Note: यह आलेख विशेष रूप से class 10 के लिए है।
परिभाषा: भिन्न-भिन्न आचार्यों ने अपने-अपने ढंग से 'रस' की परिभाषा दी है। 'नाट्य शास्त्र' के प्रणेता भरत मुनि ने रस की परिभाषा बतलानेवाला सूत्र इस प्रकार बताया हैः-
विभावानुभाव व्यभिचारी संयोगाद्रस निष्पतिः।
उपर्युक्त परिभाषा में कई पारिभाषिक शब्द आये हैं। उन्हें समझ लेना आवश्यक है। पहले स्थायी भाव का ज्ञान आवश्यक है जो विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी भाव के संयोग से रस दशा को प्राप्त होता है।
रस के प्रकार उदाहरण सहित (Ras Types with Examples)
रस के चार प्रकार हैं-
- स्थायी भाव
- विभाव
- अनुभाव
- संचारी भाव
स्थायी भाव: मन के विकार को भाव कहते हैं। 'विकारो मानसोभावः' भरत मुनि ने भावों की संख्या उनचास बतायी है, जिसमें सैंतीस संचारी या व्यभिचारी, आठ सात्विक और शेष आठ स्थायी भाव हैं। भरत के अनुसार वे हैं:
- रति
- हास
- शोक
- क्रोध
- उत्साह
- भय
- जुगुप्सा
- विस्मय
बाद में शम या निर्वेद या शान्त को भी नवम स्थायी भाव माना। बाद के आचार्यों ने 10 भक्ति और 11 वात्सल्य को भी स्थायी भाव मान लिया। ये सभी भाव संस्कार रूप से मानव में वर्तमान रहते हैं, इसलिए इन्हें स्थायी भाव कहते हैं।
विभाव:
रस को उद्बुद्ध करने वाले हेतु या कारण को विभाव कहते हैं। कारण के भेद से विभाव के दो भेद हैंः  1. आलम्बन विभाव और  2. उद्धीपन विभाव। जिसे देखकर किसी भाव का जागरण हो उसे आलम्बन विभाव कहेंगे। जिसके हृदय में यह भाव जागे उसे 'आश्रय' कहते हैं।
उदाहरण - पुष्प वाटिका में राम और जानकी घूम रहे हैं। सीता के साथ उनकी सखियाँ हैं और राम के साथ लक्षमण। यहाँ जानकी के हृदय में जागरिता 'रतिभाव' के आलम्बन विभाव हैं राम। जानकी के वे सखियाँ जो उन्हें राम के दर्शन में सहायता पहुँचा रही हैं- उद्धीपन विभाव हैं।
अनुभाव: जो भावों का अनुगमन करते हों उन्हें अनुभाव कहते हैं। अनुभावयन्ति इति अनुभावाः। अनुभाव के पाँच भेद हैं-
- कायिक
- वाचिक
- मानसिक
- आहार्य
- सात्तिवक
READ MORE- निबंध के विषय
आंगिक चेष्टाएँ कायिक अनुभाव कहलाती हैं। भाव दशा के कारण वचन में आये परिवर्तन को वाचिक अनुभाव कहते हैं। आन्तरिक प्रमोद आदि भाव को मानसिक अनुभाव कहते हैं। बनावटी वेष को आहार्य कहते हैं। शरीर के स्वाभाविक अंग विकार को सात्तिवक अनुभाव कहते हैं। सात्तिवक अनुभावों की संख्या आठ हैं:
- स्तंभ
- स्वेद
- रोमांच
- स्वर भंग
- कंप
- वैवर्ण्य
- अश्रु और
- प्रलय (निश्चेष्ट)
संचारी भाव: अस्थिर मनोविकारों को संचारी भाव कहते हैं। ये सभी रसों में संचरण करते हैं, इसलिए इन्हें संचारी या व्यभिचारी कहा जाता है। इनकी संख्या 33 हैं।
- निर्वेद (वैराग्य)
- ग्लानि
- शंका
- असूया (ईर्ष्या)
- मद
- श्रम
- आलस्य
- दैन्य
- चिन्ता
- मोह
- स्मृति
- धृति (धैर्य)
- व्रीडा (लज्जा)
- चपलता
- हर्ष
- आवेग
- जड़ता
- गर्व
- विषाद
- औत्सुक्य
- निद्रा
- अपस्मार (मूर्छा)
- स्वप्न
- विबोध (जागृति)
- अमर्ष
- अवहित्थ (भाव छिपाना)
- उग्रता
- मति
- व्याधि
- उन्माद
- त्रास
- वितर्क
- मरण
रसों की संख्या: रसों की कुल संख्या अब तक 11 पहुँची हैं:
- श्रृंगार
- हास्य
- करूण
- रौद्र
- वीर
- भयानक
- बीभत्स
- अद्भुत
- शान्त
- वात्सल्य और
- भक्ति
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हास्य रस का उदाहरण:
स्थायी भाव - हास्य, आलम्बन-रामचन्द्र, उद्दीपन-गौतम नारी के उद्धार का स्मरण, अनुभाव-मुक्ति की कथा सुन कर सुखी होना, चन्द्रमुखी हो जाने के बारे में सोचना और संचारी भाव-हर्ष, रोमांच आदि हैं।