Msin.in
Powered by Blogger

बलिदान महान आदर्श है


bismil prerak prasang
फाँसी के मात्र दो दिन पूर्व की बात है। राम प्रसाद ‘बिस्मिल‘ की माँ अपने लाड़ले के अन्तिम दर्शन के लिए जेल आयी हैं। सहसा माँ को देखकर 'बिस्मिल' की आँखों में आँसू आ गए। मानस में अतीत की अनेक सुखद स्मृतियाँ साकार होने लगीं। फिर पुत्र की आँखों में झर-झर आँसू टपक पड़े। माँ ने देखा और बोल उठी - 'मैं तो समझती थी, तुमने अपने पर विजय पायी है, किन्तु यहाँ तो तुम्हारी कुछ और ही दशा है। जीवन-पर्यन्त देश के लिए आँसू बहाकर अब अन्तिम समय तुम मेरे लिए रोने बैठे हो? इस कायरता से अब क्या होगा? तुम्हें वीर की भांति हँसते हुए प्राण देते देखकर मैं अपने आप को धन्य समझूँगी। मुझे गर्व है कि इस गए-बीते जमाने में मेरा पुत्र देश के लिए स्वयं को बलिवेदी पर न्यौछावर कर रहा है। मेरा काम तुम्हें पालकर बड़ा करना था, उसके बाद तुम देश की चीज थे और उसी के काम आ गए। मुझे तनिक भी दुःख नहीं।' अपने आँसुओं पर अंकुश लगाते हुए 'बिस्मिल' ने कहा- 'माँ! तुम तो मेरे दिल को भली-भाँति जानती हो। मुझे अपनी मृत्यु पर तनिक भी दुःख नहीं है। आपको मैं विश्वास दिलाता हूँ कि मैं अपनी मृत्यु पर बहुत सन्तुष्ट हूं और फाँसी के तख्ते की ओर जाते हुए उन्होंने यह शब्द कहे-

''मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे।
बकी न मैं रहुँ न मेरी आरजू रहे।
जब तक कि तन में जान, रंगों में लहू रहे।
तेरा ही जिक्र या तेरी जुस्तजू रहे।।"


फिर-

'वंदे मातरम्, भारत माता की जय'

के बाद -

'विश्वानिदेव सवितर्दुरितानि परसुव यदभद्रं तं न असुव'

का उच्चारण करते-करते फाँसी पर झूल गए।


भगतसिंह प्रेरक-प्रसंग


bhagat singh prerak prasang hindi
भगतसिंह को फाँसी की सजा हुई है। फाँसी से एकदिन पहले प्राणनाथ मेहता ने उन्हें एक पुस्तक दी 'लेनिन की जीवनी'। पुस्तक पढ़ने में वे इस तरह तल्लीन हो गए कि सुधि नहीं रही कि उन्हें आज फाँसी लगनी है। जल्लाद उन्हें लेने जेल की कोठरी में आ गए। अभी एक पृष्ठ पढ़ना शेष रह गया था। उनकी दृष्टि पुस्तक के उसी आखिरी पृष्ठ पर थी कि जल्लाद ने चलने को कहा। भगतसिंह हाथ उठाकर बाले, 'ठहरो, एक बड़े क्रान्किारी की दूसरी बड़े क्रान्किारी से मुलकात हो रही है।' जल्लाद वहीं ठिठक गए। भगतसिंह ने पुस्तक समाप्त की, उसे सोल्लास छत की ओर उछाला फिर दोनों हाथों से थामकर फर्श पर रखा और कहा, चलो' और वे मसत भरे कदमों से फाँसी के तख्त की ओर बढ़ने लगे। उनके दृढ़ कदमों को जल्लाद निहारते रहे।

23 मार्च, 1931 की संध्या। सात बज रहे हैं। फाँसी के तख्त की ओर तीन नवयुवक बढ़ रहे हैं। फाँसी की काली वर्दी पहना दी गयी है। बीच में भगतसिंह चल रहे हैं, सुखदेव उनकी बायीं ओर और राजगुरू दायीं ओर चल रहे हैं। भगतसिंह ने अपनी दाई भुजा राजगुरू की बाई भुजा में तथा बाई भुजा सुखदेव की दाई भुजा में डाल दी। तीनों ने नारे लगाए-इन्कलाब जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद। फिर गीत गाए-

'दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उलफत
मेरी मिट्टी से भी खुश्बू-ए-वतन आएगी।'


और देखते-देखते फाँसी पर झूल गए।
ऐसे और भी प्रेरणादायी प्रसंग यहाँ पढ़े - प्रेरक-प्रसंगों का संग्रह

Read More: महान क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, रानी लक्ष्मीबाई और जीजाबाई की जीवनी पढ़े।


Popular

  • पंचतंत्र की 27 प्रसिद्ध कहानियाँ
  • तेनालीराम की चतुराई की 27 मजेदार कहानियां
  • संपूर्ण गीता सार - आसान शब्दों में जरूर पढ़े
  • स्वामी विवेकानंद की 5 प्रेरक कहानियाँ
  • श्रेष्ठ 27 बाल कहानियाँ
  • Steve Jobs की सफलता की कहानी
  • महापुरूषों के प्रेरक प्रसंग
  • बिल गेट्स की वो 5 आदतें जिनसे वे विश्व के सबसे अमीर व्यक्ति बनें
  • शिव खेड़ा की 5 प्रेरणादायी कहानियाँ
  • विद्यार्थियों के लिए 3 बेहतरीन प्रेरक कहानियाँ
  • दुनिया के सबसे प्रेरक 'असफलताओं' वाले लोग!

Advertisement


eBooks (PDF)

  • संपूर्ण चाणक्य नीति (PDF)
  • श्रीमद्भगवद्गीता (गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित) (PDF)
  • शिव ताण्डव स्तोत्र अर्थ सहित (PDF)
  • दुर्लभ शाबर मंत्र संग्रह (PDF)
  • श्री हनुमान बाहुक (PDF)
  • श्री दुर्गा सप्तशती (PDF)
  • श्री हनुमान चालीसा (अर्थ सहित) (PDF)
  • संपूर्ण शिव चालीसा (PDF)
  • एक योगी की आत्मकथा (PDF)
  • स्वामी विवेकानंद की प्रेरक पुस्तकें (PDF)
  • संपूर्ण ऋग्वेद (PDF)
  • संपूर्ण गरुड़ पुराण (PDF)
  • Amazon Exclusive Deals
  • Flipkart Delas (Now Live)

Important Links

  • हमारे बारे में
  • संपर्क करें

©   Privacy   Disclaimer   Sitemap