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[PDF] Sunderkand Path PDF | सुन्दरकाण्ड पाठ

Hindi PDF of Sunderkand Path
Title : सुन्दरकाण्ड पाठ
Pages : 65
Size : 204 KB
File format : PDF
Category : Hinduism / Path
Language : Hindi / Sanskrit
To read : Download

अथ सुन्दरकाण्डम् (रात्रि-आगमन की प्रतीक्षा): अन्यों द्वारा अलंघ्य समुद्र को अपने बल एवं पराक्रम से पार करके स्वस्थ चित्त हो महाबली हनुमान ने त्रिकूट पर्वत पर बसी हुई लंकापुरी को देखा।


रावण द्वारा पालित एवं रक्षित लंकापुरी के समीप पहुँचकर सौभाग्यशाली हनुमान ने कमलों से परिपूर्ण तथा जलवाली खाइयों से घिरी हुई लंका को देखा।

सीता-हरण से शंकित होकर रावण ने लंका की विशेष रूप से निगरानी एवं रक्षा के लिए कामरूपी राक्षस नियुक्त कर दिये थे, जो चारों और घूम-घूमकर पहरा दिया करते थे।

  • Sampurna Sunderkand in Hindi (PDF)
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स्वर्ण के रमणीक परकोटे से घिरी हुई, शरतकालीन मेघों के समान श्वेत और पर्वत के समान ऊँचे- ऊँचे विशाल भवनों से सुशोभित, सफेद वर्ण की पक्की सड़कों और गलियों से युक्त, ध्वजा और पताकाओं से अलंकृत, सैकड़ों अट्टालिकाओं से परिपूर्ण, उत्तम तोरण और चमचमाते हुए निर्मित लता-पंक्तियों से परिपूर्ण देवताओं की देवपुरी अमरावती के समान उस महापुरी लंका को महावीर हनुमान जी ने देखा।

देव और असुरों से अलंघनीय उस लंकापुरी को देखकर हनुमान जी बार-बार दीर्घ-निःश्वास छोड़ते हुए सोचने लगे- क्या उपाय करूँ कि मैं जनकनन्दिनी सीता जी को देख लूँ और रावण की नजर से बचा रहूँ।

मैं क्या करूँ जिससे लोकप्रसिद्ध श्री राम (राम रक्षा स्तोत्र) का कार्य बिगड़ने न पाए और मैं एकांत में अकेली जानकी के दर्शन कर लूँ।

यदि राक्षसों ने मुझे देख लिया तो रावण को दण्ड देने के इच्छुक लब्धकीर्ति श्री राम का सीता-अन्वेषण रूपी कार्य व्यर्थ हो जायेगा।

यहाँ किसी स्थान पर राक्षसों से छिपकर कोई भी रह नहीं सकता। यहाँ तक कि राक्षसों का रूप धारण करने पर भी राक्षसों से छुटकारा नहीं मिल सकता, अन्य किसी रूप में रहने की बात ही क्या है?

मैं समझता हूँ, यहाँ वायु भी गुप्त रूप से कोई कार्य करना चाहे तो नहीं कर सकता क्योंकि लंका में कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है जो भीषण कर्म करने वाले राक्षसों की दृष्टि से छिप सके।

यदि मैं अपने वास्तविक रूप में इस स्थान पर ठहरता हूँ तो केवल स्वामी का कार्य ही नष्ट नहीं होगा, अपितु मैं भी मारा जाऊँगा।

अच्छा मैं अपने असलीरूप में, परन्तु बौने के रूप में अपनी आकृति को छोटा बनाकर और रात्रि के समय लंका में प्रवेश कर सीता जी के दर्शन करूँगा।

अपने मन में ऐसा निश्चय करके सीता जी के दर्शन के लिए उत्सुक वीर हनुमान सूर्यास्त होने की प्रतीक्षा करने लगे।

सूर्य के अस्त होने पर रात्रि में हनुमान जी ने अपने तन को छोटा कर विशाल राजमार्गों से युक्त रमणीय लंकापुरी में प्रवेश किया।

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