राजा कृष्णदेव राय के विजयनगर के सिंहासन पर बैठने से पहले उत्तरी भारत के अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद-बिन-तुगलक जैसे सुल्तानों ने कई बार दक्षिण पर हमला किया।
राजा कृष्णदेव राय के राजगद्दी सँभालने के बाद ये हमले काफी कम हो गये, क्योंकि पूरे दक्षिण भारत के साम्राज्य की छत्रनीति और साम्राज्य के सुरक्षा प्रबन्ध अत्यन्त कड़े थे।
जब राजा कृष्णदेव राय विजयनगर साम्राज्य पर शासन कर रहे थे, तब दिल्ली में बाबर का राज्य था। बाबर मुगल सल्तनत का प्रथम बादशाह था, जो मध्य एशिया से भारत आया था। मुगल सल्तनत की नींव भारत में बाबर ने ही डाली थी।
बाबर ने राजा कृष्णदेव राय के दरबार में उपस्थित अष्ट दिग्गजों की बहुत प्रशंसा सुनी थी, खास तौर पर राजविदूषक तेनालीराम की। तो बाबर ने राजा कृष्णदेव राय से भेंट करने की ख्वाहिश पेश की। इसकी बाबत एक पत्र लेकर बाबर ने अपना दूत हम्पी भेजा, जो अपने साथ तेनालीराम को दिल्ली ला सके। महाराज की अनुमति लेकर तेनालीराम उस दूत के साथ दिल्ली दरबार पहुंच गया। दिल्ली में तेनालीराम को एक आरामदेह शाही मेहमानखाने में ठहराया गया। अगले रोज तेनालीराम को बादशाह बाबर से मिलना तय हुआ।
तेनालीराम के मिलने से पूर्व, बादशाह बाबर ने अपने मन्त्रियों को ताकीद की, "हमने तेनालीराम की बहुत तरीफ सुनी है। वह राजा कृष्णदेव राय का राजविदूषक है। हमने उसे दिल्ली दरबार में आमन्त्रित किया है। कल सुबह वह यहाँ दरबार में आयेगा। ध्यान रहे, तुम सबको उसके किसी भी मजाक या किसी बात पर बिल्कुल हँसना नहीं है। हम देखना चाहते हैं कि वह कितना चतुर है। अगर हमारे रोकने के बावजूद वह हमें हँसा देता है, तो हम उसे मान जायेंगे और ढेरों ईनाम भी देंगे।" दरबारियों ने सिर हिलाकर बादशाह को जता दिया कि वे समझ गये हैं कि तेनालीराम की किसी भी बात पर हँसना नहीं है।
अगले दिन तेनालीराम समय पर दिल्ली दरबार पहुंच गया। वहाँ उसने अनेक चुटकुले सुनाये, मजाक किये, पर न कोई दरबारी और स्वयं बादशाह सलामत एक बार भी हँसे। किसी ने उसकी बातों पर कोई टिप्पणी भी न की। ऐसा लगातार पन्द्रह दिनों तक चलता रहा।
पन्द्रह दिन बीतने पर एक रोज तेनालीराम दिल्ली नहीं गया। उसने वेश बदला और बादशाह बाबर का पीछा करने लगा।
तेनालीराम ने देखा कि बादशाह बाबर नित्यप्रति प्रातः काल यमुना नदी के किनारे घूमने जाते हैं। उनके साथ राज्य का प्रधानमन्त्री भी होता है।
अगली सुबह तेनालीरम ने एक वृद्ध पुरुष का वेश बदला। अपने हाथ में एक आम का पौधा और फावड़ा लेकर तेनालीराम यमुना नदी के तट पर जा खड़ा हुआ और बादशाह के आने का इन्तजार करने लगा।
ज्यों ही तेनालीराम ने बादशाह को अपनी ओर आते देखा, उसने आम का पौधा लगाने के लिए जमीन खोदनी प्रारम्भ कर दी। जब बाबर ने देखा कि एक बूढ़ा आदमी जमीन खोद कर आम का पौधा लगा रहा है, तो वह उसके पास आया और पूछा, "बड़े मियाँ! क्या मैं पूछ सकता हूं कि आप यह क्या कर रहे हो?" मैं आम का पौधा लगा रहा हूं - तेनाली ने कहा।
