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Essay on Nasha Mukti in Hindi : नशा मुक्ति पर निबंध


essay on nasha mukti in hindi language

जीवन दो विपरीत ध्रुवों के बीच गतिमान रहता है। सुख और दुख, लाभ और हानि, यश और अपयश तथा जीवन और मृत्यु। ये कभी अलग न होने वाले दो किनारे हैं। सुख के समय में आनंद और उल्लास, हँसी और कोलाहल जीवन (essay on nasha mukti in hindi) में छा जाते हैं तो दुख में मनुष्य निराश होकर रूदन करता है। नैराश्य के क्षणों में बोझ और दुख को भुलाने के लिए वह उन मादक द्रव्यों का सहारा लेता है, जो उसे दुखों की स्मृति से दूर बहा ले जाते हैं। ये मादक द्रव्य ही नशा कहे जाते हैं। मादक द्रव्यों को लेने के लिए आज केवल असफलता और निराशा ही कारण नहीं बने हैं, अपितु रोमांच, पाश्चात्य दुनिया की नकल और नशे के व्यापारियों की लालची प्रवृत्ति भी इसमें सहायक होती है।

नशाखोरी : Essay on Nasha Mukti in Hindi


नशीले पदार्थ वे मादक और उत्तेजक पदार्थ होते हैं। जिनका प्रयोग करने से व्यक्ति अपनी स्मृति और संवेदन-शीलता अस्थायी रूप में खो देता है। नशीले पदार्थ स्नायु तंत्र को प्रभावित करते हैं और इससे व्यक्ति उचित-अनुचित, भले-बुरे की चेतना खो देता है। उसके अंग-प्रत्यंग शिथिल हो जाते हैं, वाणी लड़खड़ाने लगती है, शरीर में कंपन होने लगता है। आँखें असामान्य हो जाती हैं। नशा किए हुए व्यक्ति को सहजता से पहचाना जाता है। नशीले पदार्थों में आज तंबाकू भी माना जाता है, क्योंकि इससे शरीर पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। लेकिन विशेष रूप से जो नशा आज के युग में व्याप्त है, उसमें- चरस, गांजा, भांग, अफीम, स्मैक हेरोइन जैसी ड्रग्स उल्लेखनीय हैं। शराब भी इसी प्रकार का जहर है, जो आज भी सबसे अधिक प्रचलित है।

शराब जैसे नशीले पदार्थ का प्रचलन तो समाज में बहुत पहले से ही था, लेकिन आधुनिक युग में पाश्चात्य संस्कृति से नशे को नए रूप मिले हैं। मारफीन, हेरोइन तथा कोकीन जैसे संवेदन मादक पदार्थ इनके उदाहरण हैं। इस नशे के व्यवसाय के पीछे आज अनेक राष्ट्रों की सरकार का सीधा संबंध होता है, जिनसे बड़े-बड़े अधिकारी वर्ग भी सम्मिलित होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैले नशे के व्यवसायियों का जाल बहुत ही संगठित होता है। पाश्चात्य देशों में ‘हिप्पी वर्ग‘ का उदय इस नशे के सेवन करने वाले लोगों के रूप में हुआ है। आज के भौतिकवादी जीवन में नशाखोरी के अनेक कारण हैं। आज के व्यस्त मशीनी जीवन में घर में बच्चों को परिवार का साथ और प्यार न मिलने से अकेलेपन की प्रवृत्ति ने इस नशे को अपनाया। स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थियों में होस्टल में रहने वाले विद्यार्थी इसके शिकार बन जाते हैं। इसके पीछे या तो नशे के व्यापारीयों का जाल होता है या अपने व्यक्तिगत कारणों से ये लोग नशे की ओर आकर्षित होते हैं। धनी परिवार के लड़कों को इस जाल में फँसाया जाता है और वे कभी-कभी धन के आधिक्य से भी तथाकथित झूठी शान दिखाने के लिए इस ओर मुड़ जाते हैं। उच्च संपन्न वर्ग में शराब का नशा तो प्रायः उनके स्तर का द्योतक और प्रतीक बन जाता है। भारत जैसे देश में शराब प्रमुख नशा माना जाता है, लेकिन आज की युवा पीढ़ी इन नशे के नए रूपों के जाल में भी फँस गई है। युवा-वर्ग इस ओर अपनी बेकारी और असफलता के कारण भी आकर्षित हुआ है। दुखी और निराश युवक नशे का सहारा लेकर अपराधी प्रकृति के हो जाते हैं। आरंभ में ये दूसरे लोगों को नशा बेचकर धन भी कमाते हैं, लेकिन जब इस घेरे में घिरकर असहाय हो जाते हैं तो घर का सामान चुराकर, चोरी और अन्य साधनों से धन जुटाकार अपनी नशे की लत बुझाते हैं। संपन्न वर्ग के युवक भी इस अपराध में सम्मिलित हो जाते हैं।

