विश्व रूपी रंगमंच पर नर-नारी दो ऐसे पात्र हैं, जिनके बिना जीवन रूपी नाटक का मंचन नहीं हो सकता है। अतः नर और नारी का साथ सृष्टि के आरंभ से ही है। प्रकृति और पुरूष के रूप में उससे सृष्टि विकास का क्रम आरंभ हुआ। दोनों आज भी निरंतर जीवन और गृहस्थ की गाड़ी के दोनों पहियों के समान एक-दूसरे के पूरक बन कर एक-दूसरे का साथ निभाते हैं। स्वाभाविक है कि इन दोनों में समान धरातल पर समान गति से बढ़ने की क्षमता होनी चाहिए। इससे जीवन मधुर-और सुखमय होता है। नारी की शिक्षा इसीलिए उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी नर के लिए।
सहशिक्षा का अर्थ (Meaning of Co-education)
सहशिक्षा का साधारण अर्थ है, साथ शिक्षा ग्रहण करना। साथ का तात्पर्य है, किशोर और किशोरियों अथवा बालक-बालिकाओं, युवक और युवतियों का एक ही विद्यालय में साथ-साथ रहते हुए समान विषयों की शिक्षा ग्रहण करना। शिक्षा ग्रहण करने के अतिरिक्त विद्यालयों में होने वाली अन्य गतिविधियों में भी समान रूप से भाग लेना। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है, कि हर युवक और युवती समान रूप से प्रतिभावान होते हैं, अतः वे सभी गतिविधियों में सफलतापूर्वक भाग ले सकते हैं। रूचि और प्रतिभा के अनुसार ही विद्यार्थी इनका चयन करते हैं। यह अटूट सत्य है कि नर और नारी का सहचर्य सृष्टि में विकास क्रम और मानव जीवन के अस्तित्व की धार को जीवंत रखता है। अतः जीवंत का साथ तभी सफल होता है, जब दोनों का विकास और चिंतन, सहयोग और समझ, प्रतिभा और रूचि में भी समानता हो, उनकी शिक्षा, सभ्यता और संस्कार समान हो।
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स्पष्ट है कि नारी की प्रतिभा का विकास पुरूष की प्रतिभा के विकास की पूरक है और पुरूष और प्रतिभा नारी की प्रतिभा के विकास की पूरक है। दोनों के सफल दांपत्य जीवन के लिए दोनों की शिक्षा, दोनों का साथ, एक-दूसरे को समझना और परखना अत्यंत आवश्यक है और इसके लिए सहशिक्षा ही सर्वोत्तम साधन है। इस संदर्भ में रोज़ मौंटेयू के विचार उल्लेखनीय हैं-
'सहशिक्षा के विद्यार्थियों को एक व्यक्ति के रूप में विकसित होने का अवसर प्राप्त होता है, न कि केवल ज्ञान का विकास करने का।'
सहशिक्षा के गुण (Advantages Of Co-education in Hindi)
सहशिक्षा के विचार ने एक विवाद खड़ा किया है और आज भी यह विवाद पूर्णरूपेण हल नहीं हो पाया है। सहशिक्षा (co education) के गुण और दोषों को लेकर इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क दिए जाते रहे हैं और दिए जाते हैं। सहशिक्षा का समर्थन करने वाले लोगों का मत है कि हमारे देश में प्राचीन काल से ही सहशिक्षा की पद्धति थी तथा ऋषि औ मुनियों के आश्रमों में युवक-युवतियाँ साथ-साथ शिक्षा ग्रहण करते थे। यथा महर्षि कण्व के आश्रम में इस प्रकार की व्यवस्था थी। भवभूति कृत काव्य ग्रंथ 'उत्तररामचरितमानस' में भी ऋषि वाल्मिीकि के गुरूकुल में लड़के और लड़कियों के साथ-साथ पढ़ने का प्रसंग मिलता है। रावण और मंदोदरी भी एक ही आश्रम के विद्यार्थी थे।
