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दिमाग को ठंडा रखिये!


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एक बार एक आदमी किसी राजा के दरबार पहुंचा और उसने कहा, महाराज, मेरे पास दो रत्न हैं, जिनमें से एक बेशकीमती हीरा और दूसरा साधारण कांच का टूकड़ा। यदि आपके दरबार में किसी ने यह बता दिया कि कौन सा कांच है और कौन सा सच्चा हीरा, तो मैं यह हीरा आपके खजाने में दे दूंगा, अन्यथा आपको पांच हजार स्वर्ण मुद्राएं मुझे देनी होंगी।

राजा को यह चुनौती पसंद आयी और दरबारियों को हीरे और कांच में फर्क करने का आदेश दिया। बड़े-से-बड़ा सूझ-बूझ वाला दरबारी आया, लेकिन कोई भी हीरे की परख नहीं कर पाया। अंत में राजा ने हार मान ली और उसे पांच हजार स्वर्ण मुद्राएं दी। अब वह आदमी दूसरे राज्य पहुंचा और वहां भी उसने यही शर्त रखी, लेकिन वहां भी कोई फर्क नहीं कर सका और शर्त के मुताबिक राजा को पांच हजार सोने की मुद्राएं देनी पड़ी।

इसी प्रकार वह आदमी कई राज्यों का भ्रमण करता और अपनी शर्त रखता। हर बार वह स्वर्ण मुद्राएं जीत कर आगे बढ़ जाता। उस समय ठंड का समय था और एक राजा ने अपना दरबार खुले मैदान में लगाया था, ताकि दरबारी धूप का आनंद लेते हुए कामकाज निपटा सकें।

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वह आदमी दरबार में पहुंचा और अपनी शर्त दोहरायी। यहां भी राजा ने उसकी चुनौती स्वीकार कर ली। राजा ने विद्वानों को भी असली और नकली हीरे में फर्क करने का आदेश दिया, लेकिन यहां भी कोई फर्क नहीं कर सका। राजा उदास हो गया और उसने खजांची को खजाने से पांच हजार मुद्रा लाने का आदेश दिया। तभी एक दरबारी, जो जन्म से अंधा था, उसने कहा, महाराज, खजांची को भेजने से पहले एक बार मुझे इन हीरों को परखने का अवसर दिया जाये। राजा तैयार हो गया। वह अंधा दरबारी बारी-बारी से दोनों को छूकर एक टुकड़े की तरफ इशारा करके बोला, महाराज, यह है सच्चा हीरा, और दूसरा वाला साधारण कांच का टूकड़ा है, जिसका कोई मोल नहीं।

हीरे वाले आदमी की आंखें चमकी और वह बोला, बिल्कुल सही कहा आपने। लेकिन आपने इसे पहचाना कैसे? उस अंधे आदमी ने जो जवाब दिया, उसे सुन कर वहां राजा सहित सभी की आंखें खुली की खुली रह गयी। वह बोला, जो भी सच्चा हीरा होता है, वह धूप में भी ठंडा रहता है, जबकि साधारण कांच थोड़ी सी गर्मी मिलते ही गरम हो उठता है, बिल्कुल हम इंसानों की तरह।

दोस्तों, यदि हम बड़ी सफलता मिलने पर दिमाग से शांत रहते हैं, तो हम उच्च कोटि के इंसान हैं, और यदि, हमारा दिमाग थोड़ी सी सफलता मिलते ही सातवें आसमान पर उड़ने लगे, तो यह समझने की जरूरत है कि कहीं हम उस सस्ते और साधारण कांच की तरह तो नहीं। यदि हम इस फर्क को समझ पाये, तो हमारी छवि एक बेहद लोकप्रिय मित्र की होगी।

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