प्रायः यह समझा जाता है कि लोगों के नगरों में रहने से सभ्यता का जन्म हुआ। नगरों के विकास का प्रथम चरण पाँच से छः हजार वर्ष ई.पू. में मेसोपोटामिया (आधुनिक इराक), मिस्त्र, भारत (इंडिया का कॉन्स्टिट्यूशन पीडीएफ) तथा चीन की नदी घाटी सभ्याताओं से से हुआ। यह नगर अब कृषि तथा पालतू जानवरों पर ही निर्भर नहीं थे। जैसे-जैसे सभ्यता का विकास होता गया तथा व्यापारिक मार्गों की संख्या में वृद्धी होती गई यह नगर व्यापारियों, शिल्पकारों तथा सरकारी अधिकारियों की गतिविधियों के केन्द्र बन गये।
मेसोपोटामिया के प्राचीन नगर 3000 ई.पू.
भूतत्व वेत्ताओं का विचार है कि सबसे पहले सभ्यता का उदय दक्षिणी मेसोपोटामिया (ईराक) में हुआ न कि किसी और स्थान से। 3500 ई.पू. में ईराक में बस्तियां, विशाल भवन तथा लेखनकला सभी अस्तित्व में आ चुके थे। मिस्त्र में तो यह कलाएं उसके कई शताब्दियों पश्चात् तक भी विकसित नहीं हुई थी। सिन्धु घाटी में पूर्व हड़प्पा या प्रारम्भिक हड़प्पा सभ्यता काल के छोटे-छोटे किलाबंदी नगर 3000 ई.पू. से कुछ पहले तक अस्तित्व में नहीं आये थे।
मेसोपोटामिया के समेर प्रदेश में 15 से 20 बड़े-बड़े नगर थे। प्रत्येक नगर के ईर्द-गिर्द छोटे-छोटे नगर गांव तथा बस्तियां थी। इसके विपरीत सिन्धु घाटी में दो बड़े विशाल नगर थे तथा छोटे-छोटे नगर भी बसे हुए थे परन्तु यहां मध्य आकार का कोई नगर नहीं था। मिस्र के लोगों को प्राचीन काल के किसी नगर के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। मेसोपोटामिया के नगर सिन्धु घाटी के योजनाबद्ध तथा सैनिक छावनियों की भांति दिखाई देने वाले नगरों से भिन्न थे।
सिन्धु घाटी के नगरों के विपरीत मेसोपोटामिया के बड़े-बड़े नगरों की गलियां टेढ़ी-मेढ़ी थीं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह नगर समय की आवश्यकताओं के अनुसार बिना किसी योजना के विकसित हुये हों।
पश्चिमी एशिया में अन्य स्थानों पर भी 2000 ई.पू. के पश्चात् जो नगर अस्तित्व में आये वे भी मेसोपोटामिया के नगरों की भांति ही थे। साधारणतया यह नगर पूजा स्थलों के ईर्द-गिर्द विकसित हुये तथा यह मुख्य व्यापारिक केन्द्र थे।
ईराक के प्राचीन नगर (The Earliest Towns of Iraq)
ईराक के प्राचीन नगरों में से टेपी गवारा (Tepe Gawra) एक प्राचीन नगर था। इस नगर की जानकारी परातत्व वेत्ताओं को 1932-38 के काल में खुदाईयों द्वारा प्राप्त हुई। यहां से मिलने वाली सुन्दर वस्तुओं तथा अन्य खोदी गई वस्तुओं के गुण नगर के इतिहास के बारे में अध्ययन करने में सहायक होते हैं।
टेपी गवारा: उत्तरी ईराक में स्थित है और मोसुल नगर के 18 मील उत्तर पूर्व में है। यह टाईगरस नदी तथा मज़ारोज पर्वत के तराई के बीच में स्थित है। गवारा नगर दूर-दूर के स्थानों के कीमती पत्थरों के व्यापार का केन्द्र था। इस प्रकार के नगर विदेशी प्राचीन वस्तुओं के व्यापार के लिए प्रसिद्ध थे। यह उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र के निकट छोटे-छोटे समूहों के केन्द्र थे।
मृतकों के दबाने के ढंग से पुरातत्ववेत्ताओं को टेपी गवारा के विकास के बारे में जानकारी प्राप्त करने में सहायता मिली। कब्रों की खुदाई से उन लोगों के जीवन तथा उनके धार्मिक विचारों के बारे में पता चलता है। कब्रिस्तानों से हमें लोगों की सामाजिक स्थिति धर्म और धन की असमानताओं तथा जातियों आदि का भेद का ज्ञान होता है।
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टेपी गवारा में मृतक शरीरों को मिट्टी की ईंटों से बने हुये मकबरों, साधारण घड़ों, बड़े बर्तनों, ऐसे घड़ो जिनके पीछे दीवार बनी होती थी, ऐसे घड़ें जिन पर मिट्टी का लेप किया होता था या मिट्टी और पत्थर से बनी हुई कब्रों में रखा जाता था। मृतक शरीरों के साथ कब्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार की वस्तुएं जैसे कि बर्तन, गले के हार, सोना, सुन्दर मनके और विभिन्न प्रकार के कीमती पत्थर रखे जाते थे। कब्रों की वस्तुओं को देख कर पता चलता है कि इस नगर के लोगों का समाज में क्या स्थान था ऐसा प्रतीत होता है कि वयस्क लोगों को साधारण घड़ों अथवा मिट्टी की बनी हुई कब्रों में दबाया जाता था। धनवान लोगों की कब्रों में बहुमूल्य वस्तुयें रखी जाती थी।
