वैज्ञानिक प्रगति के साथ विश्व आज एक परिवार के रूप में बन गया है। एक देश की परिस्थितियों और परिवर्तनों का प्रभाव विश्व के अन्य देशों पर भी पड़ता है। इन परिवर्तनों की जानकारी विशेष महत्व रखती है, क्योंकि इनका संबंध प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में जन-जीवन से होता है। अपने ही देश में घटित-घटनाओं की जानकारी भी आवश्यक होती है। राजनीतिक परिस्थितयों, दैविक आपदाओं, धार्मिक पर्वों और अन्य उत्सवों की सूचनाएँ लेकर प्रत्येक सुबह समाचार-पत्र आज दैनिक जीवन की आवश्यक आवश्यकता बन गए हैं।
समाचार-पत्र वह मुद्रित पत्र है, जिसमें देश और विदेश के विषय में जानकारी उपलब्ध होती है। समाचार-पत्र समाचारों के वाहक होते हैं। समाचारों का संबंध आज केवल दैनिक जीवन में घटित होने वाली घटनाओं से ही नहीं है, अपितु ज्ञान और विज्ञान, सभ्यता और संस्कृति, इतिहास और भूगोल, राजनीति और दर्शन आदि विविध क्षेत्रों से संबंधित नवीन शोध तथा जानकारी से भी है।
समाचार पत्रों के रूप (Types of Newspapers)
समाचार-पत्रों के आज कई संस्करण हैं। दैनिक
समाचार-पत्र अब अपने प्रभात तथा संध्या संस्करण भी निकालते हैं, अर्थात अब समाचार-पत्र समय के आधार पर 'पहर' से भी जुड़ गए हैं। दैनिक समाचार-पत्रों के अतिरिक्त साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक और वार्षिक समाचार-पत्र भी प्रकाशित होते हैं। यह वर्गीकरण प्रकाशन की अवधि और समय के आधार पर है। इसके अलावा समाचार-पत्रों के रूप में अनेक पत्रिकाएँ भी प्रकाशित होती हैं, जिनका संबंध अनेक विषयों से होता है। ये पत्रिकाएँ धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, खेल संबंधी,
सिनेमा से संबंधित और साहित्यक आदि रूपों में प्रकाशित होती हैं। समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएँ अलग-अलग भाषाओं में प्रकाशित होते हैं। आजकल हमारे देश में हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया, दी हिंदू आदि प्रमुख दैनिक अंग्रेजी समाचार-पत्र हैं। हिंदी में प्रकाशित होने वाले कुछ महत्वपूर्ण समाचार-पत्र हैं - नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान, पंजाब केसरी, जनसत्ता, दैनिक जागरण, अमर उजाला आदि। इन समाचार-पत्रों के अतिरिक्त प्रादेशिक भाषाओं में भी बड़ी संख्या में समाचार-पत्र छपते हैं।
समाचार-पत्र का आरंभ तेरहवीं शताब्दी में इटली में माना जाता है। 16वीं शताब्दी में चीन में 'पीकिंग गज़ट' अखबार प्रकाशित हुआ। भारत में अंग्रेज़ों के शासन काल में जनवरी, 1780 ई. में ‘बंगाल गज़ट‘ नामक समाचार पत्र का प्रकाशन हुआ। इसके बाद 'इंडिया गज़ट' 1835 ई. में प्रकाशित हुआ। हिंदी का प्रथम समाचार-पत्र 'उदंत मार्तंड' माना जाता है।
जीवन परिवर्तनशील है। यह परिवर्तन अनेक रूपों में अनेक क्षेत्रों में होता है, जिसका संबंध एक व्यक्ति या देश से भी हो सकता है और विश्व से भी।
पल और क्षण का आज जीवन में महत्व है। इनकी जानकारी के लिए समाचार-पत्रों की आवश्यकता होती है। विश्व के कोने-कोने में घटित घटनाएँ तथा सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति, आज प्रत्येक देश के लिए महत्व रखती है। व्यापारियों, विद्यार्थियों, विवेकशील व्यक्तयों और सरकार भी इनसे जुड़ी होती है। जनता की आवाज़ बनकर ये सरकार तक पहुँचते हैं और सरकार की नीतियों को जनता तक पहुँचाते हैं, जिनसे अनेक लोगों का भविष्य जुड़ा होता है। सरकार की अन्यायपूर्ण नीतियों और विभिन्न घोटालों का पर्दाफाश कर ये जन-जागृति के प्रतीक भी बन जाते हैं। प्रबुद्ध व्यक्ति इनसे जनमत को दिशा देते हैं। आज मस्तिष्क के लिए समाचार-पत्र इसी रूप में आवश्यक है, जैसे शरीर के लिए पोषण। जन-जन से जुड़कर समाचार-पत्र जन-जन को चेतना का संदेश देते हैं।
समाचार पत्रों का महत्व (Importance of Newspaper)
