दोस्तों, नीचे बच्चों की बाल कहानियां को दिया जा रहा है। पहली कहानी है 'किसान की बेटी' और दूसरी है 'समझ'। पढ़े और अपने बच्चों को भी सुनाए।
एक बहुत गरीब किसान था। वह अपनी बेटी के साथ एक छोटी सी झोंपड़ी में रहता था। उसके पास खेती करने के लिए अतनी कम ज़मीन थी कि उसकी फ़सल को बेचकर उसे बिल्कुल थोड़े से रूपए मिलते थे। उन रूपयों से वे लोग ठीक से खाना भी नहीं खा पाते थे। वह राजा के पास अपनी समस्या लेकर आया। राजा दयालु थे। उन्होंने किसान को अपनी ज़मीन में से कुछ ज़मीन दे दी, खेती करने के लिए। उन्होंने कहा, ‘यह ज़मीन तो हमारी ही रहेगी, लेकिन उस पर उगने वाली फ़सल तुम्हारी होगी।‘ किसान ने राजा को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया।
एक दिन वह खेत की जुताई कर रहा था। तभी उसका हल किसी कठोर चीज़ से टकराया। उसने वहाँ खोदकर देखा तो उसे सोने की एक ओखली मिली। किसान ईमानदार था। उसने अपनी बेटी से कहा- 'हमें यह ओखली राजा के खेत से मिली है। जिसकी ज़मीन है, उसी की यह ओखली भी है। इसीलिए हमको इसे राजा को लौटा देना चाहिए।'
किसान की बेटी बोली, 'नहीं पिताजी, आप ऐसा मत कीजिए। आपको सिर्फ़ ओखली मिली है। यदि राजा ने आपसे इसकी सोने की मूसल भी माँगी तो आप क्या करेंगे? आप इस ओखली को अपने ही पास रखिए।'
लेकिन किसान को यह बात ठीक नहीं लगी। वह बोला, 'जो चीज़ हमें मिली ही नहीं, वह माँगने का राजा को कोई अधिकार नहीं है।'
वह राजा के पास ओखली लेकर पहुँचा। लेकिन दरबार में ठीक वैसा ही हुआ जैसा कि किसान की बैटी ने सोचा था। राजा ने सोचा कि किसान ने लालचवश मूसल अपने पास रख ली है। किसान बेचारा सोने की मूसल कहाँ से लाकर देता! न्तीजा यह हुआ कि किसान को जेल में डाल दिया गया।
जेल में न उसे ढंग से खाना मिलता था, न पानी। किसान को ऐसी ग़लती की सज़ा दी गई थी, जो उसने की ही नहीं थी। वह खाए-पिए बिना निढाल हो गया। लेटे-लेटे वह रोता रहता था और कहता था, 'बेटी की बात मानी होती..... काश, मैंने अपनी बेटी की बात मानी होती!'
