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मूर्खाधिराज

tenali raman short stories
राजा कृष्णदेव राय के दरबार में एक सालाना प्रतियोगिता होती थी, जिसमें जीतने वाले को ‘मूखाधिराज‘ की उपाधि दी जाती थी। इस प्रतियोगिता में सभी दरबारी भाग ले सकते थे। सब इस प्रतियोगिता की उत्सुकता से प्रतीक्षा करते थे, क्योंकि प्रतियोगिता जीतने वाले को पाँच हजार सोने के सिक्के मिलते थे। हर वर्ष तेनालीराम यह प्रतियोगिता जीत जाता था।

इस वर्ष दरबारियों ने आपस में सलाह करके तेनालीराम को इस प्रतियोगिता से दूर रखने का फैसला किया। तेनालीराम के नौकर को रिश्वत देकर दरबारियों ने तेनालीराम को उसके कमरे में बन्द कर दिया ताकि वह प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए राजदरबार न पहुँच सके।

समय बीतता गया और तेनालीराम वक्त पर राजदरबार में न पहुँच पाया। जब त कवह पहुँचा, तब तक प्रतियोगिता समाप्त होने को थी। अभी प्रतियोगिता के विजेता का नाम पुकारा जानेवाला था, तभी तेनालीराम ने दरबार में प्रवेश किया। महाराज ने उससे पूछा, 'क्या हुआ तेनाली! तुम्हें इतनी देर कहाँ हो गयी? तुम तो प्रतियोगिता में भी हिस्सा नहीं ले पाये।'

तेनालीराम ने महाराज को बताया कि उसे सौ साने के सिक्कों की बहुत जरूरत थी। उन्हीं का इन्तजार करने में उसे देर हो गयी।

"अगर तुमने इस प्रतियोगिता में भाग लिया होता, तो तुम अवश्य ही जीत जाते और फिर तुम्हारी पैसों की समस्या भी सुलझा जाती।" महाराज बोले, 'तुमने बहुत बड़ी बेवकूफी की है।' तेनालीराम को चिढ़ाते हुए महाराज बोले, 'तुम, बहुत बड़े मूर्ख हो तेनाली'

"मैं वास्तव में मूर्ख हूँ महाराज।" तेनाली दुःखी स्वर में बोला।

'तेनाली! आज तो तुमने बहुत ही बेवकूफी की हरकत की है। तुम मूर्ख ही नहीं, महामूर्ख हो। तुमसे बड़ा मूर्ख मैने आज तक नहीं देखा।' महाराज लम्बी साँस लेते हुए बोले।

'इसका मतलब मैं अपना खिताब वापिस जीत गया।' तेनाली खुशी से उछलते हुए बोला। अब राजा कृष्णदेव राय को समझ में आया कि वे क्या बोल गये हैं। पर तीर तो कमान से निकल चुका था और महाराज अपनी गलती मानने वाले नहीं थे। अपनी भूल पर पर्दा डालते हुए कृष्णदेव राय ने इस वर्ष के मूर्खाधिराज की उपाधि भी तेनालीराम को देने की घोषणा की। सभी दरबारी चकित थे, पर महाराज के सम्मुख कुछ कहने का साहस किसी में न था।

शिक्षा (Tenali's Moral): विजेता की यह पहचान होती है कि वह अपने साहस और चतुराई से हालात अपने पक्ष में कर लेते हैं।

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