Msin.in
Powered by Blogger

महान वैज्ञानिकों के 3 प्रेरक प्रसंग


महान वैज्ञानिक अपने नित नवीन खोजों और आविष्कारों के कारण महान तो होते ही हैं, तेज बुद्धि होने की वजह से उनका हास्य-व्यंग भी बहुत प्रखर होता है। उनके जीवन में घटीत हुई अनेक घटनाएं दूसरे लोगों को जीवन में हमेशा कुछ नया करने का मार्ग दिखाती हैं। यहां प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के जीवन से संबंधीत कुछ ऐसे ही प्रसंगों को दिया जा रहा हैं। जरूर पढ़े।

आचार्य नागार्जुन: जैसा भाव वैसी ही सफलता


nagarjuna prerak prasang
महान रसायनशास्त्री आचार्य नागार्जुन को एक ऐसे नवयुवक की तलाश थी जो उनकी प्रयोगशाला में उनके साथ मिलकर रसायन तैयार कर सके। उन्होंने विज्ञप्ति निकाली। दो नवयुवक उनसे मिलने आये। प्रथम नवयुवक को रसायन बनाकर लाने को कहा, फिर दूसरा युवक आया उसे भी यही आदेश दिया।

प्रथम नवयुवक दो दिन बाद रसायन लेकर आ गया। नागार्जुन ने पुछा- 'तुम्हें इस काम में कोई कष्ट तो नहीं हुआ?' युवक ने कहा- 'मान्यवर बहुत कष्ट उठाना पड़ा। पिता को उदर कष्ट था, माँ ज्वर से पीड़ित थीं। छोटा भाई पैर पीड़ा से परेशान था कि गाँव में आग लग गई, पर मैंने किसी पर भी कोई ध्यान नहीं दिया। एकनिष्ठ रसायन बनाने में तल्लीन रहा।' नागार्जुन ने ध्यान से सुना। कुछ भी नहीं कहा। युवक सोच रहा था मेरा चुनाव तो निश्चित ही है, क्योंकि अभी तक दूसरा युवक लौटा ही नहीं था।


इसी बीच दूसरा युवक उदास लौटा। नागार्जुन ने पूछा - 'क्यों क्या बात है? रसायन कहाँ गया?' दूसरे नवयुवक ने कहा - मुझे दो दिन का समय चाहिए। मैं रसायन बना ही न सका, क्योंकि जैसे ही बनाने जा रहा था कि एक बूढ़ा रोगी दिखायी पड़ा, जो बीमारी से कराह रहा था। मैं उसको अपने घर ले गया और सेवा करने लगा। अब वह ठीक हो गया, तो मुझे ध्यान आया कि मैंने रसायन तो बनाया ही नहीं। इसीलिए क्षमा याचना के लिए चला आया। कृप्या दो दिन का समय दीजिए।

नागार्जुन मुस्कराये और कहा- 'कल से तुम काम पर आ जाना'। पहला युवक सोच ही नहीं पा रहा था कि उसे क्यों नहीं चुना गया। नागार्जुन ने पहले युवक से कहा-'तुम जाओ तुम्हारे लिए मेरे पास स्थान नहीं है, क्योंकि तुम काम तो कर सकते हो, लेकिन यह नहीं जान सकते कि काम के पीछे उद्देश्य क्या है?' वस्तुतः रसायन का काम रोग निवारण है, जिसमें रोगी के प्रति संवेदना नहीं उसका रसायन कारगर नहीं हो सकता। पहला युवक निराश लौट गया।

अल्बर्ट आइंस्टीन: संगति का महत्व


albert einstein prerak prasang
आधुनिक भौतिकी के बुनियादी सिद्धांत 'सापेक्षिकता' पर कार्य करने के दौरान अल्बर्ट आइंस्टीन को अमेरिका के बड़े-बड़े महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में कई बार व्याख्यान देने जाना पड़ता था। वे वहां कार से जाते थे; लेकिन क्योंकि आइंस्टीन ने कभी गाड़ी चलाना सिखा नहीं था, इसलिए अपनी कार के लिए उन्होंने एक ड्राइवर रख रखा था। आइंस्टीन का ड्राइवर उनके साथ जहां जाता उनका व्याख्यान जरुर ध्यान से सुनता। रोज-रोज उनका एक ही तरह का व्याख्यान सुनते-सुनते उसे वे अच्छी तरह याद हो गया था।

