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पराक्रमी भीम


पराक्रमी भीम

एक बार महाभारत का महान वीर भीम, उसकी मां कुंती आक्र उसके भाई वन में स्थित गांव में एक ब्राह्मण के घर ठहरे। एक दिन कुंती ने बहुत रोने-कलपने की आवाज सुनी। इसका कारण जानने के लिए वह दौड़ कर गई तो उसने ब्राह्मण, उसकी पत्नी व बच्चों को ऐसे रोते-सिसकते पाया मानो उनके कलेजे फट जाएंगे।

'आप क्यों रो रहे हैं?' कुंती ने पूछा।


'प्रिय बहन,' ब्राह्मण ने कहा, "इस घर के समीप एक अत्यंत शक्तिशाली और दुष्ट राक्षस रहता है। उसके जीते जी कोई हमारे राज्य पर आक्रमण करने का साहस नहीं कर सकता। इस संरक्षण के बदले वह एक भयंकर मूल्य मांगता है। प्रतिदिन उसके भोजन के लिए हमें एक गाड़ी भर भात, दो भैंसे और एक आदमी भेजना पड़ता है। अब हमारी बारी है। यदि मैं चला जाऊं तो मेरे परिवार की देखभाल कौन करेगा? हमारे केवल एक पुत्र और पुत्री है। इसलिए मैं उनमें से किसी एक को भी नहीं भेज सकता।"

कुंती को उसकी दशा पर गहरा दुख हुआ। 'डरो मत,' वह बोली 'मैं अपने पुत्रों में से एक को भेज दूंगी।'

ब्राह्मण को यह स्वीकार नहीं था। 'मैं आपके बेटे को मृत्यु के मुख में नहीं जाने दे सकता,‘ उसने कहा। ‘वह मेरी अपनी मृत्यु से भी अधिक दुखदायी होगा।'

कुंती ने उसे बताया कि उसका बेटा बहुत शक्तिशाली और महान योद्धा है। कुंती ने भीम को चुना क्योंकि वह उसके पुत्रों में सर्वाधिक बलशाली था।

तड़के ही भोजन साथ लेकर भीम निश्चित स्थान के लिए रवाना हो गया।

जगह पर पहुंचकर भीम बैठ गया और कानों को बहरा कर देने वाली तथा धरती हिला देने वाली एक भीषण गर्जना करके उसने राक्षस को आकर अपना भोजन ग्रहण करने के लिए पुकारा।

जब वह दैत्य बाहर आया तो बहुत जोर का धमाका हुआ और वातावरण में कालिमा छा गई।

दैत्य की बड़ी-बड़ी लाल-लाल आंखें थीं, बाल व दाढ़ी भी लाल थे। उसके चौड़े और नुकीले कान थे और मुंह इतना बड़ा था कि एक कान से दूसरे कान तक फैला था।

जो दृश्य उसे दिखाई दिया उससे वह अत्यंत क्रुद्ध हो गया।

भीम शांति से गाड़ी के समीप बैठा उसका भोजन खा रहा था। भीषण गर्जना करके वह भीम की ओर दौड़ा और उसकी पीठ पर जोर से प्रहार किया।

भीम को तो मानो कुछ हुआ ही नहीं, वह तो बस मुस्कराया और खाना खाता रहा।

राक्षस के क्रोध की सीमा न रही। उसने एक विशाल वृक्ष उखाड़ा और भीम की हत्या करने के इरादे से उसकी ओर दौड़ा।


भीम ने वृक्ष को इतने वेग से वापस फेंका कि उसकी चोट से राक्षस मूर्छित हो गया। फिर भयंकर युद्ध शुरू हो गया। भीम और राक्षस ने वृक्ष उखाड़े और उनसे लड़ते रहे। उन्होंने बड़ी-बड़ी चट्टानें एक दूसरे पर फेंकी।

अंत में भीम ने अपनी बलवान भुजाओं में राक्षस को उठा कर इतनी जोर से पटका कि उसकी मृत्यु हो गई।

तीव्र कोलाहल को सुन अन्य सभी दैत्य बाहर निकल आए और भयभीत हो खड़े रह गए।

उसके बाद राक्षसों ने किसी मनुष्य को नहीं सताया और लोग शांतिपूर्वक रहने लगे।

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