"पर मियाँ, तुम तो इतने बूढ़े हो। इन पौधों को रोपने से तुम्हें क्या फायदा। जब तक इस पर फल आयेंगे, तुम तो अल्लाह को प्यारे हो चुके होगे। फिर इस बुढ़ापे में इतनी मेहनत क्यों कर रहे हो?" बादशाह ने समझाया।
"बादशाह सलामत! मैंने अब तक अपने पूर्वजों के रोपे पेड़ों के आम खाये हैं। मेरे रोपे पेड़ के आम मेरे से आगे आने वाली पीढ़ी खायेगी। यह पौधा मैं अपने लिए नहीं, अपने बच्चों के लिए लगा रहा हूं।" बूढ़ा आदमी बोला।
बादशाह को उस बूढ़े की समझदारी भरी बातें बहुत पसन्द आयीं। तुरन्त उन्होंने सोने के सिक्कों से भरी थैली निकालकर उसे ईनाम के तौर पर दे दी। ईनाम पाकर उस बूढ़े ने बादशाह का बहुत शुक्रिया किया और बोला, 'हुजूर! आप एक नेकदिल बादशाह हैं। लोग तो अपनी मेहनत का फल कई बरसों के बाद पाते हैं, पर आपने तो मुझे मेरी मेहनत का फल पहले ही दे दिया। दूसरों की मदद करने के विचार ने मेरा बहुत फायदा किया है।'
बादशाह बाबर नम्रता से बोले, "मियाँ! हमें तुम्हारे विचार बेहद पसन्द आये। तुम्हारी सोच ने हमें अत्यन्त प्रभावित किया है। ये लो, यह दूसरी थैली भी हमारी ओर से ईनाम समझ कर रखो।"
"बादशाह सलामत रहें। हुजूर बहुत-बहुत शुक्रिया।" बूढ़ा आदमी बोला, "यह पेड़ तो बड़ा होकर वर्ष में एक बार ही फल देगा, पर आपने तो मेरे हाथ एक साथ दो बार भर दिये। मैं सदा आपका आभारी रहूंगा।"
"मियाँ एक बार फिर हम तुम्हारी बातों से बहुत प्रभावित हुए हैं। तुम्हारी बातें मलहम की तरह ठण्डक देती हैं। ये लो, यह तीसरी सोने की थौली भी तुम्हारा इनाम है।" बादशाह ने बूढ़े को एक थैली और थमा दी।
यह देखकर बादशाह के साथ आये प्रधानमंत्री की आँखे खुली रह गयीं। वह बादशाह के कान में फुसफुसाते हुए बोला, हुजूर! चलिए यहाँ से। यह बूढ़ा आदमी अत्यन्त ही चतुर और होशियार मालूम पड़ता है। इस प्रकार बहला-फुसला कर यह आपका सारा खजाना लूट लेगा।
प्रधानमंत्री की बात सुनकर बादशाह ठठाकर हँसे और ज्यों ही पलट कर जाने लगे, वह बूढ़ा आदमी बोला, "हुजूर, एक बार पीछे मुड़ कर देखेंगे।"
यह सुनकर बादशाह और प्रधानमंत्री दोनों ने घूमकर उस बूढ़े आदमी की ओर देखा, तो वहाँ हाथ में नकली दाढ़ी पकड़े तेनालीराम खड़ा था। बादशाह बाबर ने तेनालीराम को देखा, तो जोर से हँस दिये, "तेनाली! आज हम समझ गये कि तुम्हें दुनिया का सबसे बेहतरीन विदूषक क्यों माना जाता है। तुम वास्तव में चतुर हो। तुम्हारा कोई मुकाबला नही कर सकता। तुमसे तो प्रधानमंत्री जी भी डर गये। हा......हा....हा।"
अगले दिन बादशाह ने तेनालीराम को दरबार में बुलाकर खास तौर से सम्मानित किया। यह खबर आग की तरह हर ओर फैल गयी। हम्पी में जब राजा कृष्णदेव राय को इस घटना का पता चला, तो उनका सीना गर्व से चैड़ा हो गया। तेनालीराम ने विजयनगर साम्राज्य का मान रख लिया था और उनकी नाक ऊँची कर दी थी। उन्हें गर्व था कि तेनालीराम उनके दरबार का अष्टदिग्गज है।
शिक्षा (Moral) : जैसा सब सोचते हैं, उससे हट के सोचना, जो कोई न करता हो, ऐसे काम करना, यही विजेता के गुण हैं।
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