एक जंगल में भासुरक नाम का शेर रहता था। वह निर्दयतापूर्वक प्रतिदिन कई जानवरों को मारा करता था। एक दिन सभी जानवर एक साथ शेर के पास गए और बोले, "महाराज! आपके भोजन के लिए प्रतिदिन एक पशु आ जाया करेगा। आपको शिकार के लिए जाना नहीं पड़ेगा।"
यह सुनकर शेर ने कहा -"प्रस्ताव तो अच्छा है। पर यदि एक दिन भी जानवर न आया तो मैं तुम सबको मार डालूंगा।"
पशु निर्भय होकर घूमने लगे, प्रतिदिन एक पशु आ जाया करता था। एक दिन खरखोश की बारी आई। जाते हुए खरगोश ने सोचा, ‘हूं, कोई तो युक्ति सोचनी पडे़गी जिससे मैं भी बचूं और शेष जानवर भी...।‘
मार्ग में उसने एक गहरा कुआं देखा। झांका तो परछाई दिखाई दी। पहले तो वह भयभीत हुआ फिर उसे एक युक्ति सूझी। काफी धीरे-धीरे चलता हुआ वह गुफा में पहूंचा। शाम ढलने वाली थी। भूखे शेर ने छोटे से खरगोश को देखकर कहा, ‘चल खरगोश, एक तो तू इतना छोटा है ऊपर से इतनी देर आ रहा है। तुझे खाकर सुबह मैं सारे जानवरों को मार डालूंगा।‘
खरगोश ने विनय से सिर झुकाकर कहा, "स्वामी! इसमें न मेरी गलती है और न ही अन्य जानवरों की। छोटे होने के कारण उन लोगों न पांच खरगोश भेजे थे। पर....पर....उस बड़े शेर ने चार को खा लिया और मैं किसी तरह बचते हुए आया हूं....आपको बताने..."
अधीर होकर भासुरक गुर्राया, "गर्र र र, क्या, दूसरा शेर...?" खरगोश ने कहा, "उस शेर ने कहा - मैं हूं जंगल का राजा यदि किसी और में शक्ति है तो सामने आए।‘ भासुरक ने क्रोध से उबलते हुए कहा, ‘लो मुझे उसके पास ले चलो। देखू तो जरा कौन है यह राजा..."
आगे-आगे खरगोश, पीछे-पीछे भासुरक, दोनों कुएं के पास पहुंचे। खरगोश ने कहा, "आपको देखते ही वह कपटी अपने दुर्ग में छिप गया है। आइए महाराज मैं आपको दिखाता हूं।" भासुरक ने कुएं पर चढ़कर भीतर देखा तो उसे पानी में अपनी परछाई दिखाई दी। वह जोर से गरजता तो प्रतिध्वनि हुई। क्रोध में वह दूसरे शेर के ऊपर कूद पड़ा। इस प्रकार मूर्ख शेर का अंत हो गया और जंगल में जानवर प्रसन्नतापूर्वक रहने लगे।
शिक्षा (Moral): बुद्धी बड़ी बलवान।
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