हिंदू धर्म के प्राचीन धर्मग्रन्थ 'मनुस्मृति' से कुछ महत्वपूर्ण उपदेश हिंदी में।
- दुराचारी मनुष्यों को पंच तन्मात्राओं के माध्यम से अपने पापों के फल के रूप में दुःख-कष्ट सहन के लिए दूसरे-तीसरे शरीर धारण कर बार-बार अवश्य ही उत्पन्न होना पड़ता है।
- पापात्मा नये शरीर धारण कर अपने पाप कर्मों के फलस्वरूप यमराज द्वारा निर्धारित यातनाओं को भोगकर फिर उन्हीं पंचभूतों में बंटकर (पृथ्वीतत्व पृथ्वी में और जलतव जल में आदि) लुप्त हो जाते हैं।
- पापी जीव निषिद्ध विषयों के उपभोग से उत्पन्न दुःखों को भोगने से पापमुक्त होकर - अत्यंत पराक्रमी उन दोनों - महान और क्षेत्रज्ञ - को प्राप्त होता है।
- ये दोनों - महान और क्षेत्रज्ञ - एक साथ सदैव निरलस रहकर इस जीवात्मा द्वारा किये जा रहे पाप कर्मों को देखते हैं। इन्हीं के माध्यम से जीव इस लोक में तथा पर-लोक में सुख प्राप्त करता है। इस विषय पर ऋग्वेद में भी लिखा गया है। आप संपूर्ण ऋग्वेद को हिंदी में ई-बुक के रूप में यहां डाउनलोड कर सकते है।
- इसके विपरीत यदि जीव अधिक मात्रा में पाप कर्म करता है, तो उसका धर्म हल्का पड़ जाता है, जिससे उत्तम पंचभूत उसका परित्याग कर देते हैं और फिर वह यमराज की अनेक असहाय यातनाओं को सहन करता है।
- यम की यातनाओं के भोगने से निष्पाप बना जीव क्रम-क्रम से पुनः उन्हीं उत्तम पंचभूतों को प्राप्त करता है।
- इस प्रकार धर्मकार्यों से जीव की सद्गति को और अधर्मकार्यों से उसकी दुर्गति को देखकर मनुष्य को सदैव शुभ कर्मों के अनुष्ठान में ही प्रवृत्त होना चाहिए।
- आत्मा जीव की प्रकृति के तीन गुण हैं - सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण। इन गुणों से व्याप्त होकर ही यह महान स्थावर और जंगमरूप संसार संपूर्ण भावों को विशेषता से ग्रहण करके अवस्थित है।
- ज्ञान-वस्तु को - यथार्थ रूप में जानना अथवा यथार्थ वस्तु (परमात्मा-आत्मा) को जानना सतोगुण का, विपरीत स्थिति, अर्थात जानने योग्य यथार्थ वस्तु को न जानना तमोगुण का तथा राग-द्वेष (किसी से प्रेम और किसी से शत्रुता रखना) रजोगुण का लक्षण है। सभी प्राणियों का शरीर इन गुणों से व्याप्त रहता है।
- जिस प्रकार मनुष्य तृषा से व्याकुल होने पर हाहाकार करते हैं और मर भी जाते हैं, उसी प्रकार वृक्ष भी जल न मिलने पर दुखी होते हैं। अपने दुःख को भीतर-ही-भीतर झेलते हैं, प्रकट नहीं कर पाते। जल के अभाव में लोगों को सभी वनस्पतियों और वृक्षों का सूखना तो स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, परन्तु उनका दुखी होना उभरकर सामने नहीं आता। इस प्रकार विभिन्न जीवों से व्याप्त इस भयंकर एवं गतिशील संसार में ब्रह्मा से लेकर वृक्षों तक सभी जीवों की यही स्थिति एवं अवस्था होती है।