वारा भेजे गये निमन्त्रण का बहुत-बहुत धन्यवाद। हम आपके कुँए की शादी की आपको बधाई देते हैं। हम तहेदिल से आपके शुक्रगुजार हैं कि आपने इस शुभ अवसर पर हमें याद किया और इसमें सम्मिलित होने के लिए आमन्त्रित किया। निमन्त्रण मिलते ही हमने अपने राज्य के सभी कुँओं को इसकी सूचना पहुँचा दी, परन्तु वे सभी नाराज हैं कि आपके कुँए उनके विवाह में सम्मिलित नहीं हुए थे।
इसलिए, हमारी आपसे विनती है कि एक बार आप अपने कुँओं को यहाँ निमन्त्रण देने के लिए हमारे दूत के साथ भेज दें। इस निमन्त्रण के बाद हम आपको आश्वासन देते हैं कि हमारे कुँए आपके कुँए के विवाह में अवश्य आयेंगे। हम भी उनके साथ दिल्ली अवश्य पधारेंगे।
आशा है, शीघ्र ही आपके कुँओं से भेंट होगी।
सधन्यवाद
श्री कृष्णदेव राय
महाराजाधिराज विजयनगर साम्राज्य
पत्र का मसौदा सुनकर पूरा दरबार तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।
महाराज ने एक दूत के साथ यह सन्देश-पत्र दिल्ली के सुल्तान के पास भेज दिया। पत्र पढ़ते ही दिल्ली का सुल्तान चकरा गया और उसके मुँह से निकला, "हम कुँओं को तुम्हारे साथ कैसे भेज सकते हैं?"
दूत क्या जवाब देता, बेचारा चुपचाप सिर झुकाए खड़ा रहा। सिर धुनते हुए सुल्तान ने दूत को खाली हाथ वापस भेज दिया। अब उसने हिन्दुओं को नीचा दिखाने या उनका मजाक उड़ाने का इरादा छोड़ दिया था।
शिक्षा (Tenali's Moral): समझदारी और चालाकी में जमीन-आसमान का अन्तर है। कई बार सामने वाले को सबक सिखाने के लिए चालाकी से भी काम लेना पड़ता है।
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