दोस्तों, प्रेरक भाषणों में बहुत शक्ति होती हैं। इन भाषणों में आपके जीवन में अच्छे बदलाव लाने कि कला होती हैं। इन्हीं बातों से प्रेरित होकर मैंने यहां 5 भाषणों का संग्रह प्रस्तुत किया है जो समय-समय पर विभिन्न प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा दिए गए है। इन inspirational speeches ने लाखों लोगों को प्रेरित किया है। आप इन्हें जरूर पढ़े।
आप इन भाषणों को PDF में नीचे दिए लिंकों पर क्लिक कर आसानी से download कर सकते है।
Hindi Motivational Speeches PDF
- Stay Hungry Stay Foolish by Steve Jobs - Stanford University के दीक्षांत समारोह में दिया गया सबसे प्रसिद्ध भाषण।
- कैसे जलाये रखें अपने अंदर की चिंगारी को - by Chetan Bhagat
- आप इस दुनिया में क्यों आये हैं? - Motivational Speech for Students
- जीवन सिर्फ पैसा नहीं है - by Ratan Tata
- I have a Dream - मार्टिन लूथर किंग का सबसे famous speech
- Tryst with Destiny - पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा देश की आज़ादी के समय दिया गया भाषण
- स्वामी विवेकानंद द्वारा विश्व धर्म सम्मेलन में दिया गया भाषण - Swami Vivekananda Speech PDF
- तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा! - Subhash Chandra Bose Hindi Speech PDF
परंतु अगर आप प्रभावपूर्ण भाषण देने कि कला के विषय (art of speech) में जानना चाहते है तो अमेरीका के सबसे प्रसिद्ध विचारक स्वेट मार्डन का यह लेख पढ़े-
भाषण कला को जानिए
मानव जाति में भाषण कला को सर्वोत्तम माना गया है। इससे आप लोगों के मनों को बड़ी आसानी से जीत सकते हैं। भाषण करने की कला जानना सभी युवकों के लिए अनिवार्य है चाहे वह वकील, इन्जीनियर या डॉक्टर कुछ भी बने। जब भी कोई प्राणी जनता के सामने अपने विचारों को प्रकट करने का निरंतर प्रयत्न करने लगता है तब जितनी जल्दी-जल्दी उसके शब्द लोगों के सामने प्रकट होने लगते हैं, उतनी ही तीव्रता से लोग उसकी ओर खिंचते जाते हैं। उसके सफल वक्ता होने के कारण उसके प्रत्येक शब्दों में वह भाव छिपा होता है जो सहज ही किसी के मन को जीत लेने वाला होता है। चाहे कोई भी व्यक्ति जनता के सामने भाषण करना चाहे अथवा न चाहे किन्तु उसमें एक विश्वास यह अवश्य होना चाहिये कि वह एक सफल वक्ता है, वह अपने विचारों को दूसरों पर भली-भांति स्पष्ट कर सकता है।
वाक् शक्ति केवल भाषण के रूप में नहीं मोहती वरन् यह कभी संगीत के रूप में तो कभी चित्रकला के रूप में प्रकट होकर किसी के अंतरंग में उतर जाती है तो कभी संगीत का रूप लेकर अपनी ओर मोह लेती है। भाषण एक ऐसा माध्यम है जिसमें व्यक्ति की निर्णयात्मक शक्ति, विद्या, पौरूष और चरित्र की अभिव्यक्ति होती है। भाषण देना या अच्छा वक्ता होना सबके वश की बात नहीं है। बहुत से लोग ऐसे देखे जाते हैं जो प्रतिष्ठित पदों पर पहुंचने के बाद भी जनता के सामने एक शब्द भी निकालने में झिझक महसूस करते हैं। किन्तु यह उनकी कमज़ोरी कही जाय अथवा आदत, किन्तु यह आदत है जिसको विद्यार्थी (student) जीवन में बदला जा सकता है। जैसे हम अपने विद्यार्थी जीवन से बाहर आते हैं, फिर नये सिरे से इस आदत को डालना सम्भव नहीं होता।
मैंने अक्सर बड़े-बड़े विद्वानों को स्टेज पर आकर घबराते देखा है। भाषण करने के लिए उठते ही उनका शरीर काँपने लगता है। ज़बान लड़खड़ाने लगती है, इतने ज्ञानी होने पर भी वे अपने आपको बहुत छोटा महसूस करते हैं। कितने दुःख की बात है कि एक अनपढ़ और गंवार आदमी तो अपने भाषण की शक्ति से वाह-वाही लूट लेता है। मगर पढ़ा-लिखा बुद्धीमान और ज्ञानी जनता के सामने कुछ न बोल पाने के कारण लज्जित होता है।