किरकुक नगर (Kirkuk City)
मेसोपोटामिया का एक अन्य महत्वपूर्ण नगर किरकुक था। इस नगर का इतिहास लगभग 3000 ई.पू. है। यह नगर 884 ई.पू. से 858 ई.पू. एसिरिया के राजा नैसीबल ने सामरिक महत्व की दृष्टि से बनवाया था।
राजा सलुक ने दुर्ग के इर्द-गिर्द एक बहुत ही पक्की दीवार बनवाई जिसमें 72 बुर्ज, दो प्रवेश द्वार तथा 72 गलियां थी। यह आसपास के क्षेत्रों में मिलने वाली वस्तुओं जैसे कि भेड़ों, ऊन, पनीर तथा पशुओं के व्यापार तथा निर्यात का केन्द्र था। इन नगर में कपड़ा भी बनता था।
भारत के प्राचीन नगर (Early Cities in India)
भारत में हमें सिन्धु घाटी में नगरों के अवशेष प्राप्त हुये हैं।हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो के नगर बहुत विकसित थे। मोहनजोदड़ो विश्व में सबसे पुराना योजनाबद्ध नगर था। यह पाकिस्तान के सिंधु प्रान्त के लरकाना जिले में सिंधु नदी के किनारे पर बसा हुआ था। यह नगर सिन्धु घाटी के लोगों की सामाजिक गतिविधियों का मुख्य केन्द्र था। इसकी गलियां हमारे आधुनिक नगरों के गलियों की भांति चैड़ी तथा योजनानुसार बनी हुई थी। इस नगर की मुख्य विशषता योजनाबद्ध पानी के निकास की प्रणाली थी।
रावी नदी के किनारे बसा हुआ एक अन्य महत्वपूर्ण नगर हड़प्पा था। ऐसा प्रतीत होता है कि यह नगर मोहनजोदड़ो से बड़ा नगर था। हड़प्पा में बने हुये मकानों का आकार छोटा होता था। परन्तु इस नगर के अवशेष मोहनजोदड़ो से मिले नगर के अवशेषों से मिलते जुलते हैं।
लेखन कला तथा नगरों का जीवन (Writing and City Life)
किसी भी सभ्यता के निमार्ण के लिए यह आवश्यक है कि लोगों को अपने विचार प्रकट करने तथा ज्ञान का विस्तार करने के लिए लिखने की कला का ज्ञान हो। लेखन कला के बिना न तो लोग शिक्षित हो सकते हैं और न ही साहित्य की रचना हो सकती है। 4000 ई.पू. से लेकर 3000 ई.पू. के काल में लिखने की कला का धीरे-धीरे विकास हुआ। आरम्भ में लिखने की कला केवल चित्रों पर ही आधारित थी जिसका अर्थ है किसी कहानी को क्रमानुसार चित्रों द्वारा अंकित करना।
धीरे-धीरे लेखन कला में उस समय कुछ सुधार हुआ जब कोई चित्र न केवल वस्तु को दर्शाता था बल्कि यह विचार को प्रकट करता था। उदाहरणतः मनुष्य की आँख का चित्र में आंख से गिरते हुए आंसू दिखाये जाते हैं तो इसका अर्थ है उदासी अथवा दुखः। जब कोई चिन्ह किसी चित्र की अपेक्षा बोले हुए शब्द की आवाज़ को दर्शाने लगा तब लेखन कला में एक बड़ा परिवर्तन आया जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार लिख कर प्रकट करने लगा। अब विचार को प्रकट करना सम्भव हो गया जो कि किसी भी चित्र द्वारा नहीं दर्शाया जा सकता था।
लेखन क्रिया का अन्तिम चरण उस समय आया जब प्रत्येक अक्षर के स्वर को एक चिन्ह द्वारा दर्शाया जाने लगा। लेखन क्रिया के अन्तिम चरण में मिस्त्र के लोगों ने एक ऐसी वर्ण माला का आविष्कार किया जिसमें चौबीस अक्षर थे। इस आविष्कार के बाद भी वह पुरानी चित्र लेखन प्रणाली का भी प्रयोग करते रहे तथा कभी उन्होंने पूर्णतया नई वर्णमाला का प्रयोग नहीं किया परन्तु स्वरों के लिये चिन्ह न बना सके।
लेखन कला के बिना न ही ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है और न ही भविष्य का विकास। लेखन कला के विकास के कारण ही साहित्य की प्रगति की। इतिहास लेखन के लिए विद्वानों ने लेखन कला के महत्व को समझा तथा इसका प्रयोग किया। ज्यूलिअस सीज़र ने अपने फ्रांस के युद्धों का इतिहास लिखा। अनेक विद्वानों ने प्राचीन तथा मध्यकालीन इतिहास की रचना की। आधुनिक काल में इंग्लैंड के प्रधानमंत्री विन्सटन चर्चिल ने दूसरे विश्व युद्ध के इतिहास का विस्तृत इतिहास लिखा। अमेरिका के राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट ने अपनी पुस्तक (Winning of the West) की चार खण्डों में उस अविकसित देश का इतिहास लिखा जहां रह कर उन्होंने युवा अवस्था में प्रवेश किया था।