भारत के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद का भारत के महापुरुषों में अग्रणी स्थान है। भारत की आज़ादी की लड़ाई में और इस नए भारत के निर्माण में उन्होंने जो खास भूमिका निभाई उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। बिहार की धरती से राष्ट्र सेवा में आने वाले वे ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने अपनी विशिष्ट मेधा, तेज बुद्धी, अनोखी प्रतिभा तथा सरलता आदि गुणों से न केवल बिहार को बल्कि सारे देश को गौरवान्वित किया। यहां डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद के जीवन से जुड़े कुछ प्रसंग दिये जा रहे हैं। इन्हें जरूर पढ़े।
राजेन्द्र प्रसाद का पहला प्रसंग: मुझे माफ़ कर दो

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जब राष्ट्रपति भवन में थे उनकी सेवा के लिए एक नौकर नियुक्त हुआ जिसका नाम था- तुलसी। तुलसी ईमानदार था, पर था लापरवाह। घर की सफाई करते-करते कभी-कभी वह कुछ समान तोड़ देता। राजेन्द्र बाबू उसे बहुत बार कह चुके थे कि वह सावधानी से काम किया करे, लेकिन वह ध्यान नहीं देता।
एक विदेशी अतिथि ने हाथी दाँत की एक कलम राष्ट्रपति जी को भेंट की थी। वे इसे सहेज कर यत्न से रखते थे और प्रेम से लिखते थे। एकदिन तुलसी ने घर को सजाने के क्रम में उस कलम को भी तोड़ दिया। राजेन्द्र बाबू को यह देख काफी दुःख हुआ कि बार-बार चेताने पर भी तुलसी ने गलती कर ही दी। उन्होंने सचिव को बुलाकर कहा - 'आप तुलसी को मेरे काम के लिए अब नियुक्त नहीं करें, उसे कहीं अन्यत्र नियुक्त कर दें, जहां सामान टूटने की सम्भावना न हो।'
तुलसी वहाँ से निकाल दिया गया। वह उद्यान में नौकरी में लग गया।
दूसरे दिन अपने कमरे में सेवाकार्य में तुलसी को न पाकर राजेन्द्र बाबू बैचेन होने लगे। उन्होंने सोचा तुलसी ने जान-बूझकर तो कलम नहीं तोड़ी, काम करते समय उसका ध्यान कहीं अन्यत्र होगा गलती से यह टूट गयी। मैंने उसे अपने काम से निकालकर उसका अपमान किया है, उसकी भावना को ठेस पहुँचायी।
अन्ततः सचिव को बुलाकर उन्होंने कहा - 'तुरन्त तुलसी को मेरे पास भेजिए' तुलसी अपराधी की भाँति डरा-डरा उनके समक्ष सिर झुकाये उपस्थित हुआ। अज्ञात सम्भावना के भय से वह काँप रहा था कि राजेन्द्र बाबू ने कहा - 'तुलसी तुम मुझे क्षमा कर दो, मुझसे भूल हुई है, तुम्हें हटाकर।'
तुलसी आश्चर्यचकित रह गया। गलती उसने की और बाबू उससे क्षमा माँग रहे हैं- उसकी आखों से अश्रुधारा बह चली। वह सोच नहीं पा रहा था कि क्या कहे, तब तक राजेन्द्र बाबू की आवाज सुनायी पड़ी- 'जब तक तुम यह नहीं कह दोगे कि मैंने क्षमा किया मैं ऐसे ही तुम्हारे सामने खड़ा रहूंगा।' अन्ततः तुलसी को कहना पड़ा- 'ठीक है, क्षमा किया।' उस दिन से तुलसी फिर राजेन्द्र बाबू की सेवा में लग गया।
दूसरा प्रसंग: सरकारी पैसा
राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद बिहार के सरकारी दौरे पर थे। राँची पहुंचने पर उन्हें महसूस हुआ कि उनके जूते काफी घिस चुके हैं। उन्होंने यह बात अपने सचिव से कही, तो वह जूते का एक कीमती और मुलायम जोड़ा खरीद लाया। जब डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद ने जूते देखे, तो काफी नाराज होकर बोले, 'मैं सस्ते और कड़े जूते पहनने का अभ्यस्त हूं। आप इतने महंगे और मुलायम जूते क्यों लाए। कृपया इन्हें लौटा दीजिए।'
जब निजी सचिव जूते लौटाने के लिए जाने लगे, तो राष्ट्रपति जी बोले, 'अभी तत्काल जाने की जरूरत नहीं है। दो मील आने-जाने में कितना पेट्रोल खर्च होगा, उस बारे में भी सोचो। जब किसी और कार्य से उधर जाओ, तो जूते भी बदल लाना। सरकारी पैसे को यूँ फूॅकना ठीक नहीं।'
तीसरा प्रसंग: राष्ट्रपति की हैसियत
राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद सन् 1958 में एक बार प्रयाग गए। उन्होंने प्रसिद्ध कवि