जो आदमी अपने विचारों को प्रकट करने का प्रयत्न करते हैं उन्हें अपनी भाषा सुबोध, साफ, स्पष्ट, संक्षिप्त, भावपूर्ण और आम जनता के सामने बोले जाने वाली सीधी-साधी और मुहावरे के अनुकूल बनानी पड़ती है। साथ-साथ उन्हें अपना उच्चारण भी सुधारना पड़ता है। पुस्तक की भाषा में तो सैकड़ों प्रतिबन्ध हैं, भाषण करने वाले को यही लाभ है कि वह हर प्रकार से आज़ाद है।
लार्ड चैस्टर फील्ड ने कहा है कि-
प्रत्येक व्यक्ति को चाहिये कि बुरे शब्दों के बजाय अच्छे शब्दों को ही चुने और बात को बुरे ढंग से कहने के बजाय अच्छे ढंग से कहे। उसे अपने आकार-प्रकार , चेष्टाओं से गौरव एवं शालीनता प्रकट करनी चाहिए। यदि वह सतर्क तथा पूर्वाभ्यास के लिए प्रयत्नशील रहे तो वह श्रोताओं को अपने साथ मिलाने में सफल हो सकता है। जिस विषय पर आपको आतचीत करनी है उस विषय के बारे में पहले कुछ जानने का प्रयत्न करना चाहिए। उस विषय पर ही अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया तो श्रोताओं का दिल जीत लेना कोई बड़ी बात नहीं है।
जो व्यक्ति जिस समय भी भाषण (hindi speech) देने के लिए खड़ा होने लगता है उसे सर्वप्रथम यह सोचना चाहिए कि सर्वप्रथम क्या बोलना है। फिर अपने भाव को अत्यन्त प्रभावशाली और उत्साहपूर्वक कहना चाहिए। इसके साथ ही उसकी वाणी एक नपे-तुले सांचे में ढली होनी चाहिए। साथ-साथ उसके भाव भी विचारों के साथ बदलते रहें।
भाषण का विषय तो एकरसता अथवा नीरसता से बढ़कर जनता को उबाने का कोई कारण नहीं होता। यदि एक ही नीरस तरीके से एक ही बात बार-बार दोहराई जाये तो लोग बहुत जल्दी ही बोर हो जायेंगे। ध्यान रखिये लोग सदैव उसी बात को सुनना चाहेंगे जो बात उनकी मुख्य समस्याओं पर प्रकाश डालने वाली होगी। ग्लैडस्टन ने कहा है-
'सौ में से निन्यानवे व्यक्ति जो भी उन्नति नहीं करते और मध्यम दर्जे के हो जाते हैं क्योंकि उन्होंने अपनी वाणी को प्रशिशित करने की पूरी योग्यता का ज्ञान अर्जन ही नहीं किया।'
कई बार कोई नवयुवक अपने मत को ठीक करने का प्रयत्न करता है वह अपनी पूरी शक्ति का इतना विकास करता है जितना अन्य किसी भी साधन से नहीं हो पाता। यही प्रबल उत्साह उसकी बुद्धी को तेज़ बनाता है। जो लोग नहीं करते भूल उन्हीं से होती है। जो अभ्यास और अनुभवों के मार्गों से गुजर चुके होते हैं, वे अपनी कुशलता को निरंतर बढ़ाते रहते हैं। भाषाण के बारे में मन का डरे रहना व्यक्तित्व के विकास के लिए बहुत घातक है।
कई लोग भावुक होते हैं और सैकड़ों, हज़ारों दृष्टि को अपनी ओर लगी देखकर ही घबरा जाते हैं। उन सबको देखकर ही उनका साहस जवाब दे जाता है। वे बोलने की हिम्मत भी नहीं करते। कई बार प्रश्न ऐसा आ जाता है कि वे मुंह खोलते की हिम्मत भी नहीं करते। हालांकि उस प्रश्न का उत्तर उनके पास होता है पर समय आने पर ही वे घबरा जाते हैं। और बस कुछ जानते हुए भी अनजान बनना पड़ता है। उन्हें वाद-विवाद सभाओं, साहित्यिक गोष्ठियों में मूक बनना पड़ता है। उनकी इच्छा तो होती है कि वे कुछ बोलें, परन्तु अभयास की कमी के कारण उनके अन्दर एक डर बना रहता है। जो उन्हें बोलने से रोक देता है।
यदि वे अपने अन्दर विश्वास पैदा करके बोलना शुरू करें तब उनकी वाणी की ध्वनि ही उन्हें सशक्त कर सकती है। परन्तु वे मूक बनकर देखते ही रहते हैं। जबकि उनसे कम योग्यता वाले लोग भाषण करके लोगों की नजरों में अपना अलग स्थान बनाकर प्रसन्नता से भर उठते हैं। डर की भावना श्रोताओं को देखकर उतनी पैदा नहीं होती जितनी विचारों से होती है। डर आपका सबसे बड़ा शत्रु है। यही आपके मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है। यही तो एक प्रकार की हीन भावना है जिसे आपको जड़ से निकालना होगा। कोई भी वक्ता अपने भाषण (hindi speech) को तब तक सफल नहीं बना सकता जब तक वह अपने अन्दर समाई हीन भावना और अहंकार जैसे विषैले तत्वों का त्याग न कर दे।