तुम जानते होगे कि ख़रगोश बड़े ही डरपोक होते हैं। एक खरगोश को अपनी डरने की आदत बहुत बुरी लगती थी। वह सोचा करता था- 'हे भगवान, आपने मुझे इतना डरपोक क्यों बनाया। ज़रा-सी आवाज़ हुई कि मैं डर जाता हूं। कोई प्यार करने के लिए भी हाथ बढ़ाए तो भी मैं डरकर छिप जाता हूं। क्यों हूं मैं इतना डरपोक? आखिर क्यों?'
उसने सोचा कि अ बवह डरेगा नहीं। उसने अपने-आपसे कहा, 'मैं बहादुर हूं। मैं डरपोक नहीं हूं।' तभी एक हल्की-सी आवाज़ हुई और खरगोश डरकर भागने लगा। आदत इतनी जल्दी ही न बदलती है।
दौड़ते-दौड़ते वह एक तालाब के किनारे पहुंचा। वहाँ कुछ मेढ़क खेल रहे थे। जैसे ही उन्होंने किसी के आने की आवाज़ सुनी, वे डरकर तुरंत पानी में कूद गए। खरगोश को तसल्ली हुई। उसने सोचा, 'चलो कोई तो है जो मुझसे भी डरता है। इसका मतलब यह हुआ कि दुनिया में सब किसी-न-किसी से डरते हैं और जो सबसे ज्यादा ताकतवर है, वह भी ईश्वर से डरता है। इसलिए अपने से ज्यादा ताकतवर जीव से डरना और सावधान रहना बुरी बात नहीं है।'
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