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला से मिलने की इच्छा प्रकट की। जब संदेशवाहक संदेश लेकर पहुंचा, तो निराला जी ने उससे कहा, 'यदि राजेन्द्र बाबू राष्ट्रपति की हैसियत से मिलना चाहते हैं, तो मेरे पास समय नहीं है। अगर वह राजेन्दुआ की हैसियत से मिलना चाहते हैं, तो उनका स्वागत है।'
इस बात को सुनकर राष्ट्रपति स्वयं निराला जी के आवास पर गए। निराला जी ने, 'आओ राजेन्दुआ!' कहकर स्वागत किया और बाहर से कुल्हड़ में चाय लाकर उन्हें पीने के लिए दी।
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विश्व के अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों के प्रेरक प्रसंग -
जॉर्ज वॉशिंगटन: एक बार संयुक्त राज्य अमेरिका के राज्य वर्जीनिया में कुछ मित्र एक साथ घूमने के लिए गये। जब वे सभी एक नदी से कुछ दूर पर बैठकर कुछ खाने लगे तो उन्हें किसी महिला के जोड़-जोड़ से रोने-चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। वह चिल्ला-चिल्ला कर कह रही थी,'मुझे उसे बचाने दो, मुझे उसे बचाने दो।' वो सभी मित्र खाना-पीना छोड़ कर उस तरफ दौड़े जिधर से चिल्लाने की आवाज आ रही थी। नदी के किनारे पहुंचने के बाद उन्होंने देखा कि जो महिला चिल्ला रही थी उसका बच्चा गलती से नदी में गिरकर तेज धार में बहे जा रहा था और वहां खड़ा कोई भी आदमी उसे बचाने का साहस नहीं कर पा रहा था। वह महिला खुद नदी में कूद कर अपने बच्चे को जल्दी बाहर निकालना चाहती थी लेकिन वहां जमा लोग उसे ऐसा बिल्कुल भी नहीं करने देना चाहते थे।
वह एक ही बात कह रही थी कि, 'ये डरपोक न तो खुद कोई प्रयास कर रहे हैं न ही मुझे उसे बचाने के लिए कुछ करने दे रहे हैं।'
इसी बीच एक नवयुवक तुरंत अपने कपड़े उतार नदी में कूद गया। वह युवक कुशल तैराक था और नदी की लहरों से संधर्ष कर रहा था। नदी के जल का प्रवाह बहुत तेज था और बच्चे को जल्द पकड़ना बहुत मुश्किल। नवयुवक तेज धार में बहते बच्चे को पकड़ने का प्रयास कर रहा था, लेकिन नदी की तेज लहरे इसमें बार-बार बाधा बनती। अंत में वह बच्चे तक पहुंचने में सफल रहा। बच्चे की माँ नदी के किनारे उम्मीद भरी आंखों से सब देख रही थी और ईश्वर से अपने बच्चे तथा उस साहसी नवयुवक की कुशलता का निवेदन कर रही थी।
कुछ ही समय बाद वह नवयुवक बच्चे को नदी की तेज धार से बाहर निकाल लाया। बच्चे की माँ बहुत खुश थी। उसने भावनात्मक होकर कहा, 'तुम्हारे मुझ पर किए गये इस उपकार का कर्ज कोई नहीं चुका सकता। मेरे इस बच्चे को मौत के मुंह से निकालकर तुमने इसे एक नया जीवन दिया है, इसका फल ईश्वर तुम्हें जरूर किसी न किसी रूप में देगा।' उस बच्चे की जान बचाने वाला वह नवयुवक कोई और नहीं बल्कि जॉर्ज वाशिंगटन थे, जो आगे चलकर अमेरिका के पहले राष्ट्रपति बने।
जॉन एफ॰ केनेडी: जॉन एफ केनेडी छोटी-छोटी बातों को महतवपूर्ण मानते थे। एक समय मार्टिन लूथर किंग गिरफ्तार कर लिए गए थे। उनकी पत्नी को पता नहीं चल पा रहा था कि वे किस स्थान पर हैं। वे चिन्तित हो उठी। पता नहीं उनके पति जीवित भी हैं या नहीं। निदान उन्होंने जॉन एफ कैनेडी को टेलीफोन लगाया, टेलीफोन उनके सचिव ने उठाया और उनके भाई को सूचित किया। उनके भाई ने मार्टिन लूथर किंग की पत्नी को टेलीफोन पर कहा- 'वे अभी तक मार्टिन लूथर किंग से बात नहीं कर सके, लेकिन वे जहाँ भी है, सकुशल हैं।'
जॉन एफ कैनेडी जब अपने पिता के यहां से लौटे तो यह सूचना दी गई। उन्होंने मार्टिन लूथर किंग की पत्नी को तत्काल टेलीफोन किया -'आशा करता हूं आप ठीक हैं, कल आपने मेरे भाई से बात की थी। मुझे दुःख है कि मैं आपसे बात न कर सका। मैं कल अपने पिता के घर चला गया। मैंने इस बात की व्यवस्था कर दी है कि मार्टिन लूथर साहब आपसे शीघ्र बात कर लें। वह बिल्कुल ठीक हैं, हम लोग उनकी देखभाल करेंगे। आप जब चहें मुझसे बात कर सकती हैं।'
यह सुनकर मार्टिन लूथर किंग की पत्नी ने कहा, 'हमारे राष्ट्रपति सचमुच एक महापुरुष हैं। उन्होंने मुझे मेरे बच्चें के लिए बधाई दिया, मेरे स्वास्थ के बारे में पूछा, मेरी समस्याओं में अभिरूचि ली।'
सचमुच जॉन एफ कैनिडी महान थे।