एक दिन पहले की तरह आइंस्टीन किसी विश्वविद्यालय में व्याख्यान देने जा रहे थे। तभी थोड़े मजाकिया भाव में उनके ड्राइवर ने कहा, 'सर आप जो भी व्याख्यान देते हैं, वे तो इतने सरल होते हैं कि कोई भी एक बार सुनकर उसे स्वयं दे सकता है।'

संयोग से उस दिन अल्बर्ट आइंस्टीन एक ऐसे विश्वविद्यालय में जा रहे थे, जहाँ के प्रोफेसर और छात्र उनका नाम तो जानते थे लेकिन उन्हें कभी सामने से देखा नहीं था। इस बात का फायदा उठाते हुए आइंस्टीन ने अपने ड्राइवर से कहा - 'यदि तुम्हें मेरी तरह भौतिक विज्ञान के इस विषय पर व्याख्यान देना आसान लगता है तो आज मैं ड्राइवर बन जाता हूं और तुम मेरी जगह व्याख्यान दो।'

ड्राइवर को आइंस्टीन की इस बात पर थोड़ा अचरज हुआ, लेकिन फिर भी उसने इसके के लिए हाँ कह दिया। दोनों ने अपने कपड़ों की अदला-बदली की और विश्वविद्यालय पहुंचे। विश्वविद्यालय पहुंचकर दोनों गाड़ी से बाहर निकले और ड्राइवर ने मंच पर जाकर व्याख्यान देना चालू कर दिया। उसने बिना पढ़े हुये पूरा व्याख्यान दे दिया।

हॉल में उपस्थित बड़े-बड़े प्रोफेसरों को भी यह आभास नहीं हुआ कि मंच पर व्याख्यान दे रहा व्यक्ति आइंस्टीन नहीं बल्कि कोई और है।

व्याख्यान समाप्त होने के पश्चात एक प्रोफेसर ने आइंस्टीन बने ड्राइवर से एक प्रश्न पूछा तो उसने बड़ी चतुराई से कहा, 'भौतिकी का यह प्रश्न तो इतना आसान है कि इसका उत्तर तो मेरा ड्राइवर भी दे देगा।'

इसके बाद प्रोफेसरों के सभी सवालों के जवाब ड्राइवर के कपड़े पहने बैठे अल्बर्ट आइंस्टीन ने दिये। जब अंत में सवाल-जवाब का क्रम समाप्त हुआ और लौटने का वक्त आया, तब आइंस्टीन ने सभी को यह बताया कि आज यहां व्याख्यान देने वाला उनके कार का ड्राइवर था। ये बात सुनकर सभी के होश उड़ गये।

भौतिकी के जिस सिद्धांत को बड़े-बड़े वैज्ञानिक सरलता से नहीं समझ पाते उसे दुनिया के एक महान वैज्ञानिक के साथ रहने वाले एक ड्राइवर से इतनी आसानी से समझा दिया था।

अल्बर्ट आइंस्टीन से जुड़ा एक और छोटा प्रसंग -

एक बार अल्बर्ट आइंस्टीन परमाणु शक्ति के विनाश कार्यों में उपयोग के दुष्परिणामों से चिंतित हो उठे। उन्होंने भारी परिश्रम करके परमाण्विक खोजें की। इससे प्रभावित होकर दार्शनिक रोमां रोलां उनसे भेंट करने आए। रोमां रोलां ने आइंस्टीन से प्रश्न किया, 'आपको परमाणु शक्ति को संहार की जगह निर्माण में उपयोग करने की प्रेरणा कैसे मिली?'

अल्बर्ट आइंस्टीन ने उत्तर दिया, 'मैंने धर्म पुस्तकों में पढ़ा था कि जो व्यक्ति किसी को जीवन नहीं दे सकता है, उसे किसी का जीवन लेने का अधिकार नहीं है। मैंने जब देखा कि वैज्ञानिकों ने परमाणु आयुधों से क्षणभर में असंख्य लोगों का संहार कर देने की घातक खोज कर ली है तो मैं बेचैन हो उठा। धर्मग्रंथ में पढ़े वाक्य ने मुझे संहार व विनाश की जगह परमाणु शक्ति के मानव कल्याण में उपयोग की खोज की प्रेरणा ने दी। उसी मानवीय प्रेरणा ने मुझे सफलता की मंजिल तक पहुंचाया।' रोमां रोलां एक महान वैज्ञानिक के हृदय की करुण भावना के सामने नतमस्तक हो उठे।

माइकल फैराडे: यह तो अभी बच्चा है!


