एक बार न जाने कहाँ से विजयनगर साम्राज्य में ढेर सारे चूहे आ गये। वे हर ओर दौड़ते-भागते रहते, किसानोें की फसल को नुकसान पहुँचाते, घर का सामान चख जाते, और बीमारी फैलाते रहते।
राजा कृष्णदेव राय ने राजगुरू तथाचार्य से सलाह करके यह फैसला किया कि हर परिवार को एक बिल्ली दे दी जाये ताकि चूहों की समस्या का अन्त हो सके और बिल्ली को खिलाने-पिलाने के लिए बिल्ली के साथ हर परिवार को मासिक शुल्क देने की व्यवस्था भी की जाये।
सभी दरबारियों ने इस फैसले का अनुमोदन किया, परन्तु तेनालीराम इससे कतई सहमत नहीं था। इस बेवकूफी भरे फैसले से शाही खजाने के खाली होने का पूरा अन्देशा था, पर वह अकेला क्या कर सकता था। सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित हो गया और हर परिवार में एक-एक बिल्ली बाँट दी गयी। तेनालीराम भी अपने साथ एक बिल्ली और मासिक शुल्क लेकर घर चला गया।
कुछ दिन बीत गये, परन्तु चूहों की संख्या घटने की बजाय बढ़ गयी। शाही खजाना खाली करने के अलावा इस फैसले का कहीं कोई असर नहीं हुआ। बिल्लियाँ चूहे क्यों नहीं खा रही हैं, राजा कृष्णदेव राय ने यह पता लगाने का आदेश दिया।
अगले दिन, सभी लोग अपनी-अपनी बिल्ली लेकर दरबार में हाजिर हुए। सभी बिल्लियाँ मोटी-जाती थीं। सबसे अन्त में तेनालीराम की बिल्ली को लाया गया। वह अत्यन्त पतली-सी थी। उसे देखकर राजा ने गुस्से से पूछा, "तेनाली! इसकी देखभाल के लिए तुम्हें शाही खजाने से मासिक शुल्क दिया जाता है, फिर तुम्हारी बिल्ली इतनी कमजोर क्यों हैं?"
तेनालीराम बोला, "महाराज! न जाने यह बिल्ली दूध क्यों नहीं पीती है। पहले दिन से ही इसका यही हाल है।"
यह सुनकर महाराज और सभी दरबारी अत्यन्त आश्चर्यचकित हो गये। तेनाली के शब्दों पर विश्वास न करते हुए महाराज ने एक कटोरे में दूध मँगवाया और बिल्ली के सामने रखा। दूध देखते ही बिल्ली दूर भाग गयी।
राजा कृष्णदेव राय ने पुनः तेनालीराम को बुलाया और उसे सारी बात सच-सच बताने का आदेश दिया। पूरा दरबार जानना चाहता था कि तेनालीराम की बिल्ली एक बूँद दूध भी क्यों नहीं पीती।
तेनालीराम बोला, "महाराज! आप स्वयं सोचिए यदि हम बिल्ली को दिन में तीन बार भरपेट दूध पिलायेंगे, तो वह चूहों के पीछे क्यों भागेगी? इसीलिए पहले ही दिन मैंने बिल्ली को कटोरे में खौलता हुआ दूध डाल कर दिया, जिससे उसकी जीभ जल गयी। अ बवह हमारे घर पर भी कभी दूध नहीं पीती। जब उसका पेट नहीं भरता, तो वह चूहों के पीछे भागती है और उन्हें मार कर खा जाती है। शाही खजाने से मिला शुल्क का पैसा मेरे घर के खर्चे में काम आया।"
तेनालीराम की बात सुनकर राजा कृष्णदेव राय की आँखे खुल गयी। बिल्लियों के लिये मासिक शुल्क बन्द करवा दिया गया और सभी नागरिकों को चेतावनी दे दी गयी कि कोई भी बिल्ली को अनावश्यक रूप से न खिलाये-पिलाये।
इस प्रकार तेनालीराम की चतुराई से बिना ज्यादा खर्चे के चूहों का प्रकोप समाप्त हो गया।
शिक्षा (Tenali Raman's Moral): प्राकृतिक आपदाओं का सामना समझदारी से करना चाहिए। उनसे घबराना नहीं चाहिए। प्रकृति ईश्वर की सबसे बेहतरीन प्रयोगशाला है। हम इसमें अपने प्रयोग करके इसका सन्तुलन बिगाड़ देते हैं।
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