प्राचीनकाल की बात है। उत्तर भारत में एक शक्तिशाली राजा शासन करता था। उसके दरबार में अनेक चतुर मंत्री तथा सामंत थे। परंतु उसका प्रधानमंत्री अत्यंत मेधावी तथा वाक्पटु था। इसी कारण राजा हर बात में उससे परामर्श लेता था।
शीत ऋतु का अंत हो चुका था तथा ऋतुराज वसंत अपनी प्राकतिक शोभा लेकर पदार्पण कर चुका था। चारों ओर सुहावना वातावरण था और ग्रीष्म ऋतु की सब्जियों का आरंभ हो चुका था। राजकीय माली ने आकर द्वारपाल से कहा, "जाइए तथा महाराज से निवेदन कीजिए कि मैं उनके लिए एक भेंट लेकर आया हूं।"
द्वारपाल ने दरबार में जाकर राजा को प्रणाम किया तथा बोला, "महाराज! राजकीय माली आपके लिए एक भेंट लेकर आया है। वह दरबार में उपस्थित होने की अनुमति चाहता है।"
"उसे शीघ्र हमारे समक्ष लेकर आओ," राजा ने द्वारपाल को आदेश दिया।
कुछ ही क्षणों में माली एक पोटली लेकर दरबार में उपस्थित हो गया तथा राजा को प्रणाम करके बोला, ‘महाराज! मैं आपके लिए नई ऋतु की एक सब्जी लेकर आया हूँ, कृपया इसे स्वीकार करें।‘ यह कहकर माली ने पोटली खोलकर छोटे-छोटे आठ-दस बैंगन राजा के सामने रख दिए। राजा ने बैंगनों को निहारा तो वे उसे बहुत अच्छे लगे। फलस्वरूप उसने प्रधानमंत्री को संबोधित करके पूछा, "मंत्री जी! आपके विचार में यह सब्जी कैसी है?"
चतुर मंत्री राजा की भावदशा को भाँप चुका था। अतः बोला, "महाराज इस सब्जी का क्या कहना! ज़रा इन बैंगनों के चमकते जामुनी रंग को देखिए। प्रत्येक बैंगन के सिर पर हरे रंग की टोपी तो एकदम मुकुट के समान दिखाई दे रही है।"
मंत्री की बात सुनकर राजा गद्गद हो उठा। परिणामस्वरूप उसने तुरंत माली को पुरस्कार के रूप में सौ मुद्रा देने का आदेश दे दिया। माली अपने भाग्य पर इतराते हुए राजा को धन्यवाद देकर अपने घर लौट गया। दिन बीतते गए तथा होते-होते एक वर्ष निकल गया। पुनः वही ग्रीष्म ऋतु की सब्जियों का समय आ गया। राजकीय माली ने पिछले वर्ष की भाँति इस बार भी छोटे-छोटे बैंगन लेकर राजा को भेंट करने की ठान ली। द्वारपाल के माध्यम से दरबार में उपस्थित होने की अनुमति प्राप्त करके, वह दरबार में चला गया और राजा के समक्ष नतमस्तक होकर उसने बैंगन उसके समक्ष रख दिए।
दुर्भाग्यवश राजा की मनोदशा उस समय ठीक नहीं थी। वह समझ गया कि माली पुनः पुरस्कार लेने के लोभ में बैंगन लेकर आया है। अतः वह तिलमिलाकर बोला, "क्या है ये सब्जी? लेकर चले आए भेंट देने हेतु।"
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राजा की बिगड़ी भावास्था को भाँपकर प्रधानमंत्री भी एकदम बोल उठा, "हाँ महाराज! यह सब्जी किसी काम की नहीं। इसी कारण तो इसे 'बेगुण' का नाम दिया गया है।"
बेचारा माली अत्यंत निराश होकर तथा अपना-सा मुँह लेकर अपने भाग्य को कोसते हुए दरबार से चला गया।
कुछ समय पश्चात राजा की मनोदशा सामान्य हो गई। तिलमिलाहट जाती रही तथा वह प्रसन्नचित दिखाई देने लगा। अचानक उसका ध्यान माली वाली घटना की ओर चला गया। वह अपने किए पर पछताते हुए सोचने लगा, "मैंने निर्धन माली के साथ अत्यंत अभद्र व्यवहार किया, परंतु प्रधानमंत्री की मनोदशा तो असामान्य नहीं थी। भला उसने मुझे माली के साथ कटु व्यवहार करने से क्यों नहीं रोका?"
इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए राजा ने प्रधानमंत्री से पूछा, "मंत्री जी! मेरी मनोदशा प्रातःकाल असामान्य थी। अतः मैंने निर्दोष माली के साथ अनुचित व्यवहार किया। परंतु आपकी मनोदशा तो ठीक थी न, फिर आपने मुझे ऐसा करने से क्यों नही रोका? पिछली बार तो आपने बैंगनों के चमकते रंग की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी तथा प्रत्येक बैंगन की हरे रंग की टोपी को मुकुट का स्तर प्रदान किया था। परंतु इस बार बैंगन को ‘बेगुण‘ कहकर उसकी निंदा की। आप इस बात को किस प्रकार स्पष्ट करेंगे?"
मंत्री बहुत कुशाग्रबुद्धी वाला था। वह झटपट बोला, "महाराज! मैं तो आपका सेवक हूँ, इन बैंगनों का नहीं।"
मंत्री का उत्तर सुनकर सभी सामंत खिल-खिलाकर हँस पड़े। राजा भी अपने प्रधानमंत्री की हाजिरजवाबी पर ठहाका लगाए बिना न रह सका तथा उसकी सराहना करने लगे। परंतु भीतर-ही-भीतर वह अपने अभद्र व्यवहार पर पछता रहा था। अतः उसने माली को बुलावा भेजा तथा अपनी अभद्रता के लिए खेद प्रकट किया। यही नहीं, उसने माली को उचित पुरस्कार भी दिया।
शिक्षा (Moral of Story): यह हास्यजनक कहानी मनुष्य की भावदशा के उतार-चढ़ाव को स्पष्ट करते हुए यह दर्शाती है कि असामान्य भावावस्था हमारे व्यवहार पर किस प्रकार कुप्रभाव डालती है तथा हम कुछ-न-कुछ अनुचित कर बैठते हैं। परंतु भावदशा के सामान्य होने पर हम अपने अनुचित व्यवहार पर पछताते हुए खिन्न हो उठते हैं तथा अपनी अभद्रता के कारण हुई क्षति की पूर्ति करने के लिए आतुर हो जाते हैं।
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