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हिन्दी अपठित गद्यांश उदाहरण तथा हल करने की विधि सहित


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'अपठित गद्यांश' के अंतर्गत किसी अपठित अनुच्छेद को पढ़कर उससे संबंधित प्रश्नों के उत्तर देने होते हैं। ध्यान यह रखना होता है कि उत्तर वही दिए जाएँ जो उस अनुच्छेद में दिए गए हों। छात्र को अपनी ओर से नई जानकारी नहीं देनी चाहिए।

हल करने की विधि (Process of Solving Gadyansh )

  • सबसे पहले आपको चाहिए कि आप गद्यांश को सावधानीपूर्वक पढ़ें। यदि कुछ शब्द या वाक्य समझ न आए, तो भी घबराने की आवश्यकता नहीं।


  • अब आप नीचे दिए गए प्रश्नों को पढ़ें।

  • इसके पश्चात् आप प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए अनुच्छेद को फिर से पढ़ें। जिन-जिन प्रश्नों के उत्तर मिलते चले जाएँ, उन पर निशान लगाते चले जाएँ तथा उत्तरों को रेखांकित करते चले जाएँ।

  • जिन प्रश्नों के उत्तर अस्पष्ट रह गए हों, उन्हें फिर से सावधानीपूर्वक पढ़ें। सोचने पर उनके उत्तर अवश्य मिल जाएँगे। बार-बार पढ़ने से आपकी सारी समस्याएँ हल हो जाएँगी।


शीर्षक का चुनाव- शीर्षक चुनते समय ध्यान रखें-

  1. शीर्षक मूल विषय से संबंधित होना चाहिए।
  2. शीर्षक संक्षिप्त, आकर्षक तथा सार्थक होना चाहिए।
  3. शीर्षक में अनुच्छेद से संबंधित सारी बातें आ जानी चाहिए।
  4. शीर्षक का व्याप मूल विषय से अधिक नहीं होना चाहिए।

सावधानी: बहुविकल्पी उत्तरों में कई बार मिलते-जुलते अर्थ वाले विकल्प आ जाते हैं। ऐसी स्थिति में प्रयुक्त शब्द की शक्ति, सीमा और अर्थ-भार पर ध्यान रखना चाहिए। स्वयं से पूछना चाहिए कि क्या दिए गए उत्तर का संबंध पूरे अनुच्छेद से है या उसमें कुछ कमी या अधिकता है। इस प्रकार आप ठीक उत्तर का चुनाव कर सकेंगे।


हिन्दी अपठित गद्यांश के उदाहरण (Examples of Apathit Gadyansh)


निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर उनसे संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1. आज की भारतीय शिक्षित नारी को गृहणी के रूप में न देख पाना पुरूषों की एकांगी दृष्टि का परिणाम है। विवाह के बाद बदली हुई उनकी मनः स्थिति तथा परिस्थितियों की कठिनाइयों पर ध्यान नहीं दिया जाता। उसकी रूचियों और भावनाओं की उपेक्षा की जाती है। पुरूष यदि अपने सुख के साथ पत्नी के सुख का ध्यान रखे, तो वह अच्छी गृहणी हो सकती है। पत्नी और पति दोनों का कर्तव्य है कि वे एक-दूसरे के कार्य में हाथ बँटाएँ और एक-दूसरे की भावनाओं, इच्छाओं और रूचियों का ध्यान रखें। आखिर नारी भी तो मनुष्य है। उसकी अपनी जरूरतें भी हैं और वह भी परिवार में, पड़ोस तथा समाज में सम्मान पाना चाहती है। यदि नारी त्याग की मूर्ति है, तो पुरूष को बलिदानी होना चाहिए।

प्रश्न- 1. किसकी रूचियों और भावनाओं की उपेक्षा की जाती है?

(क) नारी की
(ख) पुरूष की
(ग) संत की
(घ) कवि की

2. पुरूष को अपने सुख के साथ और किसके सुख का ध्यान रखना चाहिए?

(क) स्वदेशी के
(ख) पत्नी के
(ग) पड़ोसी के
(घ) विदेशी के

3. सुखी वैवाहिक जीवन के लिए पत्नी और पति को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

(क) एक-दूसरे के नाम में हाथ बँटाएँ
(ख) एक-दूसरे की भावनाओं का ध्यान रखें
(ग) एक-दूसरे की इच्छाओं और रूचियों का ध्यान रखें
(घ) उपर्युक्त तीनों

4. यदि नारी त्याग की मूर्ति है तो पुरूष को होना चाहिए-

(क) स्वार्थी
(ख) परिश्रमी
(ग) बातूनी
(घ) बलिदानी

5. इस गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक है-

(क) सुखी वैवाहिक जीवन का आधार
(ख) दुखी वैवाहिक जीवन का आधार
(ग) भारतीय नारी
(घ) अच्छी गृहणी

उत्तर- 1.(क), 2.(ख), 3.(घ), 4.(घ), 5.(क)

