अकबर के राज्य में एक रात तीन व्यक्ति चोरी करते पकड़े गये। दरबार में उनकी पेशी हुई। पहला अपराधी बादशाह अकबर के सामने लाया गया। अकबर ने उसकी ओर देखा। उसने पूछा - ‘क्यों जी यही सब करते हो ? लज्जा नहीं आती।‘ उन्होंने उसे छोड़ देने का आदेश दिया।
अब कोतवाल दूसरे अपराधी को पकड़कर लाया।
अकबर ने आदेश दिया- इसे दस कोड़े पीठ पर लगाओ। उसे दस कोड़े लगे। वह चिल्लाने लगा, फिर आदेश हुआ-अब इसे छोड़ दो।
फिर तीसरा अपराधी लाया गया। बादशाह ने हुक्म दिया - इसका सिर मुण्डन कराओ, चूने से इसके सिर को पोतो और गधे पर चढ़ाकर पूरे नगर में घुमाओ।
वैसा ही किया गया। बीरबल तो सब कुछ जानते ही थे, फिर भी पूछा- 'हुजूर! तीनों अपराधी एक ही चोरी में पकड़े गए थे, फिर भी इन्हें अलग-अलग सजा क्यों हुई?' बादशाह ने कहा- 'खुद आप इसकी जाँच कर लें कि तीनों व्यक्ति अभी क्या कर रहे हैं?' खुफिया सिपाही नगर में दौड़े और उन्होंने आकर खबर दी। उन्होंने कहा - 'हुजूर! यह तो गजब हो गया, जिस पहले आदमी को बिना सजा के छोड़ा गया था उसने आत्महत्या कर ली है। दूसरा व्यक्ति घर में बंद होकर रो रहा है और
तीसरा नुक्कड़ पर पान खाकर ठहाके लगा रहा था, कह रहा था फिर चोरी करनी है, इस राज्य में कोई सजा नहीं मिलती।'
सभी दरबारी यह सुनकर बादशाह के न्याय की प्रशंसा करने लगे।
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