गुरु गीता भगवान शंकर द्वारा माता पार्वती जी को सद्गुरु की महिमा के संदर्भ में कही गई है। भगवान श्री वेदव्यास ने स्कन्द पुराण के 'उत्तर खण्ड' में इस प्रसंग को वर्णित किया है। कैलाश शिखर पर देवाधिदेव महादेव एवं शक्तिरूपा माँ के बीच के इस वार्तालाप को बाद में नैमिषारण्य के पावन तीर्थ में सूत जी ने ऋषिगणों को सुनाया। आप अद्वैत वेदांत के प्रसिद्ध ग्रंथ Ashtavakra Gita का PDF को भी पढ़े। वही ज्ञान, परम पूज्य गुरुदेव के जीवन की व्याख्या, उनके द्वारा दिये गये मार्मिक सूत्रों एवं उनके प्रति समर्पण भाव से अभिव्यक्त किये गये दृष्टांतों के माध्यम से Shri Guru Gita PDF में सभी सुधी पाठकों के लिए प्रस्तुत है।
Guru Gita PDF in Hindi | गुरु गीता
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गुरु गीता | Guru Gita Hindi PDF |
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गुरु-तत्व का बोध जितना शिष्य को होता है, श्रद्धा जिस अनुपात में बढ़ती हैं, सुसंस्कारों की स्थापना भी उसी त्वरा से होने लगती है। प्रज्ञा अवतार रूपी गुरुसत्ता को समर्पित है महाकाल की वाणी- उन्हीं के जीवन की व्याख्या रूप में, सभी शिष्यों के कल्याणार्थ।
भारतीय साधन धारा में गुरुतत्व का विशेष स्थान है। यद्यपि गुरु के स्वरूप तथा उसकी विशिष्ट सत्ता के प्रति सभी आध्यात्मिक चिन्तक एकमत नहीं हैं, तथापि प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से गुरुतत्व का प्रभाव सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है। जहां शीरीरी गुरु की सत्ता को मान्यता नहीं दी गयी है; वहां अशरीरी सत्ता अथवा प्रातिभज्ञान ही गुरुतत्व का स्वरुप ग्रहण करने लगता है। कहीं-कहीं आत्मा अथवा चैतन्य ही गुरुतत्व रूप में स्वीकार्य है। यह स्थिति केवल आधुनिक चिन्तकों में ही नहीं रही है, प्रत्युत अत्यन्त प्राचीन काल में भी अन्तरात्मा, प्रत्यगात्मा अथवा हृद्देशस्थ चैतन्य की उस सत्ता को स्वीकार किया गया है, जो साधक की समस्त जिज्ञासा अथवा समस्यों का अपरूप समाधान उपस्थित कर देती है।
भारतीय वाङ्मय की विविध परम्परा में चाहे शब्द-शास्त्र के व्याख्याता हो, चाहे आलंकारिक निबन्ध के निर्माता हों, चाहे मीमांसा शास्त्र की विविध परम्परा के उद्भावक हों, चाहे वेदान्तसूत्र के विविध भाष्योपभाष्य के सम्पादनकर्ता हों, चाहे न्यायवैशेषिक सांख्ययोग दृश्य, श्रुत्य प्रभुति सिद्धान्तों के रचयिता हों, चाहे अद्वैतवादी शंकर, विशिष्टाद्वैतवादी रामानुज, द्वैताद्वैतवादी निम्बार्क, द्वैतवादी माध्वाचार्य, सर्वसमन्वय वैराग्यशिरोणि श्री रमानन्द हो, यावत् वेदों के संप्रदाय हों, सब में गुरु के प्रति होने वाला अभिवादन, स्तवन एक स्मरण प्रधान है। किसी ने गुरु की वाणी का, किसी ने गुरु की कल्याणमयी मूर्ति का, किसी ने गुरु के चरणज की वंदना एवं स्तुति की है। संसार में जितने भी रहस्य हैं, उनका ज्ञान सद्गुरु से ही संभव है।