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2. जब कोई युवा अपने घर से बाहर निकलता है तो पहली कठिनाई उसे मित्र चुनने में पड़ती है। यदि उसकी स्थिती बिलकुल एकांत और निराली नहीं रहती तो उसकी जान-पहचान के लोग धड़ाधड़ बढ़ते जाते हैं और थोड़े ही दिनों में कुछ लोगों से उसका हेल-मेल बढ़ते-बढ़ते मित्रता के रूप में परिणत हो जाता है। मित्रों के चुनाव की उपयुक्तता पर उसके जीवन की सफलता निर्भर हो जाती है, क्योंकि संगति का गुप्त प्रभाव हमारे आचरण पर बड़ा भारी पड़ता है। हम लोग ऐसे समय में समाज में प्रवेश करके अपना कार्य आरंभ करते हैं, जबकि हमारा चित्त कोमल और हर तरह का संस्कार ग्रहण करने योग्य रहता है। हमारे भाव अपरिमार्जित और हमारी प्रवृत्ति अपरिपक्व रहती है। हम लोग कच्ची मिट्टी की मूर्ति के समान रहते हैं, जिसे जो जिस रूप में चाहे, उस रूप में ढाले-चाहे राक्षस बनाए, चाहे देवता।

प्रश्न- 1. घर से निकलने पर किसी युवा को पहली कठिनाई क्या होती है?

(क) खान-पान की
(ख) मित्र चुनना
(ग) रहने को घर
(घ) धन की कमी

2. हेल-मेल बढ़ते-बढ़ते किस रूप में परिणत हो जाता है?

(क) जान-पहचान के रूप में
(ख) शत्रुता के रूप में
(ग) सफलता के रूप में
(घ) मित्रता के रूप में

3. हमारे आचरण पर किसका भारी प्रभाव पड़ता है?

(क) संगति का
(ख) समाज का
(ग) मित्रों का
(घ) संबंधियों का

4. किस अवस्था में हमारे भाव अपरिमार्जित और हमारी प्रवृत्ति अपरिपक्व रहती है?

(क) बाल्यावस्था में
(ख) वृद्धावस्था में
(ग) युवावस्था में
(घ) बचपन में

5. उपर्युक्त गद्यांश के लिए उचित शीर्षक बताइए।

(क) युवावस्था और मित्रता
(ख) युवाओं के मित्र
(ग) युवाओं का जीवन
(घ) युवा वर्ग

उत्तर- 1.(ख), 2.(घ), 3.(क), 4.(ग), 5.(क)

प्रश्न अभ्यास

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए।

1. प्रणाम का भारतीय संस्कृति में बड़ा महत्व है। यह अपने से बड़ों-श्रद्धेय तथा आदरणीय जनों के प्रति आत्मीयता का प्रतीक है। माता-पिता के अतिरिक्त समाज के सभी वृद्धजनों, अतिथियों, साधु-संतों को अपनी परंपरा के अनुसार प्रणाम करना मानव-धर्म है। वस्तुतः प्रणाम जीवन रूपी क्षेत्र में आशीर्वाद का अन्न उगाने का बीजमंत्र है। प्रणाम के संबंध में मनु की मान्यता है कि ‘वृद्धजनों‘ व माता-पिता को जो नित्य सेवा-प्रणाम से प्रसन्न रखता है, उसकी आयु-विद्या-यश और बल चारों की वृद्धी होती है। प्रणाम के बल पर ही बालक मार्कंडेय ने सप्तर्षियों से चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त किया था। महाभारत के युद्ध के आरंभ में युधिष्ठिर ने पितामह भीष्म, गुरूद्रोण, कुलगुरू कृपाचार्य एवं महाराज शल्य को प्रणाम करके उनसे 'विजयी भव' का आशीर्वाद प्राप्त किया। प्रणाम की महत्ता निरूपित करते हुए संत तुलसी कहते हैं कि ''वह मानव-शरीर व्यर्थ है जो सज्जनों और गुरूजनों के सम्मुख नहीं झुकता।''

प्रश्न- 1. प्रणाम किसका प्रतीक है?

(क) संस्कृति का
(ख) बड़ों-श्रद्धेय तथा आदरणीयजनों के प्रति आत्मीयता का
(ग) मानव-धर्म का
(घ) परंपरा का

2. प्रणाम करने वाले को क्या प्राप्ति होती है?

(क) आयु
(ख) विद्या
(ग) यश
(घ) दिए गए तीनों

3. बालक मार्कंडेय को चिरंजीवी होने का वरदान दिया-

(क) पितामह भीष्म ने
(ख) गुरू द्रोण ने
(ग) सप्तर्षियों ने
(घ) युधिष्ठिर ने

4. 'वह मानव-शरीर व्यर्थ है जो सज्जनों और गुरूजनों के सम्मुख नहीं झुकता' - कथन किसने कहा?

(क) मार्कंडेय ने
(ख) मनु ने
(ग) संत तुलसीदास ने
(घ) कृपाचार्य ने

5. 'सप्तर्षि' शब्द में कौन-सा समास है?

(क) द्विगु
(ख) कर्मधारय
(ग) द्वंद्व
(घ) तत्पुरूष

यह लेख विशेष रूप से कक्षा 8, कक्षा 9, कक्षा 10, तथा कक्षा 11, 12 के उपयुक्त है।

READ MORE- जाने, अपठित काव्यांश क्या है? उदाहरण सहित


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