एक जंगल में एक चतुर गीदड़, बाघ, चूहा और नेवला के साथ मिल-जुल कर रहता था। एक दिन चारों मित्र टहलने निकले तो उन्होंने एक सुंदर हिरन देखा। जब उन्होंने उसे पकड़ने की कोशिश की तो हिरन बहुत तेजी से भाग गया।
चूहे ने एक तरकीब सोची। "जब हिरन सो रहा होगा," चूहा बोला, "मैं उसके पैर कुतर दूंगा। फिर वह दौड़ न सकेगा और बाघ उस पर झपट लेगा।" सब मान गए कि यह विचार अच्छा है। जब हिरन वन में सो रहा था, चूहे ने उसके पैरों को कुतर-कुतर कर उनमें घाव भर दिए। हिरन उछला पर खड़ा न हो सका। पेड़ के पीछे छिपा बाघ हिरन पर झपटा और उसने उसे मार डाला।
गीदड़ ने मन में सोचा, 'मैं अकेले ही पूरा हिरन क्यों न खांऊ?' वह प्रकट रूप में बोला, "मेरे विचार से हम सब को नदी में स्थान कर लेना चाहिए। तुम तीनों जाओ, मैं हिरन की निगरानी करूंगा।"
बाघ सबसे पहले नहाकर लौट आया। "शुरू करें?" उसने गीदड़ से पूछा। "मुझे बहुत भूख लगी है।"
"वैसे...." चालाक गीदड़ बोला, "चूहा अभी यहीं था। उसने मुझसे कहा वह तो हिरन को छुएगा भी नहीं।"
"क्यों नहीं छुएगा?" बाघ ने पूछा।
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गीदड़ बोला, "चूहे ने मुझे बताया कि यह तो शर्म की बात है कि बाघ, चूहे का पकड़ा शिकार खाए। उसने ऐसे कायर जानवर के साथ भोजन करने से मना कर दिया और घर चला गया है।"
"मैंने तो यह सोचा ही नहीं," बाघ ने कहा। चूहे को यह हिरन खा लेने दो। मैं फिर कभी उसकी मदद नहीं लूंगा।
"सुनो चूहे," चतुर गीदड़ बोला, "जानते हो नेवले ने मुझसे क्या कहा है?"
"क्या?" चूहे ने पूछा।
'अरे!' गीदड़ बोला, उसने कहा कि वह हिरन को नहीं खाएगा क्योंकि यह बाघ के छूने से जहरीला हो गया है। उसकी जगह उसने तुम्हें खाने का निश्चय किया है।
"हे भगवान! हे भगवान!" आंसू बहाते हुए चूहा बोला। 'क्या नेवले ने सचमुच ऐसा कहा?'
"हां, उसने कहा," गीदड़ बोला।
चूहे ने आसपास देखा और नेवले को आते देखकर "हाय! हाय!" करता वह जंगल में भाग गया।
"और सब कहां हैं?" नेवले ने अपने छोटे-छोटे पंजे आपस में मलते हुए पूछा। 'काश वे जल्दी आ जाएं। मैं बहुत भूखा हूं।'
गीदड़ बड़ा निर्दय दिखाई दे रहा था। 'सुनो, नेवले,' उसने कहा, "मैं पूरा हिरन अकेले खाऊंगा। मैंने बाघ और चूहे को भगा दिया है और अब मैं तुम्हें मार डालूंगा।"
"मुझे विश्वास नहीं होता," नेवले ने कहा, यद्यपि उसे बहुत डर लग रहा था। 'म-म-मुझे व-व विश्वास नहीं होता।'
"देखो," गीदड़ बोला और उसे जंगल की ओर जाते बाघ व चूहे के पैरों के निशान दिखाए।
"नमस्कार!" नेवले ने बड़ी नम्रता से गीदड़ को प्रणाम किया और धीरे-से पीछे जंगल की ओर सरकने लगा। "आखिर मैं इतना भूखा भी नहीं हूं।" वह मुड़ा और जितनी तेज भाग सकता था वहां से भाग लिया। उसने अपने घर सुरक्षित पहुंच कर ही सांस ली।
और गीदड़ ने क्या किया? हँसता गया, हँसता गया और फिर वाकई बढ़िया दावत खाने बैठ गया।
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