शराब की लत पारिवारिक, शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक सभी स्तरों पर अपना कु-प्रभाव दिखाती है। इससे व्यक्ति के स्नायु संस्थान प्रभावित होते हैं, निर्णय और नियंत्रण शक्ति कमजोर होती है। आमाशय, लीवर और हृदय प्रभावित होते हैं। शराबी चालक सड़क पर हत्यारा बनकर निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतारता है। पत्नी के आभूषण बेचता है, बच्चों की परवरिश और शिक्षा का उचित प्रबंध नहीं कर पाता है और नशे की हालत में सड़कों और नालियों में गिरकर आत्मसम्मान भी बेचता है तथा दिवालिया भी बन बैठता है। लज्जा को त्याग कर अनैतिक और असामाजिक कर्मों की ओर भी उन्मुख होता है। संवेदन मादक पदार्थ हृदय, मस्तिष्क, श्रवण शक्ति, स्नायु, आँख आदि पर अपना प्रभाव दिखाते हैं और संवेदन क्षमता को अस्थायी रूप में मंद तथा विकृत कर देते हैं। एक बार इस नशे का लत पड़ने पर वे निरंतर इसमें धँसते चले जाते हैं और इसकी माँग बढ़ती ही चली जाती है। इस माँग को पूरा करने के लिए वह अपराधी कार्यों में भी भाग लेने लगता है। अनेक घर और परिवार इस भयावह नशे से उजड़ गए हैं और कई युवक जीवन से ही हाथ धो बैठते हैं। इन युवकों का प्रयोग अनेक असामाजिक संगठन भी करते हैं। आज के आतंकवाद फैलाने में, विनाशकारी हथियारों की खरीदारी में भी इनका हाथ रहता है। बड़े पैमाने पर ये हत्याएँ, लूट-पाट, आगज़नी तथा दंगे-फसाद करवा कर राष्ट्र की एकता के लिए गंभीर चुनौती उत्पन्न करते हैं।

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इस दुष्प्रवृत्ति को रोकने के लिए (nasha mukti upay) सरकार और जनता दोनों का सक्रिय सहयोग ही सफल हो सकता है। सरकार में भ्रष्ट लोगों और अधिकारियों, जो इस अपराध में भागीदार होते हैं, को यदि कड़ी सजा दी जाए तो जनता के लिए यह एक उदाहरण और भय का कारण बन जाएगा। बड़े से बड़े गिरोह और व्यापारियों को भी कड़े दंड दिए जाने आवश्यक हैं। कठोर कानून बनाना और कठोरता से उनका पालन करना भी नितांत आवश्यक है। दोषी व्यक्ति को किसी भी रूप में, चाहे वह कोई भी हो, क्षमा नहीं करना चाहिए। संचार माध्यम, टी.वी., सिनेमा, पत्र-पत्रिकाएँ आदि भी इसके प्रति जनमत तैयार कर सकते हैं और लोगों की मानसिकता बदल सकते हैं। इसके लिए अनेक समाज सेवी संस्थाएँ, जो सरकारी और गौर-सरकारी रूप में कार्य करती हैं, महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं। इस नशे में प्रवृत्त लोगों को, सहानुभूति और प्यार के द्वारा ही सही धीरे-धीरे रास्ते पर लाया जा सकता है। उनकी मनः स्थिति को बदलना और उन्हें सबल बनाकर तथा नशा विरोधी केंद्रों में उनकी चिकित्सा करवा कर उन्हें नया जीवन दिया जा सकता है।

भारत जैसे विकासशील देशों में इस प्रकार की प्रवृत्ति देशघाती होती है (nasha mukt bharat) और इससे युवाशक्ति को रचनात्मक कार्यों के प्रति प्रोत्साहित करना कठिन हो जाता है। अतः परिवार, देश और समाज सभी के सहयोग से ऐसे दिशाहीन युवकों को सुमार्ग पर लाया जा सकता है। इसके लिए विद्यालयों में इस प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए, ताकि इस आत्मधाती प्रवृत्ति से युवा पीढ़ी को परिचित कराया जाए और इसके विनाश को सम्मुख रख कर उन्हें इससे दूर रहने के लिए प्रेरित किया जा सके। व्यक्ति, समाज, सरकार और अधिकारियों के सहयोग से ही यह संभव हो सकता है।

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