संसार की रचना से पूर्व स्वर्ग में विलक्षण लोगों का एक बड़ा समुदाय रहता था जिन्हें हम ‘दिव्य‘ ही कहेंगे। वे आकाश में उड़ सकते थे, धरती पर चल सकते थे और भय तथा क्रोध तो उनमें लेशमात्र भी न था। परन्तु उनके पास वह सब था जो वे चाहते थे, वे आपस में लड़ने-झगड़ने लगे क्योंकि उनके पास करने के लिए इससे बेहतर कुछ था ही नहीं। उस समय सब प्राणियों की सृष्टि करने वाले परमात्मा ने निश्चय किया कि उनकी दुष्टता का अंत होना ही चाहिए। उन्होंने इस आशय से चारों ओर दृष्टि दौड़ाई कि कोई ऐसा व्यक्ति दिखे जो नेक हो तथा जिसकी वे रक्षा कर सकें।
हुआ यह कि उन दिनों धरती पर मनु नाम के एक मनीषी रहते थे। वे एक नदी के तट पर रहते थे। एक दिन प्रातः जब वे पूजा कर रहे थे तब उन्होंने सुना कि कोई उन्हें पुकार रहा है। उन्होंने चारों ओर देखा किंतु उन्हें कोई दिखाई नहीं दिया। उन्होंने ऊपर आकाश में देखा-जहां तक दृष्टि जाती थी। नीला आसमान फैला हुआ था। अतः वे पुनः पूजा में लग गए। फिर आवाज आई, "हे मनीषी! मेरी सहायता करो, मैं बड़े संकट में हूं।"
इस बार मनु ने नदी के जल में देखा तो उन्हें एक नन्ही-सी मछली दिखाई दी। वे उसके पास जाकर बोले, "नन्ही मछली क्या तुम ही मुझे पुकार रही थी? मैं तुम्हारी क्या सहायता कर सकता हूं?"
"हे महापुरूष!" मछली बोली, "मैं भयभीत हूं। बड़ी मछलियां सारी छोटी मछलियों को खा जाती हैं और यदि मैं यहां कुछ देर और रही तो वे मुझे भी खा जाएंगी। मैं आपसे विनती करती हूं, मुझे यहां से निकाल कर ले जाइए।"
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मनु को दया आ गई और पानी में अपने हाथों की अंजलि बना कर उन्होंने नन्ही मछली को उसमें भर लिया। फिर वे घर गए और एक छोटे से मिट्टी के पात्र में उसे डाल दिया। प्रतिदिन वे उसे भोजन लाकर देते और एक बच्चे के समान उसकी देखभाल करते। नन्ही मछली दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ने लगी और जल्दी ही इतनी बड़ी हो गई कि मनु ने उसे मिट्टी के पात्र के निकाल कर एक तालाब में डाल दिया। शीघ्र ही तालाब भी मछली के लिए छोटा पड़ने लगा। वह बढ़ती ही गई।
अब तक, मनु समझ ही गए होंगे कि यह कोई साधारण मछली नहीं थी पर उन दिनों तरह-तरह की अद्भुत बातें होती रहती थी। अतः वे चुप रहे और मछली का पालन-पोषण इस तरह करते रहे मानो ऐसा काम करते रहें हों।
जब मछली तालाब की दृष्टि से बहुत बड़ी हो गई तो मनु ने उसे ले जाकर गंगा नदी में डाल दिया। गंगा एक पवित्र नदी थी जिसमें किसी मछली को कोई हानि नहीं पहुंचती। इस पर भी मछली को संतोष न हुआ। ‘प्रभु‘, वह मनु से बोली, ‘आपने मुझ पर बहुत दया की है मुझे नदी में बहुत घुटन होती है। मेरा शरीर विशाल है कृपया आप मुझे समुद्र में ले जाइए।‘
यद्यपि मछली मनु से बहुत बड़ी थी पर जब मनु उसे ले जाने लगे तो वह उन्हें पंख-सी हलकी और चांदी की चंद्र किरण-सी प्रतीत हुई। मनु को उसे समुद्र तक ले जाने में बिल्कुल कष्ट नहीं हुआ।
जब वे समुद्र तक पहुंच गए तब मुस्करा कर मछली बोली, ‘मनु, तुमने बड़े यत्न व प्रेम से मेरी रक्षा की है। जो मैं तुम्हें बता रही हूं उसे सुनो। संसार का अंत आ गया है और सभी प्राणी नष्ट हो जाएंगे। जैसा मैं तुमसे कहती हूं वैसा करो और तुम बच जाओगे। एक नाव बनाओ और उसके चारों ओर एक लंबी रस्सी दृढ़ता से बांध लो। हर प्रकार का एक-एक बीज लेकर सारे बीज एकत्र करो और उन्हें अपने साथ नाव में रख लो। जैसे ही संसार के छोर पर जल-प्रवाह टकराए, तुम नाव पर चढ़कर मेरी प्रतीक्षा करना।‘
जैसा कहा गया था वैसा करके मनु प्रतीक्षा करने लगे। जब उन्होंने दूर से पानी की गर्जना सुनी तो वे नाव पर सवार होकर चल पड़े।
विशाल लहरों ने पुरे संसार को ढक लिया। जिधर भी देखते मनु को जल के अतिरिक्त कुछ न दिखाई देता था। सागर हवा में ऊंचा उठ रहा था और ऐसा गर्जन-तर्जन मचा हुआ था कि पर्वत डोल उठे और घाटियां गूंज उठीं। तूफान में नन्हीं-सी नाव डगमगाने लगी। मनु मछली की प्रतीक्षा करने लगे।
सहसा, समुद्र के बीचो-बीच उन्होंने दो सींग निकलते देखे। यह वही मछली थी। मनु ने तुरंत रस्सी को सींगों पर उाल कर नाव बांध दी। मछली क्रुद्ध लहरों के विरूद्ध पूरे बल से तैरती हुई विशाल सागर पर नाव को खींच ले चली।
अब भी अगाध जल राशि के अतिरिक्त आस-पास कुछ न था। मछली नाव को खींचती गई, खींचती गई। अंततः एक दिन क्षितिज पर एक पर्वत-शिखर दिखाई पड़ा। यह भारत के पर्वतों में से सर्वोच्च शिखर था जो इतना ऊंचा था कि नीले आसमान को लगभग छू रहा था।
जब वे शिखर के समीप से गुजरे तो मछली ठहर गई। ‘अपनी नाव इस पेड़ से बांध दो मनु,‘ वह बोली।
मनु ने पर्वत के ढाल पर खड़े उस ऊंचे पेड़ से अपनी नाव बाध दी। उनके ऐसा करते ही हवा में मधुर संगीत भर गया और आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। मनु ने झुक कर प्रणाम किया क्योंकि वे जान गए थे कि वह मछली स्व्यं परम पिता परमात्मा के अतिरिक्त और कोई नहीं थी और फिर एक आकाशवाणी हुई, ‘मनु, तुम समग्र मानवजाति के पिता होगे। तुमसे ही मनुष्य का फिर से जन्म होगा और सब मनुष्य तुम्हारा ही नाम धारण करेंगे।‘
मनु के नाम से ही आज हम सब ‘मनुष्य‘ कहलाते हैं, अंग्रेजी में ‘मैन‘ शब्द भी मनु के नाम से ही बना है।
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