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गुड़ में चींटी

एक दिन राजा कृष्णदेव राय के दरबार में एक व्यापारी आया। वह व्यापारी बहुमूल्य वस्त्र और आभूषण पहने हुए था और उसके हाथ में लोहे की भारी सन्दूकची थी। उसने वह सन्दूकची राजा के सामने रखी और बोला, "महाराज! मैं बिदार का निवासी हूँ। मेरा नाम गुणशेखर है। मैं एक व्यापारी हूँ और मैं तीर्थयात्री के लिए अनेगोंदी के पुरन्दरदास मेले में जा रहा हूं। मैंने अपनी पुरखों की सारी सम्पत्ति इस सन्दूकची में रख दी है। मैं चाहता हूँ कि यह सन्दूकची आप अपने पास रख लें, मैं लौट कर उसे आपसे वापस ले लूँगा।"

राजा कृष्णदेव राय व्यापारी की बात मान कर वह सन्दूकची रखने के लिए राजी हो गये। उन्होंने शाही खजांची को बुलाया और उससे सन्दूकची का वनज तोलने के लिए कहा। फिर उन्होंने उस सन्दूकची पर शाही मुहर लगा कर उसे सँभाल कर शाही खजाने में रखने का आदेश दिया। परन्तु शाही खजांची बोला कि शाही खजाना पूर्णतया भरा है, उसमें तनिक भी स्थान नहीं है, इसलिए इसे और कही रखवा दिया जाये। महाराज ने वह सन्दूकची सँभाल कर रखने की जिम्मेदारी तेनालीराम को दे दी। तेनालीराम सन्दूकची अपने घर ले गया और बेहद सहेज कर रख दिया।


एक माह के पश्चात वह व्यापारी तीर्थयात्रा से लौटा। वह सीधा महाराज के पास गया और उनसे अपनी सन्दूकची लौटाने की दरख्वास्त की। महाराज ने तेनालीराम को उसी समय घर जाकर सन्दूकची लाने को कहा। तेनालीराम ने अपने घर पहुंच कर जैसे ही सन्दूकची उठायी, वह हैरान रह गया। सन्दूकची का वनज तो आधे से भी कम हो गया था। तेनालीराम समझ गया कि गुणशेखर महाराज को उल्लू बनाने के चक्कर में है।

तेनालीराम ने कुछ देर तक सन्दूकची की भली प्रकार निरीक्षण किया, फिर उसे वहीं छोड़कर दरबार वापस लौट आया। वहाँ पर महाराज के सम्मुख हाथ जोड़कर तेनालीराम ने डरी हुई आवाज में निवेदन किया, "महाराज! इस व्यापारी के पुरखे मेरे घर में घुस आये हैं। वे मुझे वह सन्दूकची यहाँ लाने ही नहीं दे रहे हैं।"

यह सुनकर व्यापारी जोर से चिल्लाया, "महाराज, यह धूर्त है। यह मेरी पुरखों की जायदाद हथियाना चाहता है।"

राजा कृष्णदेव राय तेनालीराम से बोले, "तेनाली! हम अभी तुम्हारे घर जायेंगे। यदि तुम झूठे साबित हुए, तो तुम्हें कड़ी सजा मिलेगी।"

महाराज, कुछ दरबारी, गुणशेखर और तेनालीराम के साथ उसके घर की ओर चल दिये। घर पहुंच कर तेनालीराम उन्हें उस कमरे में ले गया जहाँ व्यापारी की सन्दूकची रखी थी। उस सन्दूकची से बहुत सारी चींटियाँ कतार में निकल रहीं थी। सन्दूकची पर शाही मुहर बाकायदा लगी हुई थी। यह देखकर महाराज ने तुरन्त शाही मुहर तोड़कर सन्दूकची को खोलने का आदेश दिया। सन्दूकची खुलते ही सभी दरबारी भौंचक्के रह गये। सन्दूकची में कोई खजाना नहीं था बल्कि उसमें तो गुड़ भरा हुआ था, जिसे आधे से ज्यादा चीटियाँ खा चुकी थीं। अब सब लोग उस व्यापारी की चाल समझ चुके थे। वह सन्दूकची का वजन करवा कर महाराज से वनज के अन्तर का सोना झटकना चाहता था। महाराज ने तुरन्त उस व्यापारी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया और तेनालीराम की चतुराई की प्रशंसा करते हुए उसे इनाम दिया।

शिक्षा (Tenali Raman's Moral): आँखें मूंद कर भरोसा करने वाला व्यक्ति मुँह की खाता है। सावधानी में ही समझदारी है।

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