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स्वयं मत बोलो, कर्म को बालने दो


ghanshyam das birla prerak prasang
एक दिन घनश्याम दास बिड़ला अपने कार्यालय जा रहे थे। कार्यालय जाने में देर हो गयी थी। इसलिए ड्राइवर गाड़ी तेज चला रहा था। गाड़ी जैसे एक तालाब के रासते से गुजर रही थी, उसके किनारे सैकड़ों लोगों की भीड़ देखकर बिड़ला साहब ने ड्राइवर से पूछा - 'क्या बात है? इतनी भीड़ क्यों है?' ड्राइवर ने कहा- 'पता नहीं सर, लगता है कोई डूब गया है।'

घनश्याम दास ने तुरन्त गाड़ी रोकने को कहा और जल्दी से अपना दरवाजा खोल दौड़ पड़े। तालाब के निकट जाकर देखा तो हैरान रह गये, एक नौ-दस वर्ष का बालक पानी में डूब रहा है, लोग खड़े होकर बचाओ, बचाओ चिल्ला रहे हैं, लेकिन कोई तालाब में कूद कर बचाने नहीं जाता।


घनश्यामद दास जूता पहने ही पानी में कूद गये। तैरकर बालक को पकड़ा और खींच कर बाहर लाये। उसी भींगे हालत में बालक को लेकर अस्पताल पहुँच गए। बच्चे ने काफी पानी पी लिया था। जब डॉक्टरों ने आश्वासन दिया कि लड़का बच जायेगा, तभी वे अपने कार्यालय पहुंचे। उन्हें इस हालत में देखकर सभी कर्मचारी आवाक् रह गये। जब उन्होंने सुना कि बिड़ला जी ने किस तरह उस लड़के की जान बचायी, उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा- 'सर, आप तो महान है।' बिड़ला जी ने कहा- 'यह तो हमारा कर्तव्य था।'

प्रसंग-2


विनोबा भावे नित्य सारी चिट्ठियाँ जो आश्रम में आतीं, पढ़ा करते और समय से उत्तर देना नहीं भूलते थे। एकदिन एक आश्रम के वरिष्ठ सदस्य वहाँ बैठे हुए थे। चिट्ठियाँ छाँटते-छाँटते विनोबा ने एक चिट्ठी पढ़ी और कूड़ेदान में डाल दी। उस व्यक्ति ने पूछा - 'आप तो हर पत्र को मन से पढ़ते हैं, इसे आपने थोड़ा पढ़कर कूड़ेदान में क्यों डाल दिया? यह किसका पत्र था जिसे आपने फाड़ डाला।' विनोबा जी ने कहा- 'महात्मा गांधी का पत्र था,' तो आपने बापू का पत्र क्यों फाड़ दिया? विनोबा ने कहा - 'ऐसे ही' उस सज्जन से रहा नहीं गया। उन्होंने उसे कूड़ेदानी से निकालकर जोड़ कर देखा कि क्या लिखा गया है। उसमें महात्मा गांधी जी ने विनोबा की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। उस सज्जन ने कहा- 'यह तो संग्रहणीय था- फाड़ना नहीं चाहिए था, यह तो धरोहर है।'

विनोबा ने सीधे शब्दों में कहा- 'वह पत्र ही क्या जिसमें खाली बड़ाई लिखी हो। यह तो चित्त को गंदा कर देगा, अहंकार उत्पन्न करने वाला है' और फिर मुस्कुराने लगे।
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