आज के वैज्ञानिक युग में मानव जीवन का अस्तित्व परमाणु युद्धों के कारण खतरे में पड़ गया है। इस संबंध में विश्व शांति की महत्ता पर निबंध (essay) लिखिए।
वैज्ञानिक प्रगति ने मनुष्य के जीवन को एक ओर सुख और सुविधाएँ प्रदान की हैं, तो दूसरी ओर सुविधाएँ प्रदान की हैं, तो दूसरी ओर अनेक संकट भी उपस्थित किए हैं। एक ओर मनुष्य का प्राकृतिक जीवन अब विज्ञान के साधनों पर निर्भर हो गया है, तो दूसरी ओर वह पूर्ण रूप से विज्ञान का दास बन चुका है। जिन अनुसंधानों को उसने सुख के लिए खोजा और निर्माण किया था आज वे ही उनकी गर्दन पर लटकती हुई तलवार की भाँति हैं, जिससे मानव का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है।
परमाणु अस्त्र-शस्त्रों का विनाशकारी रूप
बीसवीं शताब्दी के आरंभ में आइन्स्टीन ने घोषणा की थी कि संपूर्ण पदार्थ को ऊर्जा में और ऊर्जा को पदार्थ में रूपांतरित किया जा सकता है। इसके लिए उन्होंने एक समीकरण (E= mc square) दिया था। यह ऊर्जा के लिए था। इस संबंध में माना जाता है कि लाखों टन कोयले की ऊर्जा केवल एक आँस आणविक ईंधन से प्राप्त की जा सकती है।
पूर्व जर्मनी के वैज्ञानिकों ने यूरेनियम के केंद्रक को विघटित करके उससे अपार शक्ति उत्पन्न करने की विधि खोज निकाली। अमेरिका के डॉ. रॉबर्ट ओयेन हाइमर ने 13 जुलाई, 1944 को पहले अणुबम का सफलतापूर्वक परीक्षण किया, जिसके बादल लगभग चालीस हज़ार फुट की ऊँचाई तक उठे और इस भयंकर ताप से नौ मील के अंदर तक कोई भी जीव-जंतु जीवित न रह सके। इसके पश्चात् अगस्त 1945 में जापान के नागासाकी और हिरोशिमा नगरों पर बम गिराए गए, जिनसे लाखों लोग मारे गए और लाखों अपंग हो गए। इस विनाशकारी बम की त्रासदी आज भी इन नगरों के मिट्टी और लोग भोगते हैं। इसके पश्चात् इस दिशा में रूस, इंग्लैंड, फ्रांस, चीन, भारत तथा पाकिस्तान भी बढ़ने लगे। भारत का परमाणु कार्यक्रम निरंतर शांति के लिए अग्रसित है। अस्त्र-शस्त्र का एक और खेल 17 जून सन् 1991 को खेला गया, जब अमेरिका और मित्र राष्ट्र की सेनाओं ने ईराक पर आक्रमण किया। यह युद्ध छः सप्ताह तक चला। यद्यपि इसमें भयानक अणु और परमाणु शस्त्रों का प्रयोग नहीं किया गया, तथापि ईराक को इन राष्ट्रों की सेनाओं ने ध्वस्त कर दिया।
इन भयावह परिणामों को देखते हुए विश्व (World) के सभी लोग चिंतित हो गए। अमेरिका और रूस परमाणु रियेक्टरों की दुर्घटनाएँ हुईं और भारत में दिल दहला देने वाली भोपाल गैस त्रासदी हुई। इससे मानवता त्रस्त हो उठी। इनका विनाशकारी परिणाम अनेक पीढ़ियाँ भोगती हैं और रेडियो धर्मी पदार्थों के विकिरण से पंगु मानव तथा आनुवांशिक बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं।
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मानव और पृथ्वी को इस भयंकर संहार से बचाने के लिए, विश्व निःशस्त्रीकरण और शांति (peace) की स्थापना के लिए भी प्रयास आरंभ हुए। राष्ट्र संघ ने पारस्परिक सहायता संधि द्वारा निःशस्त्रीकरण की ओर पहला पग उठाया। इसके पश्चात् जेनेवा संधि की व्यवस्था भी की गई, परंतु ये प्रयास विफल हो गए। इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम सन् 1960 में सोवियत संघ के प्रधानमंत्री ख्रुश्चेव ने उठाया। उन्होंने अपनी सैन्य शक्ति में बारह लाख सैनिकों की कटौती कर दी, उनके इस प्रयास का संपूर्ण विश्व में स्वागत किया गया। इसके पश्चात 5 अगस्त, 1963 को रूस, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा
भारत ने आणविक परीक्षण की निषिद्ध पर हस्ताक्षर कर दिए।
इस दिशा में पुनः विश्व के दो बड़े राष्ट्रों रूस औ अमेरिका ने मास्को में 'स्टार्ट' शस्त्र कटौती संधि पर 31 जुलाई, 1991 में हस्ताक्षर किए। इसमें परमाणु हथियारों में 30 प्रतिशत कटौती की घोषणा भी की गई थी। 17 अक्टूबर, 1991 में 'नाटो' देशों द्वारा हथियारों की 80 प्रतिशत कटौती पर सहमति हुई। अमेरिका और रूस ने भय-कारक अस्त्र-शस्त्र तथा दूरभेदी मिसाइशों को भी भविष्य में धीरे-धीरे समाप्त करने की संधि पर हस्ताक्षर कर विश्व को भयानक विनाश से बचाने के लिए सराहनीय प्रयास किए हैं।
विश्व शांति की आवश्यकता
परमाणु शक्ति का उपयोग विश्व शांति (World Peace) और कल्याण के लिए होना चाहिए। इस शक्ति के द्वारा मिलों और कारखानों को चलाया जा सकता है, जिससे बिजली की कमी की पूर्ति भी होगी तथा उत्पादन क्षमता भी बढ़ेगी। अणु शक्ति के प्रयोग के कारण कोयला, पेट्रोल, डीज़ल, बिजली आदि पर निर्भरता समाप्त हो सकती है। कृषि के क्षेत्र में क्रांतिकारी प्रयोगों द्वारा और मानव जाति के भयानक रोगों से मुक्त दिलाने में भी इस शक्ति पुंज का उपयोग किया जा सकता है।
रूस ने अणु शक्ति का सर्वप्रथम तथा सर्वाधिक प्रयोग रचनात्मक कार्यों के लिए किया है। वहाँ साइबेरिया की कुछ नदियों के प्रवाह की दिशा को अणु शक्ति की सहायता से बदल दिया गया है। साइबेरिया की कुछ नदियाँ, जो पहले उत्तर दिशा की ओर बहती थीं और वर्ष के अधिकांश भाग में शीत के कारण जीम रहती थीं, परमाणु शक्ति से अब वे दक्षिण की ओर प्रवाहित होती हैं, जिससे साइबेरिया और गोबी के मरूस्थल अब गेहूँ के लहलहाते खेतों में बदल गए हैं। परमाणु शक्ति से बड़े-बड़े पहाड़ों को काट कर आवागमन का मार्ग बनाया गया है।
आज भारत सहित विश्व के अनेक देश इस दिशा में निरंतर प्रयास कर रहे हैं, कि मानवता की भलाई के लिए अणु और परमाणु शक्ति का उपयोग रचनात्मक रूप में किया जाए।
इस संदर्भ में भारत का दृष्टिकोण स्पष्ट है कि वह परमाणु शक्ति का प्रयोग केवल रचनात्मक कार्यों में ही करेगा, क्योंकि उसका सबसे प्रमुख उद्देश्य विश्व शांति है। परमाणु शक्ति के द्वारा संहारक शक्ति के निर्माण का भारत का काई इरादा नहीं हैं। डॉ. सेठना के अनुसार-
''इस शताब्दी के अंत तक भारत परमाणु की रचनात्मक शक्ति में 4.3 करोड़ किलोवाट बिजली पैदा कर सकेगा, जिसे नहरें खोदने, धातु, तेल, गैस आदि को भूमि से निकालने, बंदरगाहों की सफ़ाई करने और नदियों के बहाव आदि को मोड़ने के काम में लाया जाएगा।''
उपसंहार
आज विश्व में शक्ति प्रदर्शन की आवश्यकता नहीं है, अपितु विश्व को युद्ध, भूख, बीमारी से बचाने की आवश्यकता है। अतः मानव के अभ्युदय के लिए और सुखद भविष्य के लिए इस शक्ति का यही प्रयोग सार्थक होगा कि विश्व में शांति स्थापित हो।