एक दिन राजा ने उसे ऐसा कहते हुए सुन लिया। उन्होंने किसान से पूछा कि वह ऐसा क्यों कह रहा है। तब किसान ने राजा को पूरी बात बताई। राजा को अपनी ग़लती का अहसास हुआ। किसान को तुरंत छोड़ दिया गया। किसान की बेटी को राजा ने दरबार में बुलाया। उससे बातें करने के बाद राजा को पता चल गया कि वह कितनी बुद्धीमान है। किसान की बेटी को राज्य के ख़जाने का मंत्री बना दिया गया। उन्हें रहने के लिए घर और सभी सुख-सुविधाएँ दी गईं।
किसान और उसकी बेटी सदा सुख से रहे। किसान को थोड़ा कष्ट ज़रूर झेलना पड़ा। लेकिन अंत में जीत सच्चाई की हुई।
समझ
एक शक्तिशाली राजा का एक ही बेटा था। उसका नाम था राजकुमार चंदन। चंदन बहुत ही सीधा-सादा था। महाराज चाहते थे कि वह चतुर और तीव्रबुद्धी हो जाए। उन्होंने दूर-दूर से विद्वानों को बुलाया। उन सब विद्वानों ने राजकुमार को महीनों तक शिक्षा दी। धीरे-धीरे राजकुमार चंदन सब सीख गया। उसने सभी तरह के प्रश्नों के उत्तर याद कर लिए।
तब महाराज ने एक बुद्धीमान व्यक्ति आदर्श को बुलाया, जो चंदन की परीक्षा ले सके। आदर्श ने चंदन से बहुत से प्रश्न पूछे। चंदन ने सभी प्रश्नों का उत्तर ठीक दिया। महाराज बहुत प्रसन्न हुए। आदर्श ने राजा से कहा, 'महाराज, राजकुमार चंदन को भूतकाल की सभी बातों का अच्छा ज्ञान हो गया है। अभी तक जो कुछ हो चुका है, वह राजकुमार जान गए हैं। लेकिन एक बुद्धीमान व्यक्ति को भविष्य का ज्ञान होना भी जरूरी है।'
राजा ने एक विद्वान ज्योतिषी को राजमहल में बुलाया। उन्होंने राजकुमार चंदन को भविष्य जानने की कला सिखाई। उन्होंने चंदन को सिखाया कि कैसे एकाग्रचित होकर ध्यान लगाया जाता है। कैसे एक अनजान वस्तु के बारे में पता लगाया जाता है।
इस तरह कई महीने बीत गए। जब ज्योतिषी ने सभी बातें राजकुमार चंदन को सिखा दीं, तब राजा ने आदर्श को फिर बुलाया। आदर्श से कहा गया कि वह चंदन की एक बार फिर परीक्षा ले।
आदर्श ने अपनी मुट्ठी में एक वस्तु रखी। उन्होंने सभी दरबारियों को एक-एक करके अपनी मुट्ठी खोलकर दिखाई कि उसमें क्या है? महाराज ने भी देखा कि आदर्श ने मुट्ठी में क्या रखा है।
अंत में आदर्श राजकुमार चंदन के पास आए और बोले, ‘राजकुमार, अब आप अपनी विद्या का प्रयोग करके बताएँ कि मेरी मुट्ठी में क्या है?‘
चंदन ने एकाग्रचित होकर ध्यान लगाया। बहुत सोचने के बाद वह बोला, ‘आपकी मुट्ठी में जो वस्तु है वह कठोर है और गोल भी है।‘
आदर्श ने कहा, 'बिल्कुल ठीक।' सुनकर महाराज प्रसन्न हुए।
राजकुमार फिर बोला, 'यह वस्तु सफेद रंग की है और इसके बीचोंबीच एक छेद है।‘ आदर्श खुश होकर बोले, ‘ठीक कहा राजकुमार, अब आप इस वस्तु का नाम बताएँ।'
राजकुमार ने कहा, 'मैं समझ गया कि यह वस्तु कौन-सी है। आपकी मुट्ठी में चक्की का पाट है।'
जैसे ही दरबारियों ने यह सुना वे अपनी हँसी रोक नहीं पाए। यह उत्तर सुनकर महाराज को बड़ी निराशा हुई। इतना बड़ा चक्की का पाट किसी की मुट्ठी में भला कैसे आ सकता था! राजकुमार ने जो कुछ सीखा था, उसे इस्तेमाल तो किया लेकिन उसके साथ अपनी बुद्धी का प्रयोग नहीं किया।
तब आदर्श ने अपनी मुट्ठी खोलकर राजकुमार को दिखाई और उनकी मुट्ठी में निकला एक सफेद मोती। आदर्श ने महारज से का, 'महाराज, केवल शिक्षा पाना या सीखना ही काफी नहीं है। उसे प्रयोग में लाने के लिए बुद्धी का प्रयोग करना भी बहुत ज़रूरी है। एक बुद्धीमान व्यक्ति के पास शिक्षा और समझ दोनों होनी चाहिए।'
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