समाचार-पत्रों में सरकार की नीतियों की आलोचना होती है। सरकारी कर्मचारियों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार आदि का समाचार भी दिए जाते हैं। इनसे मनोरंजन भी होती है। इनमें सारगर्भित लेख, कविताएँ, कहानियाँ, हास्य कथाएँ, चुटकुले आदि भी होते हैं। विद्यार्थियों की ज्ञान वृद्धि के लिए महान पुरूषों के जीवन-चरित्र तथा वैज्ञानिक अनुसंधाओं संबंधी लेख आदि भी होते हैं। संपादकीय लेख पढ़ने से चिंतन और मनन शक्ति बढ़ती है।
समाचार-पत्रों से प्रत्येक वर्ग लाभांवित होता है। प्रत्येक वर्ग के अनुसार उसमें सामग्री होती है। नारी संस्करण नारियों के लिए लाभदायक है। उसमें गृहस्थी और नौकरी पेशा औरतों के लिए हर प्रकार की सम्रागी र्प्यात मात्रा में मिल जाती है। व्यापारी वर्ग इनके माध्यम से वस्तुओं के भाव में उतार-चढ़ाव ज्ञात कर लेता है। वैवाहिक विज्ञापनों के छपने से रिश्तों को ढूँढ़ने में सहायता मिलती है। नौकरी प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति को नौकरी के लिए ज़रूरत वाले स्थान मिल जाते हैं।
समाचार-पत्र में विज्ञापन देकर लोग अपनी वस्तुओं का विक्रय बढ़ाते हैं। मौसम संबंधी जानकारी, खेल समाचार, भविष्यवाणी भी समाचार-पत्रों से प्राप्त होती है। आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से प्रसारित कार्यक्रम भी इसमें लिखे होते हैं। परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थी अपने फोटो इसमें देखकर उत्साहित होते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इसका मूल्य बहुत ही कम होता है, जिसे गरीब आदमी भी खरीद सकता है और अपने ज्ञान की वृद्धि कर सकता है। समाचार-पत्र पुराना हो जाने पर भी रद्दी के रूप में अपना मूल्य चुका देता है।
समाचार-पत्रों से अनेक व्यक्ति अपनी आजीविका चला रहे हैं। मुद्रक, संपादक, प्रबंधक, संवाददाता और पत्रवाहक इससे उदरपूर्ति करते हैं।
दोष और दायित्व
समाचार-पत्रों से जहाँ इतने लाभ हैं, वहाँ कुछ हानियाँ भी हैं। कभी असत्य समाचार देकर लोगों में भ्रांति, अशांति और भय फैल जाने की आशंका होती है। कुछ समाचारों का लक्ष्य धन कमाना ही होता है। वे नैतिक कर्तव्य तथा उत्तरदायित्व को भूलकर अश्लील तथा नग्न चित्रों द्वारा विज्ञापन प्रकाशित करते हैं। फिल्मों के विज्ञापन के लिए नायक-नायिका के अंगों का प्रदर्शन करने वाले चित्र प्रायः देखे जाते हैं। इस प्रकार किशारों के मानसिक विकास को कामुक मोड़ मिलता है। समाचार-पत्रों से सबसे बड़ी हानि तब होती है, जब ये सांप्रदायिक भावना से भेदभाव उत्पन्न कर जनता में मनमुटाव बढ़ाते हैं। जनता में विद्रोह, कलह और फूट की आग भड़काना इनका बाएँ हाथ का खेल है, जिससे देश की एकता खतरे में पड़ सकती है। इस प्रकार सनसनीखेज़ झूठे समाचारों को ‘पीत पत्रकारिता‘ कहते हैं, जो समाज और देश के लिए हानिकारक होती है।
आज के विश्व में समाचार-पत्रों का उत्तरदायित्व भी बढ़ गया है। इनकी शक्तियों को समझकर नेपोलियन ने कहा था -
''मैं लोखों विरोधियों की अपेक्षा तीन विरोधी समाचार-पत्रों से अधिक भयभीत रहता हूँ।''
अकबर इलाहाबादी से समाचार-पत्रों की शक्ति इन शब्दों में प्रकट की है-
खैंचो न तीर कमान न तलवार निकालों,
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अखबार निकालो।
समाचार-पत्रों को निष्पक्ष तथा नैतिक स्तर का ध्यान रखना चाहिए। एक ओर उन्हें सरकार की नीतियों की निष्पक्ष आलोचना एवं प्रशसा करनी चाहिए तो दूसरी ओर सरकार तक जनता की भावना को भी पहुँचाना चाहिए। संपादकों को किसी सांप्रदायिक एवं जातिवाद के घृणित विचार को समाज में प्रचारित करने से संकोच करना चाहिए।
उपसंहार
आधुनिक युग में समाचार-पत्र जन-जागृति के प्रतीक है। अतः उनका दायित्व जन मानस को सही दिशा देना है। राजनीतिक दलों से जुड़कर और सरकार की कठपुतली बनकर जनता को गमराह करना अनैतिकता ही नहीं, अपितु धोखा भी है। किसी व्यक्ति विशेष से राग-द्वेष के कारण विशेष ढंग से समाचार प्रकाशित करना भी उचित नहीं है। पूँजीपतियों की नीतियों का प्रकाशन और समर्थन, जनता को भड़काने और गुमराह करने वाली पत्रिका से समाज को क्षति पहुँचती है। अतः निष्पक्ष और न्यायपूर्ण नीति ही समाचार-पत्रों की नीति होनी चाहिए।
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