राजा कृष्णदेव राय एक महान राजा थे। उनका न्याय दूर तक प्रसिद्ध था। वे धर्मानुसार राजकाज चलाते थे। उनके शासन से प्रजा भी सन्तुष्ट थी।
एक बार हम्पी राज्य में बहुत चोरियाँ होने लगीं। इससे महाराज अत्यन्त चिन्तित हो गये। लगातार चोरियाँ होने और शासन-व्यवस्था द्वारा चोरों को न पकड़ पाना, उनके प्रशासन पर एक धब्बा था।
उन्होंने तुरन्त ही अपने महाप्रधान (प्रधानमंत्री) तिम्मरूसु को और कार्यकर्ता (सेनापति) को बुलवाया तथा उन्हें हर हाल में चोरों को पकड़ लाने का आदेश दिया। इन चोरों को जनता के समक्ष पाँच सौ कोड़े लगाने की ताकीद भी की। ऐसी कड़ी सजा मिलने के डर से अन्य लोग भी चोरी करना और अन्य बुरे काम करना छोड़ देंगे। इस प्रकार यह सबके लिए सबक बन जायेगा।
एक दिन सैनिकों ने कुछ चोरों को चोरी करते हुए पकड़ लिया। वे उन्हें महाराज के सम्मुख ले आये। महाराज ने उन्हें पाँच सौ कोड़ों की सजा सुना दी। अभी सैनिक उन पर कोड़े बरसाने शुरू करने ही वाले थे कि उन चोरों में से एक, जो थोड़ा चालाक-सा था, ने महाराज के सिंहासन के पीछे टँगी भगवान वेंकटेश्वर की तस्वीर देखी। तस्वीर में भगवान का हाथ आशीष देने की मुद्रा में उठा हुआ था। चालाक चोर को कड़ी सजा से बचने की तरकीब सूझी। वह बोला, "महाराज! आप भगवान की तस्वीर के सम्मुख बैठे हैं। भगवान के सामने आपके सैनिक भगवान के ही बच्चों पर इतना जुल्म कैसे कर सकते हैं?"
चोर की बात सुनकर क्षण भर को महाराज और पूरा दरबार सन्नाटे में आ गया। सैनिकों के भी कोड़ा चलाते हाथ रूके रह गये। तभी तेनालीराम खड़ा हुआ और बोला, "इसीलिए तो महाराज ने पांच सौ कोड़ों की सजा दी है। देखो भगवान वेंकटेश्वर भी अपनी पांचों उँगलियाँ दिखा कर उसकी पुष्टि कर रहे है।"
तेनालीराम की बात सुनकर महाराज के साथ पूरा दरबार हँसने लगा और चोरों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी।
शिक्षा (Moral of Story): सजा पाने वाले को माफी माँगने का अधिकार है। सजा देने वाले का फर्ज है कि वह न्यायपूर्वक सजा दे।
तेनालीराम के प्रसिद्ध रोचक किस्सों का संग्रह
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