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सार लेखन उदाहरण सहित तथा कक्षा 10 के लिए विशेष


sar lekhan in hindi
साहित्य, दर्शन अथवा विज्ञान इनके विकास में मूल रूप से 'विचार' निहित होता है। 'विचार' अथवा 'चिंतन' एक छोटी सी चिंगारी की भाँति होती हैं। विचारों की दशा जब आगे स्वरूप निर्धारित करती है तो इससे साहित्य, दर्शन और विज्ञान पल्लवित होते है। न्यूटन का यही चिंतन-सेब नीचे की ओर ही क्यों गिरा ? विस्तार पाकर विज्ञान के सिद्धांत की ओर बढ़ गया। क्या सभी मनुष्य वृद्ध होते हैं? क्या मैं भी मरूँगा? सिद्धार्थ के मन के ये छोटे-छोटे प्रश्न 'बौद्ध-दर्शन' को जन्म देते हैं। अतः विचार या चिंतन सूक्ष्म रूप में होते हैं। 'सार-लेखन' (sar lekhan) की प्रक्रिया वास्तव में इसी विचार और चिंतन को समझने और पकड़ने की प्रक्रिया है।


'सार' शब्द का अर्थ - 'सार' शब्द का सामान्य अर्थ है - 'तत्व' निष्कर्ष, निचोड़, संक्षिप्त, संक्षेप। अतः सार लेखन संक्षेपीकरण है। अंग्रेजी भाषा में इसे 'प्रेसी राइटिंग' कहते हैं। स्पष्ट है कि जो विस्तृत है, जो विस्तार में है, उसे संक्षेप करना सार है। एक बहुत सटीक उदाहरण है। संपूर्ण ब्रह्मांड, ब्रह्म का विस्तार है और ब्रह्म ही संपूर्ण ब्रह्मांड का 'सार' है। यह ब्रह्म पूर्ण है। अतः सारपूर्ण होता है। उसमें किसी रचना के मूल भाव कभी नहीं छूटते हैं।

सार लेखन में क्या छोड़ें -

  1. भाव और विचारों की पुनरावृत्ति छोड़ दें।
  2. विशेषणों का अनावश्यक प्रयोग न करें।
  3. उपमा, दृष्टांत आदि अलंकारों के प्रति मोह न करें।
  4. शब्द-जाल से बचें।
  5. व्यास शैली का प्रयोग न करें।


सार लेखन में क्या अपनाएँ

  1. वाक्य सुसंगठित, क्रमबद्ध और अर्थ से परस्पर जुड़े हों।
  2. समास शैली का प्रयोग हो।

सार-लेखन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण पद

  1. जिस भी गद्यांश या पद्यांश का सार लिखना है, उसे बार-बार (अर्थ ग्रहण करते हुए) पढ़िए।
  2. कठिन शब्दों के अर्थ अवश्य समझने चाहिए।
  3. मूल-भाव, विचार या तथ्य को ग्रहण करने का प्रयास कीजिए।
  4. अपने पूर्व ज्ञान और भाषा-ज्ञान के माध्यम से अपने विचारों को सरल और संक्षेप में लिखें।
  5. जब एक संक्षिप्त ‘शीर्षक‘ बार-बार मस्तिष्क में आए तो उससे अन्य विचार और भावों को जोड़ने का प्रयत्न करें।
  6. संक्षिप्त रूप अपूर्ण और अस्पष्ट कदापि नहीं होना चाहिए।
  7. संक्षिप्तीकरण में मूल रचना से लगभग तिहाई शब्दों का प्रयोग होना चाहिए।

उदाहरणार्थ हल किए गए अवतरण

1.आजकल अंग्रेज़ी के माध्यम से विज्ञान की शिक्षा देने पर जो ज़ोर दिया जा रहा है, वह कदापि उचित नहीं है। विज्ञान एक व्यवहारिक विषय है। इसलिए इसका ज्ञान व्यवहार और अभ्यास से होता है। हिंदी को विज्ञान की शिक्षा का माध्यम मान लेने में कोई हानि नहीं है। विज्ञान को सही अर्थ में अनिवार्य विषय बनाना बहुत आवश्यक हो गया है, क्योंकि इसका उपयोग प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए, हिंदी में विज्ञान की अच्छी पुस्तकों की रचना होनी चाहिए। यदि केवल अंग्रेज़ी में लिखी गई पुस्तकें विज्ञान की शिक्षा के लिए अनिवार्य मानी जाएँगी, तो ऐसी दशा में बहुत-से विद्यार्थियों को इस विषय में पूरा ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकेगा। वे केवल विषय को रट सकेंगे, परंतु उसका पूरा बोध उन्हें नहीं होगा तथा उनका दृष्टिकोण भी वैज्ञानिक नहीं बन सकेगा।

शीर्षक - वैज्ञानिक शिक्षा का माध्यम

सार - वर्तमान युग में विज्ञान की अनिवार्य और व्यवहारिक शिक्षा, सरल और सुग्राह्य भाषा हिंदी में देने से विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त कर ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपना सकेंगे।


2. यह देश हमारे पूर्वजों का परम आराध्य रहा है। उनकी सभी साधनाएँ, सभी उद्योग, सभी कामनाएँ देश को सुखी और समुन्नत बनाए रखने के लिए हुआ करती थी। इस प्रकार उनकी देशभक्ति चरमकोटि की थी। उनकी राष्ट्रीयता देश की मिट्टी और जल तक को परम आराध्य मानती थी। वही परंपरा आज भी रूढ़िरूप में विद्यमान है। हम अब भी गंगा, यमुना आदि नदियों के पवित्र जल का पान करते और उनकी मिट्टी को श्रद्धापूर्वक खाते हैं। किंतु इसके भीतर छिपे हुए रहस्य (राष्ट्र-भक्ति) को नहीं समझते। देश को अखंड बनाए रखने के लिए हमारे पूर्वजों ने अपने देश की समस्त नदियों को तीर्थ या दैवी-रूप में मानकर उनकी प्रतिदिन उपासना और स्मरण करने का धार्मिक नियम बनाया था, जो अब भी प्रचलित है। वेदों से लेकर काव्यों तक जितने भी शास्त्र हैं, सभी इस देश-संबंधी एकता की नीति को धर्म का रूप दिया गया है।