साधक की दृष्टि में गुरुतत्व सर्वकाल तथा सर्वदेश में साधक के लिये आराध्य रूप से प्रकट होता है। इसके आश्रय से सद्गति होती है। स्तब्धता की विमूढ़ावस्था का अवसान होता है। यहां यह ज्ञातव्य है कि शास्त्रों में गति की चर्चा की जाति है। साधना भी एक प्रकार की गतिशीलता का ही घोतन कराती है। निम्न आयाम से ऊध्र्व आयाम की ओर की गतिशीलता ही साधना है। मध्याकर्षक से त्राण दिला कर ऊध्र्वाकर्षण की धारा में गतिशील हो जाने पर प्राप्तव्य से मिलन की संभावना का उदय होने लगता है। मोक्ष भी गति ही है। इसे देवयान गति कहा जाता है। ब्रह्मभाव, परमात्मभाव अथवा भगवद्भाव में आरुढ़ होने के लिये भी जीवत्वावरण का गतिमान होकर भेदन करना होता है। तदनन्तर ऊध्र्वातिऊध्र्व गतिधारा के आकर्षण में पड़ना आवश्यक है। वह ब्रह्मभाव से परमात्मभाव के पथ पर गतिशील हो जाता है। परमात्मभाव की सम्यक उपलब्धि के अनन्तर भी यथार्थ योगी की गति का अन्त नहीं हो जाता। वह महाभाग्यवान योगी परमात्मभाव से पुनः गतिशील होकर भगवद्भाव की यात्रा करता है। भगवद्भाव की प्राप्ति भी गति का अवसान नहीं है। भगवदभाव को प्राप्त महायोगी की सत्ता उस भगवदभाव के अनन्त आयाम में गतिशील रहती है जो अनन्त है, उसका कभी अन्त नहीं है।
इस समष्टि व्यष्टि में परम चैतन्य तत्व उसी प्रकार अनुस्यूत है, जिस प्रकार दूध में नवनीत, पृथ्वी में गन्ध, तेज में उष्णता, वायु में स्पर्श एवं जल में शीतलता, किन्तु इस चराचर जगत में व्याप्त चैतन्य की अनुभूति किस प्रकार हो, इसकी असली कुन्जी गुरुतत्व शरणा गति में ही है।
गुरु साक्षात भगवान हैं, जो साधकों को साधकों के कल्याणमय मार्गदर्शन हेतु जगत में साकार रूप होकर अवतरित होते हैं। गुरु ईश्वर प्राप्ति का अनुत्तम योजक है। गुरु का दर्शन यथार्थतः परमात्मा दर्शन है। दिग्भ्रमित एवं पथभ्रान्त मनुष्यों में वह भक्ति अनुप्राणित करता है। नीचे झुककर एक हाथ से संघर्षरत आत्माओं को उन्नत करता है। गुरु माता-पिता, बंधु-स्वजन से कहीं अधिक अहैतुकी दया करने वाले निःस्वार्थी, परमार्थी पुरुष हैं। वे आनन्द, ज्ञान तथा करुणा के सागर हैं, उनकी वाणी, ब्रह्मवाणी है, सत्य उनके पवित्रमुख से निकल कर ही शब्दरूप में साकार होता है, सद्गुरु की कृपा से शिष्य के अन्दर विद्यमान जीव-भाव मिट जाता है और वह ब्रह्म रूप हो जाता है।
भगवान कृष्ण को जगतगुरु Guru Gita PDF in Hindi माना गया है वर्तमान समय में भी श्री शंकराचार्य जी को जगद-गुरु माना जाता है। यदि हम जगद-गुरु शब्द का अर्थ निकाले तो जगत का अर्थ यह संपूर्ण दृश्यमान प्रपन्च अर्थात संपूर्ण विश्व गुरु शब्द में गु तथा रु दोनों के भिन्न-भिन्न अर्थ हैं गु का अर्थ है अन्धकार तथा रु दोनों के भिन्न-भिन्न अर्थ हैं गु का अर्थ है अन्धकार तथा रु का अर्थ है प्रकाश। अर्थात जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाये। इस प्रकार जगतगुरु का अर्थ हुआ संपूर्ण विश्व को अज्ञान रुपी अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए।
वस्तुतः यह जो दृश्यमान जगत है वह मिथ्या है उसके मिथ्यत्व को प्रकाशित करने के कारण ही सम्भवतः जगतगुरु इस उपाधि से शंकराचार्य जी को विभूषित किया गया है। भगवान श्री कृष्ण और श्रीमद आदि शंकराचार्य भगवत्पाद भारतीय इतिहास के ऐसे दो महत्वपूर्ण स्तम्भ है जिससे सनातन धर्म आज भी अपने मूल रूप में सुरक्षित है।