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विदेशी आक्रमणकारियों के कारण ही धीरे-धीरे नारी की शिक्षा और स्वतंत्रता प्रतिबंधित हो गई। सहशिक्षा का मनोवैज्ञानिक आधार पर विश्लेषण करें तो वस्तुतः इससे दोनों की प्रतिभा विकसित होती है और अवचेतन में पलने वाली अनेक कुंठाएँ तथा हीनता की वृत्तियों का शमन होता है। एक-दूसरे के साथ रहने, बातचीत करने, तर्क और विवाद करने के एक-दूसरे को समझने और परखने का अवसर मिलता है तथा सहयोग की भावना विकसित होती है। अनावश्यक भय और शंका मनोवैज्ञानिक डर तथा हीनता की भावना नहीं पनपती है। इतना ही नहीं, इससे अध्ययन में अधिक प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्द्धा की भावना उत्पन्न होती है और प्रतिभा का निरंतर विकास होता है। अपने जीवन में वे इन गुणों के कारण सामंजस्य और सहयोग के महत्व को समझते हैं। वर्तमान युग में अब ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जिसमें नारी सफल न हुई हो। अतः इसके लिए अलग शिक्षा व्यवस्था का कोई औचित्य नहीं। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में, ज्ञान और विज्ञान तथा तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा और शोध, सभी क्षेत्रों में वह समान रूप से सफल है। अतः एक ही शिक्षा पद्धति सहशिक्षा के लिए उपयोगी है। आज नारी कोई छुईमुई का पौधा नहीं है, जो हाथ लगाने से ही मुरझा जाता है।
सहशिक्षा के दोष (Disadvantages Of Co-education)
सहशिक्षा (co education) के विरोधियों की धारणा है कि प्राकृतिक रूप से ही दोनों में भेद है- शारीरिक संरचना में भी तथा मनोगत भी। अतः शिक्षा भी अलग रूप में होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त उनका प्रबल तर्क यह है कि इससे युवक और युवतियों में आकर्षण पैदा होता है और किशोर उम्र के कारण, भावात्मक आवेग से वे अनैतिक मार्ग पर चल सकते हैं। उनकी दृषिट में नारी का कार्यक्षेत्र अलग है और उसमें सहज नारीत्व तथा मातृत्व का विकास होना चाहिए। अतः शिक्षा के विषय और शिक्षा की पद्धति तथा शिक्षालय भी पृथक होने आवश्यक हैं। वास्तव में आधुनिक युग में ये तर्क समीचीन नहीं हैं। नर और नारी के प्रति सहज आकर्षण मनोवैज्ञानिक है। अतः अलग-अलग रहने पर यह जिज्ञासा, कौतूहल और आकर्षण बढ़ता जाता है तथा कुंठाओं का रूप ले लेता है। सहशिक्षा से लड़कियों के प्रति जो आशंका, भय और दुर्भावना जन्म लेती है, वह तो दूर होती ही है, सहयोग और समझ की भावना भी विकसित होती है। इसी प्रकार लड़कों के मन में वासना की भावना का उन्नयन नहीं होता है और कुंठाएँ जन्म नहीं लेती हैं, उनके व्यक्तित्व का विकास होता है और वे हीनता की भावना से दूर हो जाते हैं।
उपसंहार
शिक्षा का अर्थ ही मानव में छिपे प्राकृतिक गुणों का विकास करना है। अतः शिक्षा संस्कारों का परिष्कार और परिमार्जन करती है, भावनाओं को विकसित करती है। प्रतिभा को मांजती है। शिक्षा का आधार ही व्यक्तित्व का विकास है। इसलिए यदि उचित मार्ग दर्शन हो और संवेदनाओं का उचित मार्जन तथा उन्नयन हो तो स्वाभाविक है, कि सहशिक्षा व्यर्थ के विवाद को तर्कहीन कर देगी। इससे नर और नारी जीवन में अधिक सहयोग तथा समन्वय से सुखद दांपत्य जीवन व्यतीत कर राष्ट्र और विश्व के लिए शांति और समृद्धि मार्ग प्रस्तुत करने में सफल होंगे।
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