सन् 1939 से 1945 तक चले दूसरे महायुद्ध में विजय प्राप्त करने के बावजूद ब्रिटेन अन्दर से खोखला हो गया था। उधर भारत में आज़ादी की मांग बढ़ती जा रही थी। 1942 का भारत छोड़ों आन्दोलन के विफल हो जाने के बावजूद स्वाधीनता की मांग को दबाया नहीं जा सका था। जुलाई, 1945 में ब्रिटेन में हुए आम चुनाव में सर विन्सटन चर्चिल की अगुवाई वाले अनुदार दल की पराजय हो गई थी और मजदूर दल के नेता क्लीमेंट एटली (Clement Attle) प्रधानमंत्री का पद संभाल चुके थे। अगर आप भारत के संविधान के नये संस्करण को डाउनलोड करना चाहते है तो यहां जाए - Complete Hindi Indian Constitution (PDF)
इसी दौरान में 20 जनवरी, 1946 को भारत की वायुसेना के सैनिकों ने कराची में हड़ताल कर दी। तुरन्त ही यह हड़ताल लाहौर, मुम्बई और दिल्ली में भी फैल गई। 19 फरवरी, 1946 को मुम्बई से आरम्भ हुई नौसेना की हड़ताल ने कोलकाता, चेन्नई, कराची और दिल्ली को भी अपनी चपेट में ले लिया। इससे लन्दन स्थित ब्रिटिश सरकार के कान खड़े हो गए। वह देश में 1857 के इतिहास को दुहराए जाने का खतरा उठाने को तैयार नहीं थी। भारतीय सेना की राजभक्ति पर उसे भरोसा नहीं रह गया था और भारत को अपने अधीन बनाए रखने के लिए अंग्रेज सैनिकों की बहुत बड़ी सेना देश में तैनात करने की स्थिति में वह नहीं रह गया था।

अतः ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेण्ट एटली ने 15 मार्च, 1946 को एक महत्वपूर्ण घोषणा करके अपने तीन वरिष्ठ मंत्रियों के एक दल को भारत की राजनीतिक समस्या का हल निकालने के लिए दिल्ली रवाना किया था। यद्यपि तीन मंत्रियों वाले इस मंत्रिमण्डलीय या कैबिनेट मिशन को भारत की राजनितिक समस्या का हल निकालने में सफलता नहीं मिल सकी, फिर भी इस मिशन की राजनीतिक योजना को आधार बनाकर ही 3 जून, 1947 को घोषित माउंटबेटन योजना (Mountbatten Plan) ने भारत का विभाजन करते हुए भारतीय प्रायद्वीप को स्वतंत्रता दे दी। जहां तक संविधान सभा (Constituent Assembly) का सवाल है, उसका गठन तो मंत्रिमण्डल मिशन की सिफारिशों के आधार पर ही हुआ था।
मंत्रिमण्डलीय मिशन योजना के तहत सन् 1946 में गठित अविभाजित भारत की संविधान सभा में सदस्यों की बहुसंख्या का चुनाव भारत की प्रान्तीय विधान सभाओं के सदस्यों द्वरा किया गया था। इसका कारण यह है कि देशी रियासतों से भारत की संविधान सभा में शामिल सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से भी चुने नहीं गए थे। उनकी तो देशी रियासतों के शासकों द्वारा मनोनीत या नामजद किया गया था। इसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैः
- संविधान सभा की कुल सदस्य संख्या 385 रखी गई थी। इनमें से 292 प्रान्तों की विधान सभाओं से 10 लाख की जनसंख्या के आधार पर 1 प्रतिनिधि चुने जाने की व्यवस्था के अधीन चुने जाने थे। देशी रियासतों के शासकों द्वारा नामजद किए जाने वाले सदस्यों की संख्या 93 रखी गई थी। भारत के विभाजन के बाद सदस्यों की संख्या घटकर 308 हो गई।
- संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव करने वाली विधानसभाएं भी व्यस्क मताधिकार के आधार पर चुनी हुई नहीं थी। उनका चुनाव सीमित मताधिकार प्रणाली के अधीन हुआ था।
- प्रत्येक प्रान्त के लिए निश्चित की गई सदस्यों की संख्या 3 वर्ग के थे। ये क्रमशः मुसलमान, सिख और साधारण वर्ग कहलाते थे। इन तीनों वर्गों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थान दिए गस थे।
- संविधान सभा के अंदर प्रांतीय विधानसभाओं से चुन कर आने वाले सदस्यों के लिए चुनाव की आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अधीन एकल संक्रमणीय मत पद्धति का सहारा लिया गया था।
- देशी रियासतों के प्रतिनिधियों की नामजदगी संबंधित रियासतों के शासकों द्वरा संविधान सभा में की जानी थी।
- 3 जून, 1947 की माउंटबेटन योजना के अधीन पाकिस्तान के लिए एक पृथक संविधान सभा का गठन किया गया। पाकिस्तान में शामिल पंजाब और बंगाल के क्षेत्रों के प्रतिनिधियों के साथ सिंध, पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त, बलूचिस्तान और असम के सिलहट जिले के सदस्य पाकिस्तानी संविधान सभा के सदस्य बनाए गए।
- पश्चिमी बंगाल और पूर्वी पंजाब के सदस्यों का निर्वाचन फिर से किया गया।
अविभाजित भारत के लिए गठित की गई इस संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को बुलायी गई थी। मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि भी इस संविधान सभा के सदस्य थे। अन्तरिम सरकार में भी उसकी भागीदारी थी। लेकिन संविधान सभा की बैठक शुरू होने मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि उसमें शामिल नहीं हुए और उन्होंने उसका बहिष्कार करने की घोषणा की। जबकि मंत्रिमण्डलीय मिशन योजना के अधीन अंतरिम सरकार के गठन के साथ संविधान (constitution) सभा की कार्यवाही में भाग लेना अनिवार्य था। इस घटना के फलस्वरूप अन्तरिम सरकार के मुखिया जवाहर लाल नेहरू द्वारा 9 दिसम्बर, 1946 को संविधान सभा में प्रस्तुत उद्देश्य संकल्प या प्रताव 22 जनवरी, 1947 को अंगीकृत या पारित किया जा सका था।
9 दिसम्बर, 1946 को अविभाजित भारत की संविधान सभा में पेश किए गए 'उद्देश्य संकल्प' और 22 जनवरी, 1947 को लगभग 6 सप्ताह की लंबी अवधि पूरी होने पर उसके पारित या अंगीकृत किए जाने का प्रमुख कारण यह था कि मुस्लिम लगी के साथ-साथ देशी रियासतों के प्रतिनिधियों की गैर-मौजूदगी को देखते हुए संविधान सभा के दो वरिष्ठ सदस्य डा. जयकर और डा. अम्बेडकर ने 'उद्देश्य संकल्प' को पारित और अंगीकृत करने में जल्दबाजी न करने की सलाह दी थी।
इसलिए 6 सप्ताह तक उनकी प्रतिक्षा की गयी। किन्तु उनके न आने पर 22 जनवरी, 1947 को 'उद्देश्य संकल्प' पारित और अंगीकृत कर लिया गया।