एक बार की बात है- एक राजा अपने पालतू बंदर सेवक के साथ रहता था। वह राजा का विश्वासपात्र और भक्त था। राजमहल में कहीं भी बेरोकटोक आ जा सकता था। मंत्रियों को यह अच्छा नहीं लगता था। एक बार उन्होंने राजा से जाकर कहा- "बन्दर को इतनी छूट देकर आप अपना ही बुरा कर रहे हैं। एक बंदर कभी भी चतुर और स्वामीभक्त सेवक नहीं बन सकता है। कहीं यह आपके लिए खतरा न बन जाए।"
मंत्रियों की सलाह राजा को पसंद नहीं आई बल्कि वह उन पर नाराज हो गया। कुछ दिनों के बाद भोजन के बाद राजा अंतःपुर में विश्राम करने गया। पीछे-पीछे बंदर भी गया। बिस्तर पर लेटकर राजा ने बंदर सेवक से कहा कि वह सोने जा रहा है। कोई उसे सोजे समय परेशान न करे।
राजा सो गया और बंदर पंखा झलने लगा। अचानक एक मक्खी आ गई और इधर-उधर उड़ने लगी।
पंखे से बंदर उसे बार-बार हटाता पर वह बार-बार आकर राजा की छाती पर बैठ जाती। काफी देर बाद बंदर को क्रोध आ गया और उसने मक्खी को मजा चखाने की सोची।
फिर से जब मक्खी राजा के ऊपर बैठी तो उसने कटार हाथ में ले लिया और खींचकर निशाना साध्यकर मक्खी को मारा। मक्खी तो झट से उड़ गई पर कटार सीधे राजा के सीने में धूंस गई। बंदर के इस मूर्खतापूर्ण व्यवहार से राजा की मृत्यु हो गई और बंदर आश्चर्यचकित सा सब समझने की चेष्टा करता रहा।
शिक्षा (Panchatantra Story's Moral): मूर्ख सेवकों से बिना सेवक रहना भला है।
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