शीर्षक - 'हमारी राष्ट्रीय उपासना'
अथवा
'हमारे पूर्वजों की राष्ट्र-भक्ति'

सार - हमारे पूर्वज देश, देश की माटी और जल को आराध्य रूप मानते थे। गंगा, यमुना नदियों को पवित्र तीर्थ मानना इसी भावना का परिणाम है। प्राचीन साहित्य ने भी इसी तथ्य की पुष्टि कर इसे ही धर्म कहा है।


3. ईश्वर ने इस सृष्टि में अनेक अद्भुत वस्तुओं की रचना की है। इन अद्भुत कृतियों में सबसे विलक्षण कृति है, मूर्ख। जैसे जल में गीलेपन का गुण होता है, उसी प्रकार मूर्ख में मूर्खता का। भेद केवल इतना है कि किसी मूर्ख की मूर्खता को जानने के लिए आपको कोई कष्ट नहीं करना पड़ता। वह अपने इस गुण का प्रदर्शन करने के लिए स्वयं ही बहुत लालायित तथा व्याकुल रहता है। हमने कहा कि मूर्ख ईश्वर की अद्भुत कृतियों में सबसे विलक्षण है। इसके कई कारण हैं। पहला तथा सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है, कि कोई मूर्ख अपनी मूर्खता को स्वीकार नहीं करता। उसका ऐसा करना स्वाभाविक तथा आवश्यक है, क्योंकि इसी से प्रमाणित होता है, कि वह वास्तव में मूर्ख है। मूर्खता की विलक्षणता का दूसरा कारण यह है कि यह गुण हमें केवल दूसरों में दिखाई देता है, अपने आप में नहीं। मूर्खता की कई विशेषताएँ हैं। यह गुण सब देशों में पाया जाता है। यदि काल की दृष्टि से देखें तो भी यह गुण सर्वत्र विद्यमान रहता है। यह विलक्षण गुण लिंग, वर्ण, जाति इत्यादि के भेदों को भी स्वीकार नहीं करता।

शीर्षक - 'विलक्षण मूर्ख'

सार - मूर्ख व्यक्ति जाति, देश और काल की सीमा से परे होते हैं। वे अपनी कमियों को अस्वीकार कर परदोष ग्रहणशील होते हैं। उनके क्रिया-कलाप उनकी मूर्खता के परिचायक होते हैं।


4. लोग कहते हैं कि मेरा जीवन नाशवान है। मुझे एक बार पढ़कर फेंक देते हैं, ‘पानी केरा बुदबुदा अस अखबार की जात। पढ़ते ही छिप जाएगा ज्यों तारा प्रभात‘ पर मुझे अपने इस जीवन पर भी गर्व है, मर कर भी मैं दूसरों के काम आता हूँ। मेरे सच्चे प्रेमी मेरे सारे शरीर को फाइल में कम से कम संभालकर रखते हैं। कई लोग मेरे उपयोग अंगों कोट कर रख लेते हैं। मैं रद्दी बनकर भी अपने ग्राहकों की कीमत का तीसरा भाग अवश्य लौटा देता हूँ। इस तरह महान उपकारी होने के कारण मैं दूसरे दिन ही नया जीवन पाता हूँ। सज-धज के आता हूँ। सबके मन में समा जाता हूँ। तुमको भी ईर्ष्या होने लगी है न, मेरे जीवन से भाई! ईर्ष्या नहीं, स्पर्धा करो। मेरी तरह उपकारी बनो, तुम भी सबकी आँखों के तारे बन जाओगे।

शीर्षक - 'समाचार-पत्र'

सार- समाचार-पत्र बहु-उपयोगी होते हैं। प्रतिदिन सभी इन्हें किसी न किसी रूप में उपयोग में लाते हैं।

READ MORE: पत्र-लेखन उदाहरण सहित

5. शिक्षा का वास्तविक अर्थ और प्रयोजन व्यक्ति को व्यवहारिक बनाना हुआ करता है, न कि शिक्षित होने के नाम पर अहम् और गर्व का हाथी उसके मन-मस्तिष्क पर बाँध देना। हमारे देश में स्वतंत्रता प्राप्ति से जो शिक्षा नीति और पद्धति चली आ रही है, वह लगभग सौ साल पुरानी है। उसने एक उत्पादक का काम ही अधिक किया है, इस बात का ध्यान एकदम नहीं रखा कि इस देश की अपनी आवश्यकताएँ और सीमाएँ क्या हैं? इसके निवासियों को किस प्रकार की व्यवहारिक शिक्षा की ज़रूरत है? बस, सुशिक्षितों की नहीं, साक्षरों की बड़ी पंक्ति इस देश में खड़ी कर दी है, जो किसी दफ्तर में क्लर्क और बाबू बनने का सपना ही देख सकती है।

शीर्षक - वर्तमान शिक्षा-पद्धति

सार - पुरानी अव्यवहारिक शिक्षा पद्धति, देश की वर्तमान आवश्यकताओं से पृथक् आज साक्षर क्लर्क और बाबुओं का उत्पादन कर रही है, जिनके मन-मस्तिष्क में मानवीय गुणों का अभाव है।

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