michael faraday prerak prasang
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के खोजकर्ता माइकल फैराडे के जीवन से जुड़ी एक बड़ी ही रोचक घटना है। जब माइकल फैराडे ने विद्युत चुम्बकीय प्रेरण की खोज कर ली तब उन्होंने इससे जुड़ा एक सार्वजनिक प्रयोग प्रस्तुत करने का निर्णय लिया। उनके इस नये प्रयोग को देखने के लिए इंग्लैंड के सभी हिस्सों से बहुत से लोग आये। उस प्रदर्शनी में एक महिला भी अपने बच्चे के साथ बहुत दूर से आई थी।

माइकल फैराडे ने मंच के ऊपर खड़े होकर अपना प्रयोग प्रस्तुत किया। उन्होंने तांबे के तारों से बना एक काॅयल लिया और उसके दोनों सिरों को एक गैल्वेनोमीटर से जोड़ दिया। फिर उस काॅयल में तेजी से एक बार मैग्नेट को प्रवेश करवाया। काॅयल में बार मैग्नेट के प्रवेश करने से गैल्वेनोमीटर की सुई हल्की सी आगे बढ़ी मतलब काॅयल में मैग्नेट के गति से विद्युत पैदा हुआ। फैराडे ने दर्शकों को समझाया कि इस तरह हम विद्युत पैदा कर सकते हैं।

प्रयोग खत्म होते ही वह महिला नाराज होती हुई माइकल फैराडे के समीप आई और बोलने लगी कि यह भी कोई वैज्ञानिक प्रयोग है! क्या तुमने पूरे इंग्लैंड से लोगों को यहां मूर्ख बनाने के लिए बुलाया था। तब फैराडे ने बहुत ही शालीनता से कहा - 'मैडम! जिस तरह आपका यह बच्चा अभी छोटा है, वैसे ही मेरा यह प्रयोग भी अभी बहुत छोटा या यू कहे बहुत शुरुआती दौर में है। हो सकता है भविष्य में यह प्रयोग विज्ञान जगत में अति महत्वपूर्ण और उपयोगी सिद्ध हो।'

इसमें कोई संदेह नहीं कि माइकल फैराडे के वे शब्द आज सच हो गये हैं। आज दुनिया भर में विद्युत उत्पन्न करने वाले जनरेटर, ट्रांसफार्मर और न जाने कितने ही विद्युत उपकरण फैराडे द्वारा खोजे गये विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर ही कार्य करते हैं। यदि उन्होंने इस सिद्धांत की खोज न की होती तो शायद आज हमें बिजली न मिल पाती।

Home » Prasang

Popular

  • श्रीमद्भगवद्गीता संपूर्ण अध्याय व्याख्या सहित
  • पंचतंत्र की 27 प्रसिद्ध कहानियाँ
  • तेनालीराम की चतुराई की 27 मजेदार कहानियां
  • संपूर्ण गीता सार - आसान शब्दों में जरूर पढ़े
  • स्वामी विवेकानंद की 5 प्रेरक कहानियाँ
  • श्रेष्ठ 27 बाल कहानियाँ
  • Steve Jobs की सफलता की कहानी
  • महापुरूषों के प्रेरक प्रसंग
  • बिल गेट्स की वो 5 आदतें जिनसे वे विश्व के सबसे अमीर व्यक्ति बनें
  • शिव खेड़ा की 5 प्रेरणादायी कहानियाँ
  • विद्यार्थियों के लिए 3 बेहतरीन प्रेरक कहानियाँ
  • दुनिया के सबसे प्रेरक 'असफलताओं' वाले लोग!

eBooks (PDF)

  • संपूर्ण सुन्दरकाण्ड (गीताप्रेस) (PDF)
  • संपूर्ण चाणक्य नीति (PDF)
  • श्रीमद्भगवद्गीता (गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित) (PDF)
  • शिव ताण्डव स्तोत्र अर्थ सहित (PDF)
  • दुर्लभ शाबर मंत्र संग्रह (PDF)
  • श्री हनुमान बाहुक (PDF)
  • श्री दुर्गा सप्तशती (PDF)
  • श्री हनुमान चालीसा (अर्थ सहित) (PDF)
  • संपूर्ण शिव चालीसा (PDF)
  • एक योगी की आत्मकथा (PDF)
  • स्वामी विवेकानंद की प्रेरक पुस्तकें (PDF)
  • संपूर्ण ऋग्वेद (PDF)
  • संपूर्ण गरुड़ पुराण (PDF)

Important Links

  • हमारे बारे में
  • संपर्क करें

©   Privacy   Disclaimer   Sitemap