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गन्ने जैसा राजा

tenali गन्ने जैसा राजा
राजा कृष्णदेव राय का तेनालीराम के प्रति लगाव दरबारियों से छुपा नहीं थी। ईर्ष्या के मारे कुछ दरबारियों की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गये थे। किस प्रकार राजा को राजविदूषक से दूर करें, यही वे हर पल सोचते रहते थे।

एक रोज उन सभी ईष्र्यालु दरबारियों ने मिलकर राजा कृष्णदेव राय से फरियाद की, महाराज, आप जब भी दौरे पर जाते हैं, तो तेनालीराम को अपने साथ ले जाते हैं। एक बार हमें भी तो मौका देकर देखिए।

राजा ने उनकी बात मान ली और अगली बार उन्हें मौका देने का वादा किया।


कुछ दिन बाद राजा को कुछ गाँवों में वेश बदल कर जाना था। इस बार तेनालीराम को साथ न ले जाकर राजा ने उन ईष्र्यालु दरबारियों में से दो को साथ ले लिया।

राजा और दोनों दरबारी ग्रामीण वेश में थे। काफी चलने के बाद वे एक गाँव में पहुँचे। वहाँ खेतों में बैठ कर कुछ किसान बातचीत कर रहे थे। उन तीनों ने वहाँ पहुँच कर उन किसानों से पीने का पानी माँगा।

जब किसान उन्हें पानी पिला रहे थे, तब मौका पाकर राजा ने उनसे पूछा, "क्यों भाइयों! आपके गाँव में सब ठीक प्रकार से है न? आपको राजा कृष्णदेव राय से कोई शिकायत तो नहीं है?"

इस प्रकार के प्रश्न सुनकर गाँव वाले थोड़ा चैकन्ने हो गये। उन्हें लगा कि ये तीनों राजा के अधिकारी हैं। चैकस होकर उन्होंने जवाब दिया, "नहीं भाई! हमारे गाँव में हर ओर शान्ति और समृद्धी हैं। सब लोग खुश हैं। वे दिन भर काम करते हैं और रात को चैन की नींद सोते हैं। किसी को कोई परेशानी नहीं है। महाराज तो अपनी प्रजा को अपने बच्चों की तरह मानते हैं, तो फिर परेशानी या शिकायत कैसी?"

"गाँव के लोग राजा के बारे में क्या सोचते हैं?" राजा कृष्णदेव राय ने फिर पूछा।

इस बार एक बूढ़ा किसान आगे आया और पास के खेत से एक गन्ना उखाड़ कर राजा के पास आया और बोला, "हुजूर! हमारे महाराज इस गन्ने की तरह हैं।"

राजा अपनी तुलना गन्ने से होता देखकर हक्के-बक्के रह गये। न तो उन्हें बूढ़े किसान की बात का मतलब समझ में आया, न वे पूरी तरह गाँव वाले की अपने बारे में राय जान पाये।

राजा ने अपने साथ आये दोनों दरबारियों से बूढ़े किसान की बात का अर्थ स्पष्ट करने को कहा, तो उन दोनों में से एक दरबारी बोला, "हुजूर! मेरे विचार में यह बूढ़ा किसान कहना चाहता है कि हमारे महाराज इस गन्ने की तरह कमजोर हैं। जैसे इसके एक ही झटके में गन्ने को जड़ से उखाड़ फेंका जा सकता है।" राजा कृष्णदेव राय कुछ क्षणों तक दरबारी की इस व्याख्या पर विचार करते रहे। फिर वे क्रोध से लाल हो गये और उस बूढ़े किसान से चिल्ला कर बोले, तुम मुझे पहचानते नहीं हो कि मैं कौन हूँ?

राजा के क्रोध भरे शब्दों को सुनकर बूढ़ा किसान थर-थर काँपने लगा। तभी पास की एक झोपड़ी से एक दाढ़ी वाला किसान चादर ओढ़े निकल कर आया और नम्रतापूर्वक बोला, "हुजूर! मैं तो आपको देखते ही पहचान गया था, परन्तु क्षमा चाहता हूँ कि मेरा यह साथी, महाराज को गन्ने की भाँति नरम और मीठा बता रहा है। साथ ही वह कह रहा है कि चोरों, बदमाशों और दुश्मनों के लिए वे कड़क हैं और उन्हें अच्छी प्रकार सजा देते हैं।" इस तरह....यह कहते हुए उस बूढ़े आदमी ने पास खड़े एक आवारा कुत्ते को गन्ना दे मारा। काँय.....काँय... करता हुआ कुत्ता वहाँ से भाग गया। तभी दाढ़ी मुँह से हटा दी। राजा के साथ आये दोनों दरबारी आश्चर्य से एक साथ बोल उठे, "तेनाली! तुम हमारा पीछे कर रहे थे?"

तेनालीराम ने मुस्करा कर कहा, मैं आपको महाराज के साथ अकेले कैसे छोड़ सकता था। अगर मैंने आपका पीछा न किया होता, तो आपने तो इन निर्दोष किसानों को फाँसी पर चढ़वा दिया होता। आपकी बातों से हमारे शान्तिप्रिय महाराज का क्रोध जाग उठा था। इन निर्दोष किसानों की बातों का ऐसा उल्टा अर्थ आपने लगाया भी कैसे?

अब राजा कृष्णदेव बोले, "सही कहते हो, तेनाली! मूर्खों के साथ विहार करना नुकसानदायक सिद्ध होता है। भविष्य में मैं ऐसा कभी नहीं करूँगा।"

जब गाँव वालों को राजा कृष्णदेव राय के वहाँ पधारने की खबर मिली, तो उन्होंने एक बड़ा आयोजन किया और उन सबका जमकर स्वागत किया।

राजा कृष्णदेव राय गाँव वालों के प्रेम को देख कर भाव-विभोर हो उठे। तेनाली की बातों से चिढ़े दरबारी पूरे आयोजन के दौरान एक कोने में बैठे रहे और तेनाली महाराज के साथ बैठ कर बढ़िया भोजन और नाच गाने का आनन्द लेता रहा।

शिक्षा (Tenali's Moral): कई बार सच्चाई उगलवाने के लिए वेश बदलने की आवश्यकता पड़ती है। आपके रूतबे से डरकर लोग आपके मुँह पर आपको पसन्द आने वाली बातें करते हैं, परन्तु सच्चाई तब सामने आती है, जब आप अपने वास्तविक रूप को एक आवरण से ढक लेते हैं।

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